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फेरबदल का फसाना

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 5:31 PM IST

केंद्रीय मंत्रिमंडल में रविवार को किए  गए फेरबदल के बाद 7 नए राज्य मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह मिली है।


इनमें से सिर्फ एम. एस. गिल (जिन्हें खेल व युवा मामले की जिम्मेदारी दी गई है) को स्वतंत्र प्रभार वाला राज्य मंत्री बनाया गया है। उन्हें कुशल प्रशासक मानकर यह जिम्मेदारी सौंपी गई है और 2010 में प्रस्तावित राष्ट्रमंडल खेलों का बेहतर तरीके से आयोजन किए जाने की उम्मीदें उनसे पाली गई हैं।


पिछले मंत्री से यह जिम्मेदारी इसलिए ले ली गई है, क्योंकि माना जा रहा था कि मंत्री महोदय इस बात में ज्यादा वक्त जाया कर रहे थे कि राष्ट्रमंडल जैसे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन में कितने पैसे खर्च किए जाएं।


बाकी छह मंत्रियों में से ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद, कांग्रेस के युवा ब्रिगेड से हैं और दोनों की ताजपोशियों को इस बात का संकेत मानना चाहिए कि पार्टी नई पीढी क़े अपने नेताओं को आगे बढाने की दिशा में पहला कदम रख चुकी है।


रामेश्वर उड़ांव, जिन्हें जनजाति मामलों के मंत्रालय से संबध्द किया गया है, को लाए जाने पीछे पार्टी का मकसद यह है कि जानजाति समीकरण के मामले में कांग्रेस पार्टी की स्थिति मजबूत हो।


इसी तरह, तमिलनाडु से अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) की नुमाइंदगी करने वाले वी. नारायणस्वामी को संसदीय कार्य मंत्रालय से जोड़ा जाना और राजस्थान के उद्योगपति संतोष बगरोडिया को कोयला राज्य मंत्री बनाए जाने से इस बात की तस्दीक होती है कि मनमोहन सिंह ने मंत्रालयों के ताजा फेरबदल में एक राजनीतिक छतरी के तले रहने वाले विभिन्न हित समूहों को तुष्ट करने की कोशिश की है।


प्रधानमंत्री ने गठबंधन धर्म का पालन भी किया है और इसी के तहत राष्ट्रीय जनता दल के रघुनाथ झा को भारी उद्योग और लोक उपक्रम मंत्रालय में राज्य मंत्री का पदभार दिया गया है।


छह मंत्रियों की छट्टी कर दी गई है और कहा गया है कि इनमें से ज्यादातर को निकम्मेपन की सजा दी गई है। पर हो सकता है यह सही नहीं हो। इनमें से सुरेश पचौरी को मध्य प्रदेश कांग्रेस कमिटी का नया प्रमुख बनाया गया है। यदि काम न करना ही मंत्री पद जाने की अहम वजह होती, तो कई आला मंत्री ऐसे हैं जिनकी छुट्टी कर दी जानी चाहिए थी। कृषि मंत्री शरद पवार का नाम इस फेहरिस्त में शामिल किया जा सकता है।


कृषि का सुस्त विकास, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें और कृषि क्षेत्र में सुधारों को लागू किए जाने में हो रही हीला-हवाली ऐसे मुद्दे हैं, जो साबित करते हैं कि पवार अपने काम में किस कदर कोताही बरत रहे हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थिति ऊर्जा मंत्री की भी है। सरकार ऊर्जा से संबंधित लक्ष्य पूरे करने में नाकाम रही है और ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति में कोई सुधार नहीं देखा गया है।

First Published : April 8, 2008 | 11:53 PM IST