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कोविड की वापसी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 5:48 AM IST

गत वर्ष इस समय स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता कोविड-19 वायरस के कारण होने वाले संक्रमण के दोगुना होने की दर की पड़ताल कर रहे थे। यानी यह परख रहे थे कि देश में संक्रमण के मामलों के दोगुना होने में कितना वक्त लग रहा है। इस दर के अनुसार ही यह अनुमान लगाया गया कि देश में कोविड   संक्रमण के नए मामले कब स्थिर हो रहे हैं। सितंबर में यह संख्या 100,000 रोजाना के उच्चतम स्तर पर पहुंची और फिर घटकर 10,000 रोजाना के स्तर पर आ गई।
अन्य देशों में संक्रमण की दूसरी और तीसरी लहर आई लेकिन भारत विजेता के भाव में आ गया। अब जरा कोविड संक्रमण के दोगुना होने की मौजूदा दर पर विचार करें। मामलों के 20,000 से 40,000 होने में आठ दिन लगे, 80,000 होने में 14 दिन और वहां से 1.60 लाख होने में महज 10 दिन का समय लगा। अब ये चौथी बार दोगुने होने वाले हैं। अस्पतालों में बिस्तर, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए भविष्य डरावना लग रहा है। भगवान न करे लेकिन अगर मामले दोगुने होने की दर यूं ही बरकरार रही और मई के मध्य तक यदि रोजाना 6 लाख नये मामले सामने आने लगे तो क्या होगा? ऐसे में व्यवस्था चरमराना तय है।
यदि ऐसा हुआ तो देश इस महामारी के इतिहास में ही एक अतुलनीय पीड़ा का साक्षी बनेगा। बड़े पैमाने पर लॉकडाउन की वापसी होगी। गत वर्ष अचानक लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन से कुछ सबक लिया जाए तो इस वर्ष शायद बहुत बुरी स्थिति से बचा जा सकता है। गत वर्ष तो कुछ ही जिलों में संक्रमण के बावजूद पूरा देश बंद कर दिया गया था। इसके लिए सरकारों और नियोक्ताओं को कर्मचारियों को भरोसेमंद तरीके से उनके कार्यस्थल या आवास पर रुकने की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन हर नियोक्ता इतना सक्षम नहीं होगा इसलिए अपने घर लौटने वालों को परिवहन मुहैया कराया जाए। नागरिक समाज और स्वयंसेवकों को मदद के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। आदर्श स्थिति में तो लॉकडाउन बढऩे के पहले ऐसा किया जाना चाहिए लेकिन समय की कमी है।
आलोचना से बचते हुए सरकार ने टीका आपूर्ति का प्रयास किया है लेकिन एक टीका निर्माता द्वारा वित्तीय सहायता मांगे जाने पर सरकार ने कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। जबकि अन्य देशों में ऐसी मदद की जा रही है। टीकों पर से मूल्य नियंत्रण समाप्त करना होगा और कीमतें नए सिरे से तय करनी होंगी। टीका निर्माताओं को अधिक उत्पादन करने का प्रोत्साहन मिलना चाहिए। कम कीमतें हतोत्साहित कर सकती हैं। इस मोर्चे पर अब जो भी किया जाए लेकिन टीकाकरण की गति बढ़ाकर अब महामारी की दूसरी लहर को नहीं रोका जा सकता। ऐसे में चिकित्सा सुविधाओं को तेजी से बढ़ाना होगा। पहले भी ऐसा किया जा चुका है और बहुत बड़े पैमाने पर यह दोबारा करना होगा।
अब सहज आर्थिक सुधार का अनुमान भी सवालों के घेरे में है क्योंकि उत्पादन शृंखला पुन: बाधित है। कई कंपनियां और कारोबारी क्षेत्र पहले ही परेशानियों का सामना कर रहे थे और नए झटके से वे मुसीबत में पड़ सकते हैं। यदि स्थायी नुकसान से बचना है तो वित्तीय मदद, ऋण में सहायता और गत वर्ष घोषित किए गए अन्य उपाय दोहराने पड़ सकते हैं। खपत बढ़ाने के लिए दी जाने वाली सहायता बढ़ानी होगी। केवल कंपनियों को ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी मदद की आवश्यकता है। इस वर्ष का राजस्व घाटा और सार्वजनिक ऋण बढ़ाए बिना काम नहीं चलेगा। आपदा के कुप्रबंधन की कीमत इस रूप में चुकानी होगी।
सर्वे बताते हैं कि स्कूली शिक्षा, साक्षरता और नामांकन आदि को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। परंतु छात्रों का अकादमिक वर्ष बरबाद न हो इसका हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। शायद महामारी के धीमा पडऩे तक बोर्ड परीक्षाएं न हों। वे शायद गर्मियों के आखिर में हो सकती हैं। ऐसे में छुट्टियां कम करनी होंगी और आगामी अकादमिक सत्र को समायोजित करना होगा।
इन सभी मोर्चों पर सरकार को वास्तविक निदान तलाशने होंगे, बजाय कि ‘टीका उत्सव’ जैसे आयोजन करके संकट का मजाक उड़ाया जाए। ऐसे उत्सव में टीकाकरण की दर कम ही हुई। राज्य सरकारों को मृतकों के आंकड़ों से छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए। यदि संकट से निपटना है तो उसके वास्तविक स्वरूप और आकार को समझना होगा। हमने ‘इवेंट आयोजन’ की मानसिकता कई बार देख ली: बालकनी से थाली बजाना, बिजली बंद करके रात नौ बजे नौ मिनट मोमबत्ती जलाना, अस्पतालों पर हेलीकॉप्टरों से पुष्प वर्षा करना वगैरह। इस बीच कुंभ मेला और चुनावी रैलियों जैसे भीड़ भाड़ वाले आयोजनों में संक्रमण रोकने का काम भगवान पर छोड़ दिया गया। समय हाथ से निकल रहा है। अब गंभीर होने की जरूरत है।

First Published : April 17, 2021 | 12:08 AM IST