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युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंसे अपने नागरिकों को निकालने की राजनीति

Published by
आदिति फडणीस
Last Updated- May 02, 2023 | 7:34 PM IST

दूर के देशों में चल रहा संघर्ष शायद ही देश के चुनावों में मुद्दा बनता है। लेकिन कर्नाटक में हो रहे विधानसभा चुनावों (Karnataka Assembly election) में बयानबाजी बढ़ी है जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी युद्ध प्रभावित सूडान (Sudan) से भारतीयों को निकालने के अभियान की व्यक्तिगत तौर पर निगरानी कर रहे हैं। दूसरी ओर कर्नाटक में कांग्रेस (Congress) दावा कर रही है कि यदि उसका हस्तक्षेप नहीं होता तो सूडान में भारतीयों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया होता। लेकिन इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो हमें अंदाजा मिलता है कि सरकार चाहे किसी की हो, ऐसी स्थिति में हमेशा ही सक्रियता बढ़ जाती है।

मौजूदा विवाद कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया (Siddaramaiah) के एक ट्वीट के साथ शुरू हुआ, जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक की हक्की पिक्की जनजाति के 31 लोग सूडान में बिना भोजन के फंसे हुए हैं और सरकार ने उन्हें वापस लाने के लिए अभी तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं की है। उन्होंने दावा किया कि 60 अन्य विदेशी नागरिकों में से एक भारतीय की पहले ही मौत हो चुकी है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैं सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह करता हूं।’

इसके बाद कांग्रेस के समर्थकों के साथ-साथ सरकार के समर्थकों ने भी तुरंत हंगामा शुरू कर दिया, जिनमें वे लोग शामिल थे जिन्होंने पहले कभी हक्की पिक्की के बारे में कभी नहीं सुना था। लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दी।

उन्होंने लिखा, ‘आपके ट्वीट से हैरान हूं! जीवन दांव पर है, राजनीति मत कीजिए। 14 अप्रैल को लड़ाई शुरू होने के बाद से खार्तूम में भारतीय दूतावास, सूडान में अधिकांश भारतीय नागरिकों और पीआईओ के साथ लगातार संपर्क में है।’

सिद्धरमैया ने पलटवार करते हुए कहा, ‘डॉ जयशंकर आप विदेश मंत्री हैं इसीलिए मैंने आपसे मदद की अपील की है। यदि आप हैरान होने में ही व्यस्त हैं तो कृपया हमें उस व्यक्ति के बारे में जानकारी दे दें जो हमारे लोगों को वापस लाने में हमारी मदद कर सकता है।’

इसके कुछ ही घंटों के भीतर प्रधानमंत्री ने मोर्चा संभाल लिया था। उन्होंने बैठक बुलाई और थोड़े वक्त के संघर्ष विराम का लाभ उठाते हुए सरकार ने ऑपरेशन कावेरी (Operation Kaveri) की घोषणा की, जैसे ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga) (यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद यूक्रेन से भारतीयों को बाहर निकालने के लिए अभियान) और ऑपरेशन देवी शक्ति (Operation Devi Shakti) (अफगानिस्तान से भारतीयों को बाहर निकालने से जुड़ा अभियान) की घोषणा की गई थी।

यह संभव है कि अगर सिद्धरमैया को कोलार विधानसभा क्षेत्र से मैदान में नहीं उतारा गया होता, जहां हक्की पिक्की मतदाताओं की संख्या कम है (स्थानीय मीडिया के अनुसार इनकी आबादी 11,000 है), तो सरकार युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भारतीयों के हितों की रक्षा से जुड़ा अपना काम चुपचाप करती रही होती, जैसा कि उसने पहले भी किया था। लेकिन इस घटनाक्रम और पहले के घटनाक्रम में सरकार के हस्तक्षेपों ने भारत की विदेश नीति की जिम्मेदारियों को एक नया आयाम दिया है।

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हक्की पिक्की (कन्नड़ में हक्की का अर्थ ‘पक्षी’ और पिक्की का अर्थ है ‘पकड़ने वाले’) एक अर्ध-घुमंतू जनजाति है, जो पारंपरिक रूप से कर्नाटक में पक्षी पकड़ने वालों और शिकारियों का एक समुदाय है। जंगल और पारंपरिक चिकित्सा का उनका ज्ञान व्यापक है जो स्थानीय सूडानी समुदाय के लिए भी बेहद अहम हैं। भारतीयों के कई अन्य समूहों की तरह, वे भी काम की तलाश में सूडान गए और नागरिक सेना के दो गुटों के बीच संघर्ष के बाद गृह युद्ध में फंस गए।

