भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय स्थिति पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर दी है। देश की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वालों के लिए यह एक अहम संसाधन है क्योंकि राज्य सरकारों के बजट एकत्रित करने और उनका विश्लेषण करने में कठिनाई हो रही है।
सरकार के आम बजट के लिए महत्त्वपूर्ण राजकोषीय निहितार्थ वाली बात यह है कि राज्यों का सकल राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन फीसदी के स्तर को पार कर गया है जबकि वह राजकोषीय जवाबदेही विधान की दृष्टि से आवश्यक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के चलते राज्य सरकारों का संयुक्त राजस्व घाटा वर्ष 2018-19 के 0.1 फीसदी से बढ़कर 2020-21 में जीडीपी के दो फीसदी के बराबर हो गया। ऐसा तब हुआ जबकि महामारी के दौरान व्यय पर जबरदस्त रोक रही, खासतौर पर सेवाओं, विकास और कल्याण पर होने वाले व्यय के क्षेत्र में। राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमान की तुलना में 2.7 फीसदी कम रहीं, जबकि राज्य सरकारों का समेकित सकल राजकोषीय घाटा 2020-21 में रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा। राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति को लेकर चिंता तथा वस्तु एवं सेवा कर की क्षतिपूर्ति को लेकर उनकी असहमति को इस गंभीर राजकोषीय दबाव के आलोक में देखना होगा। आरबीआई ने आशा जताई है कि चालू वर्ष में केंद्र के मजबूत कर संग्रह तथा व्यापक टीकाकरण के बाद हालात सामान्य होने पर राज्यों को मध्यम अवधि में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए विश्वसनीय राह तलाशनी होगी।
आरबीआई की रिपोर्ट में विशेष ध्यान स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति पर था, खासतौर पर शहरी स्थानीय निकायों तथा नगर निकायों पर। महामारी के कारण भी यह ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि महामारी की स्थिति में स्थानीय निकाय ही सीधी प्रतिक्रिया में सबसे आगे थे। संक्रमण की दो गंभीर लहरों से निपटने में सबसे प्रमुख भूमिका उनकी ही थी। इसके अतिरिक्त टीकाकरण को अंजाम देने में भी वही अग्रणी थे। रिपोर्ट लिखने वालों ने 141 नगर निकायों का सर्वेक्षण किया और 20 बड़े नगर निकायों के बजट का विश्लेषण किया। इसके नतीजे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और वे संकेत करते हैं कि तीसरे स्तर की सरकारों पर वैसा ही वित्तीय दबाव है जैसा कि केंद्र और राज्य सरकारों पर। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि स्थानीय निकायों को घाटे से बचना होता है और वे राज्य सरकार के विशिष्ट आदेश के बिना उधार भी नहीं ले सकते। 98 फीदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें वित्तीय दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यानी उन्हें राजस्व की भारी हानि हुई। ध्यान रहे कि कोविड की दूसरी लहर ने राजस्व पर पहली लहर से अधिक असर डाला। करीब एक तिहाई नगरपालिकाओं ने कहा कि उनका राजस्व आधे से कम हो गया है। आरबीआई का अनुमान है कि करीब एक तिहाई नगर निकाय वित्तीय दृष्टि से बहुत मुश्किल हालात में हैं। इसका न केवल विकास और लोक कल्याण बल्कि महामारी से निपटने की क्षमता पर भी असर होगा। रिपोर्ट में किया गया सांख्यिकीय विश्लेषण दिखाता है कि कोई शहरी इलाका वित्तीय दृष्टि से जितने तनाव में हो टीकाकरण में भी उतनी ही कठिनाई आती है।
नगरपालिकाओं को मदद मुहैया कराई गई। उनमें से 40 फीसदी से अधिक ने कहा कि राज्य सरकार की महामारी संबंधी मदद ने उन्हें व्यय पूरा करने में सहायता की। इसके बावजूद उनमें से कई को अपने भंडार का इस्तेमाल करना पड़ा। परंतु यह महामारी के बाद सुधार की स्थायी प्रणाली नहीं है और न ही इसकी मदद से गुणवत्तापूर्ण शहरीकरण किया जा सकता है। नगर निकायों के एक छोटे से हिस्से ने ही पूरक वित्तीय मदद के लिए बाजार का रुख किया। 200 से अधिक में से केवल पांच प्रतिभागियों ने महामारी के दौरान बॉन्ड जारी किए। संस्थागत सुधार जरूरी है। ऊपर की सरकारों से स्थानांतरण तेज और सहज होना चाहिए। इसके साथ ही भविष्य के वित्तीय क्षेत्र सुधारों में नगर निकाय बॉन्ड बाजार पर ध्यान देना चाहिए।
