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बैंकों में भरोसे की नई शुरुआत: बिना दावे वाली रकम लौटाने की कवायद तेज

वित्त मंत्रालय चाहता है कि जमाकर्ताओं को पैसा लौटाने की प्रक्रिया, इस साल दिसंबर तक पूरी हो जाए। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- September 11, 2025 | 9:44 PM IST

वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग के सचिव नागराजू मद्दिराला ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों से 28 अगस्त को कहा कि वे ‘डीईएएफ’ खातों में पड़े जमाकर्ताओं के पैसे वापस करने के लिए जिलों में ब्लॉक स्तर के कार्यक्रम और एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करें। डीईएएफ दरअसल जमाकर्ता शिक्षा एवं जागरुकता निधि है। इसकी स्थापना 2014 में हुई थी। यह ऐसा फंड है जिसमें बैंकों के उन बिना दावे वाले जमा रकम, डिमांड ड्राफ्ट और अन्य वित्तीय साधनों को रखा जाता है, जो कम से कम 10 वर्ष से निष्क्रिय हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस कोष का प्रबंधन करता है। बैंक हर साल ऐसे बिना दावे वाले पैसों को आरबीआई को भेजते हैं, जो इस फंड का उपयोग वित्तीय शिक्षा और जमाकर्ताओं की सुरक्षा से जुड़े कामों के लिए करता है।

वित्त मंत्रालय चाहता है कि जमाकर्ताओं को पैसा लौटाने की प्रक्रिया, इस साल दिसंबर तक पूरी हो जाए। सरकारी बैंकों को इस पहल को सफल बनाने के लिए अपने व्यापक शाखा नेटवर्क को इस मुहिम में शामिल करना होगा। सितंबर 2024 तक, भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल 1,65,501 शाखाएं थीं। इनमें से 85,116 शाखाएं सरकारी बैंकों की थीं जिनका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में मौजूद है।

सरकारी बैंकों प्रमुखों के अलावा, उक्त बैठक में आरबीआई के गवर्नर, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष, और पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी मौजूद थे। केवल बैंक ही अकेले नहीं हैं जिनके पास बिना दावे वाले जमा रकम हैं। कई बीमा पॉलिसी भी निष्क्रिय पड़ी रहती हैं। भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के पास 21,718 करोड़ रुपये के बिना दावे वाले बीमा फंड पड़े हैं। डीईएएफ के विपरीत, इसका कोष कुछ वर्षों से घट रहा है।

मार्च 2024 में, यह कोष 20,062 करोड़ रुपये था, जो उस वित्त वर्ष की शुरुआत में 22,237 करोड़ रुपये था। इसके अलावा, इस साल 31 जनवरी तक सेबी के पास लगभग 323 करोड़ रुपये के लाभांश और 182 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां भी बिना दावे के पड़ी थीं। 31 मार्च, 2025 तक, डीईएएफ में 97,545 करोड़ रुपये थे। पिछले एक साल में इस कोष में 57 फीसदी की वृद्धि हुई है। 31 मार्च, 2024 को यह 78,213 करोड़ रुपये था। एक साल पहले, 31 मार्च, 2023 को यह 62,215 करोड़ रुपये था।

डीएफएस सचिव ने 10 जून को मुंबई में हुई वित्तीय स्थायित्व एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) की 29वीं बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के दिए संदेश को ही आगे बढ़ाया है। इस बैठक में, सभी नियामक और वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार मौजूद थे और यहां सीतारमण ने नागरिकों के हितों को सबसे ऊपर रखने और पैसे वापस लौटाने की प्रक्रिया सुचारू बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया था।

उस बैठक का मुख्य जोर आरबीआई के पास जमा हो रहे बिना दावे वाले रकम को समय पर वापस करने पर था। यह पैसा आम लोगों का है और इसे बिना किसी देरी के वापस किया जाना चाहिए। बैंकों की यह जिम्मेदारी है कि वे ग्राहक खातों को सक्रिय रखने और उन्हें निष्क्रिय होने से रोकने के लिए कदम उठाएं। एक बार जब कोई खाता निष्क्रिय हो जाता है और ग्राहक उसे फिर से चालू करना चाहता है तो वह अपने बैंक की शाखा में जाकर नए सिरे से ‘अपने ग्राहक को जानें’ (केवाईसी) दस्तावेज जमा कर, खाते को चालू कर सकता है।

