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एकमात्र विकल्प

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:11 PM IST

केंद्र सरकार अब दूरसंचार कंपनी वोडाफोन आइडिया में सबसे बड़ी अंशधारक बन जाएगी। देश भर में इस कंपनी के 27 करोड़ ग्राहक हैं। कंपनी को स्पेक्ट्रम के लंबित भुगतान पर ब्याज और समायोजित सकल राजस्व बकाये के रूप में काफी अधिक राशि चुकानी थी लेकिन वह ऐसा करने में नाकाम रही। इस स्थिति में उसे इस राशि कोशेयरों में बदलने का विकल्प दिया गया और उसने इसे स्वीकार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप अब सरकार के पास वोडाफोन आइडिया की 35.8 फीसदी हिस्सेदारी होगी।
कंपनी ने कहा है कि यह राष्ट्रीयकरण जैसा नहीं है और प्रबंधन नियंत्रण निजी हाथों में बना रहेगा। कंपनी ने यह संकेत भी दिया है कि सरकार परिचालन में किसी तरह का दखल नहीं देगी।
बहरहाल, बाजार ने इस घटना को सकारात्मक ढंग से नहीं लिया। इस वजह से शेयर कीमतें अस्थिर रहीं और सुधार आने के पहले उनमें 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। कंपनी को सरकार को शेयर हिस्सेदारी देनी पड़ी क्योंकि बड़े पैमाने पर जरूरी पूंजी नहीं मिल सकी।
समूचे घटनाक्रम के लिए सरकार को खुद को दोष देना चाहिए। विश्लेषक भारत के दूरसंचार क्षेत्र को दुनिया में सर्वाधिक कठिनाई भरा मानते हैं। एक दशक पहले देश के दूरसंचार जगत में कई दावेदार थे। आज सरकार को तीन बची कंपनियों में से एक की हिस्सेदारी लेनी पड़ी ताकि इस क्षेत्र में केवल दो कारोबारी न रह जाएं। अत्यधिक कराधान और शुल्क, लाइसेंस रद्द होने और नियामकीय अनिश्चितता आदि सभी ने सरकार के हस्तक्षेप में योगदान किया। सरकार को एक ऐसी समस्या को हल करना पड़ा जो उसने खुद खड़ी की।
सवाल यह है कि यहां से आगे की राह क्या होनी चाहिए? यह बात एकदम स्पष्ट होनी चाहिए कि वोडाफोन आइडिया में सरकार अपनी हिस्सेदारी हमेशा नहीं रख सकती। कंपनी को समय चाहिए ताकि वह शुल्क बढ़ा सके और सेवाओं में सुधार कर सके तथा अपने उपभोक्ता आधार को संभाल सके जो अभी हाल तक 40 करोड़ था। सामान्य तौर पर देखें तो भारत में शुल्क को असामान्य रूप से निचले स्तरों से ऊपर ले जाने की आवश्यकता है। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं ने शुल्क में इजाफा किया है लेकिन अभी काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। एक बार एक खास स्तर का ठहराव आने के बाद सरकार को इससे बाहर निकलने के अवसर तलाशने होंगे। संभव है कि सरकार एक बार में पूरी हिस्सेदारी न बेच सके लेकिन उसे जल्द विनिवेश की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
अब समूचे दूरसंचार क्षेत्र में परिपक्वता आनी चाहिए। अगर नियमों का समुचित पालन किया जाए तो तीन बड़े प्रतिस्पर्धी इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए पर्याप्त हैं। सेवाओं में सुधार करना होगा और उनका विस्तार करना होगा।
5जी नेटवर्क तथा अन्य प्रकार के इजाफों के लिए निवेश की आवश्यकता होगी। सरकार देख चुकी है कि एक दशक तक इस क्षेत्र को दुधारू गाय समझने का क्या हश्र हुआ है। 5जी स्पेक्ट्रम का मूल्य तय करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए। दूरसंचार सेवा प्रदाता 5जी स्पेक्ट्रम के लिए कम आधार कीमत की मांग करते रहे हैं।
सरकार को इस क्षेत्र को केवल राजस्व बढ़ाने और राजकोषीय जरूरतें पूरा करने के माध्यम के रूप में नहीं देखना चाहिए। अब समय आ गया है कि वह दूरसंचार क्षेत्र में स्थिरता, निवेश और गुणवत्ता में सुधार को प्राथमिकता दे। डिजिटल इंडिया की योजना ऐसी ही स्थिरता पर निर्भर  करती है।

First Published : January 12, 2022 | 11:20 PM IST