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सुधार, अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:47 PM IST

आर्थिक विकास सकल घरेलू उत्पाद तथा आर्थिक कल्याण में इजाफा करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। सुधारों का उद्देश्य भी यही है। हमने बार-बार यह देखा है कि इनका असर शेयर कीमतों पर भी पड़ता है। परंतु क्या वे शेयरों के बुनियादी मूल्यों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं? यदि ऐसा नहीं है तो कीमतों के वापस अपने वास्तविक मूल्य पर आने पर निवेशकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस पूरे मसले को समग्रता से समझना आवश्यक है।
आर्थिक सुधार दो प्रकार के हो सकते हैं। पहली तरह के सुधार की बात करें तो इन सुधारों की शुरुआत होती है और फिर उन्हें एक नियामकीय संस्था (उदाहरण के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड) के गठन जैसे सार्थक उपायों की मदद से मजबूत बनाया जाता है। ऐसे भी सुधार हैं जिनकी मदद से दीर्घावधि के वास्तविक प्रतिफल में इजाफा किया जा सकता है और जिसे कारोबारी जगत विश्वसनीय ढंग से अंशधारकों को देने की प्रतिज्ञा कर सकता है। इन सुधारों की बदौलत शेयर कीमतों में इजाफा हो सकता है। इन सुधारों को विश्वसनीय प्रतिफल कहकर पुकार सकते हैं।
दूसरी तरह के सुधार कारोबार में प्रवेश की बाधाओं को दूर करते हैं, प्रतिस्पर्धा तथा रचनात्मक विध्वंस को बढ़ावा देते हैं और किसी न किसी मोड़ पर स्वाभाविक एकाधिकार के विरोध की बुनियाद तैयार करते हैं। ये सुधार नए कारोबारों के लिए मुनाफा तैयार कर सकते हैं। बहरहाल, ऐसे सुधारों से मौजूदा कारोबारों के शेयरों का बुनियादी मूल्य बढऩे के बजाय कम होता है। चूंकि अधिकांश शेयर पोर्टफोलियो में मौजूदा कंपनियों के शेयर शामिल होते हैं इसलिए यह शेयरधारक के लिए सुधारों का नकारात्मक प्रभाव साबित होता है।
नए कारोबारों के शेयरों की बात करें तो निश्चित रूप से संस्थापक, एंजेल निवेशक आदि जो सफलता की कहानियों में शामिल होते हैं, उन्हें उल्लेखनीय लाभ हासिल होता है।
परंतु वह औसत कीमत जिस पर वे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होते हैं, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि नए शेयरधारकों के लिए काफी लाभ नहीं रह जाता है। इसलिए एक बार फिर कहेंगे कि सुधार के बाद सामान्य शेयरधारकों के लिए ज्यादा कुछ नहीं रह जाता।
एक उदाहरण पर विचार कीजिए। अगर लाइसेंस-परमिट-कोटा राज के अवशेष (किसी न किसी रूप में इनमें से कई मौजूद हैं) नष्ट किए जाते हैं तो नए कारोबारों के लिए रास्ता निकल सकता है। अर्थव्यवस्था को लाभ हो सकता है लेकिन मौजूदा कारोबारों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब रह सकता है। ऐसे में उनकी शेयरधारिता पर संभावित रूप से नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। बेहतर शब्द की अनुपस्थिति में हम इन सुधारों को आर्थिक प्रगति का नाम देते हैं।
ऐसे में विश्वसनीय प्रतिफल से जुड़े सुधार जहां शेयरों के मूल्य में इजाफा करते हैं वहीं आर्थिक प्रगति के लिए किए जाने वाले सुधार शेयरों के मूल्य में कमी की वजह भी बन सकते हैं। कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि शेयर मूल्यों पर सुधारों का सीमित सकारात्मक प्रभाव होता है। यह सामान्य विचार के विपरीत है जो एक गलत समझ पर आधारित है न कि रुझानों पर। शेयर बाजार में कई बार रुझानों को बहुत बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाता है।
यह दिलचस्प है कि शेयर बाजार के निवेशक अक्सर विश्वसनीय प्रतिफल दिलाने वाले सुधारों को लेकर जरूरत से ज्यादा चिंतित नहीं रहते। लेकिन कीमतों पर उस समय सकारात्मक असर होता है जब आर्थिक सुधार से संबंधित प्रगति होती है। कई अवसरों पर सुधार के संकेत मिलने पर ही कीमतों में इजाफा होने लगता है और फिर सुधार होने के बाद इसमें दोबारा तेजी आती है। हकीकत को देखते हुए यह विडंबनापूर्ण लगता है।
इन सब बातों के बीच हालिया उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना कहां नजर आती है? यह कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए जरूर उपयोगी है। बहरहाल, एक व्यापक चिंता भी है। वह यह कि प्रोत्साहन बनाम सब्सिडी, प्रतिस्पर्धा बनाम अल्पाधिकार और नियम बनाम विवेकाधिकार जैसे मसलों से काम नहीं चलेगा। पीएलआई योजनाओं को योजना को करों की मदद से वित्तीय मदद मुहैया करने की आवश्यकता है।
बीते दो वर्षों में तेल से उच्च कर राजस्व प्राप्ति तथा उच्च मुद्रास्फीति कर ध्यान में आते हैं। ये बातें अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाती हैं। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि हमारे यहां सुधार एकदम स्पष्ट हैं या नहीं? यह सही है कि न केवल शेयर कीमतों बल्कि उनके मूल्यांकन पर भी सकारात्मक प्रभाव बड़ी मुश्किल से ही अस्पष्ट होता है। लेकिन इसका संबंध सुधार की भूमिका के बजाय सरकार के समर्थन से अधिक हो सकता है।
पीएलआई योजनाओं की तुलना लाइसेंस राज के बचेखुचे अवशेषों को खत्म करने से करते हैं। पीएलआई योजनाओं में जहां अतिरिक्त कर शामिल होते हैं, वहीं लाइसेंस राज वाली व्यवस्था में बिना किसी तरह के अतिरिक्त कर बोझ के भी अर्थव्यवस्था में सुधार लाया जा सकता है, कोविड-19 के दौर में आम आदमी पर अतिरिक्त कर बोझ की बात तो छोड़ ही दें। कहने की आवश्यकता नहीं है कि सरकार अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त नियंत्रण और अतिशय नियमन से नहीं निपट रही है। इस स्थिति में ये सुधार अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक साबित हो सकते हैं। परंतु फिर भी हमारे यहां शेयरों की कीमत बहुत सीमित मात्रा में ही मजबूत होती दिखी है।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि यहां बात शेयर बाजार में निवेश को हतोत्साहित करने की नहीं है बल्कि उसे सही परिदृश्य में प्रस्तुत करने की है।
(लेखक भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली केंद्र के अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : January 21, 2022 | 11:16 PM IST