इस पूंजी का एक बड़ा हिस्सा बचत एवं चालू खातों (कासा) का है ऐसे में यह हैरानी की बात है कि बैंक इन खातों को फिर से चालू करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। अपनी समय-सीमा पार कर चुके मियादी जमा भी ऐसे निष्क्रिय खातों का हिस्सा हैं।

जब ऐसे बैंक खाते 10 साल तक निष्क्रिय रहते हैं, तो उनमें जमा पैसा बैंकों के पास से डीईएएफ में चला जाता है, जिसका प्रबंधन आरबीआई करता है। इसी तरह, 10 साल तक किसी बीमा फंड का दावा अगर नहीं किया जाता, तब वह बीमा नियामक के पास चला जाता है। डीमैट खातों में ऐसी ही बिना दावे की जमा राशि बाजार नियामक के पास जमा हो जाती है।

सवाल यह है कि आखिर ये खाते निष्क्रिय क्यों हो जाते हैं और 10 साल तक इनकी कोई परवाह क्यों नहीं करता? इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खाताधारक का निधन, दूसरे शहर में चले जाना, या कभी-कभी जानकारी का अभाव। इन खातों में से ज्यादातर खाते उन ग्राहकों के हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है। उनके कानूनी वारिसों के लिए इन पैसों को वापस पाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इसके लिए लंबी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

इसके अलावा दूसरी अहम वजह यह भी होती है कि ग्राहक नौकरी के कारण किसी दूसरे शहर या राज्य में चले जाते हैं। ये ग्राहक अक्सर अपनी अधिकांश रकम निकाल लेते हैं और एक छोटी-सी रकम खाते में छोड़ देते हैं। इन खातों को बंद करना भी उतना ही मुश्किल है जितना किसी मृतक खाताधारक के पैसों पर दावा करना।

सवाल यह है कि बैंक अपने कम लागत वाले बचत खातों के इस महत्त्वपूर्ण हिस्से को डीईएएफ में क्यों जाने देते हैं? आखिर, एक बार पैसा जब इसमें चला जाएगा तब बैंक उसे उधार देने या उस पर ब्याज कमाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। पिछले साल, बैंकों ने लगभग 20,000 करोड़ रुपये की ऐसी निष्क्रिय बचत बैंक जमाएं आरबीआई को हस्तांतरित की।

एक ओर, जहां बैंक कम लागत वाली जमाएं जुटाने में संघर्ष कर रहे हैं, वहीं वे अपने मौजूदा ग्राहकों के फंड को सुरक्षित रखने में नाकाम हो रहे हैं। वहीं खराब सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) ढांचा और अपर्याप्त परिचालन समर्थन भी इस प्रक्रिया में बाधा डालते हैं। बड़े निजी बैंकों ने निष्क्रिय खातों का प्रबंधन अच्छी तरह से किया है लेकिन ऐसा लगता है कि 90 फीसदी डीईएएफ खाते सरकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों के हैं।

दूसरी ओर सीतारमण ने बैंकों औरआरबीआई को कहा है कि वे तकनीक और पुराने डेटा का इस्तेमाल करके निष्क्रिय खाताधारकों की पहचान करें, उनके संभावित कानूनी वारिसों तक पहुंचने की कोशिश करें, कागजी कार्रवाई और देरी को कम कर दावे की प्रक्रिया को आसान बनाएं और आरबीआई के उद्गम जैसे पोर्टल का इस्तेमाल करें जो बिना दावे वाली जमाओं का एकीकृत डेटाबेस है। कई जमाकर्ताओं के एक बैंक में सक्रिय और दूसरे बैंक में निष्क्रिय खाते होते हैं। इन जमाकर्ताओं का पता लगाकर एक कॉमन पोर्टल के जरिये उनके पैसे वापस लौटाना एक उपाय है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की मदद से मृतक खाताधारकों के कानूनी वारिसों का पता लगाकर भी उन्हें पैसा लौटाया जा सकता है।

इस तरह की पहल को एक वित्तीय योजना के तौर पर नहीं बल्कि बैंकिंग व्यवस्था में नागरिकों के विश्वास बहाली उपायों के तौर पर देखा जाना चाहिए। एक उत्तरदायी, समावेशी और जवाबदेह वित्तीय तंत्र अपने ग्राहकों को केंद्र में रखता है।


(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड के वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published : September 11, 2025 | 9:37 PM IST