युद्धग्रस्त देशों में सेवा दे चुके राजदूतों का कहना है कि भारत शायद दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जिसने बहुत बड़े पैमाने पर ऐसी जगहों से अपने नागरिकों को निकालने के अभियान को सफलतापूर्वक पूरा किया है।

लीबिया और जॉर्डन में भारत के पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत कहते हैं, ‘पिछले चार दशकों में, भारत ने इराक, लेबनान, यमन, लीबिया और कई अन्य अफ्रीकी देशों में राहत-बचाव जैसे मानवीय प्रयास शुरू किए हैं।’

उन्होंने कहा, ‘भारत का दो जनरलों (सूडान में) पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं हो सकता है लेकिन उसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक हित जुड़े हैं और लगभग 3,000 भारतीय प्रवासी हैं जो इस लड़ाई में फंसे हुए हैं और उन्होंने हमेशा सूडानी लोगों का साथ अपनी मानवीय और क्षमता निर्माण सहयोग के माध्यम से दिया है। भारत के पास संघर्ष वाले क्षेत्रों से लोगों को निकालने की जबरदस्त विशेषज्ञता है और यह सभी भारतीयों को सुरक्षित रूप से लाने में सक्षम होगा।’

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ऑपरेशन कावेरी भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए बचाव अभियानों की लंबी सूची में से केवल एक है। सबसे बड़ा अभियान तीन दशक पहले खाड़ी युद्ध के दौरान चलाया गया था जब 1990 में इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था तब भारत सरकार दो महीने से कुछ अधिक समय में 1,00,000 से अधिक नागरिकों को वापस लाने में सफल रही थी।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उस समय मजबूत बहुमत वाली सरकार नहीं थी, बल्कि वीपी सिंह की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी, जनता दल और वाम दलों का एक गठबंधन था जिसने इस तेल की राजनीति वाले क्षेत्र में धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाए। कुवैत पर इराक ने 2 अगस्त, 1990 को हमला शुरू किया था और उस समय लगभग 1,70,000 भारतीय इस क्षेत्र में थे।

लगभग तीन सप्ताह बाद उस समय भारत के विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने इराक का दौरा किया और भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए सद्दाम हुसैन से मुलाकात की। यह अभियान सैन्य परिवहन विमानों का उपयोग करने के साथ शुरू हुआ था, लेकिन बाद में इस ऑपरेशन में सैन्य विमानों का उपयोग करने में दिक्कत आने पर एयर इंडिया (Air India) की सेवाएं लेनी पड़ी।

हवाई क्षेत्र बंद होने के कारण भारतीयों को बसों के जरिये पड़ोसी देश जॉर्डन के अम्मान ले जाया गया। पिछले 63 दिनों में एयर इंडिया की 488 उड़ान के जरिये युद्धग्रस्त क्षेत्र से 1,00,000 से अधिक भारतीयों को वापस लाया गया।

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उस समय संयुक्त सचिव (खाड़ी) रहे के पी फैबियन कहते हैं, ‘महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि विदेश मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के बीच बेहतर तालमेल के कारण, हमने नियमित तौर पर नोट्स लिखने में समय बरबाद नहीं किया।’

फैबियन और अन्य राजनयिकों का कहना है कि भारतीय अब पूरी दुनिया में काम कर रहे हैं और अगर युद्ध वाली स्थिति बनती है तो उन्हें समर्थन की आवश्यकता होगी।

सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस में फॉरेन पॉलिसी ऐंड सिक्योरिटी स्टडीज में फेलो कॉन्स्टेंटिनो जेवियर कहते हैं, ‘भारत अपने वीरतापूर्ण और अस्थायी प्रयासों पर भरोसा करना जारी नहीं रख पाएगा। खासतौर पर यह देखते हुए कि प्रवासी भारतीयों का विस्तार हो रहा है और वे अधिक गतिशील होने के साथ ही मुखर हो रहे हैं। इसके साथ ही युद्धग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को निकालने का अभियान लगातार जटिल होने की संभावना है जिससे क्षमता और समन्वय के मोर्चे पर चुनौतियां पैदा होंगी।’

First Published : May 2, 2023 | 7:34 PM IST