किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इतिहास के दिक्कतदेह और अनिश्चित क्षेत्र में आखिर क्यों कूदे? जबकि यह क्षेत्र उनकी पार्टी के दो बड़े नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह को खासी मुश्किल में डाल चुका है। उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर की माफी की याचिका को लेकर जो स्पष्टीकरण दिया वह सही नहीं है। जब सावरकर जेल में थे तब उन्होंने तथा कई अन्य लोगों ने ब्रिटिशों के सामने माफी की याचिका पेश की थी। राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने ऐसा महात्मा गांधी के कहने पर किया जबकि यह आंशिक सत्य है। कुछ दिन बाद रक्षा मंत्री भारत की सुरक्षा और स्वतंत्रता में महिलाओं की भूमिका पर आयोजित शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक सम्मेलन में बोल रहे थे। वहां उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई और मैडम कामा की भूमिका को चिह्नित करने के अलावा कहा, ‘देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल कई वर्षों तक देश पर शासन किया बल्कि उन्होंने युद्ध काल में भी देश का नेतृत्व किया। इतना ही नहीं अभी हाल ही में प्रतिभा पाटिल भारत की राष्ट्रपति और भारत के सशस्त्र बलों की सुप्रीम कमांडर थीं।’
यह बात निर्विवाद है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता जो उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के प्रचार अभियान का मुकाबला कर रहे हैं, वे इस बात से थोड़ा खीझे हुए हैं कि रक्षा मंत्री ने शायद बोतल बंद जिन्न को जगा दिया है। क्या यह सब असामान्य है? सिंह भौतिक विज्ञान के शिक्षक रहे हैं और वह इतिहास से अधिक राजनीति से वाकिफ हैं। इतिहास के मोर्चे पर उनकी असावधानी की भरपाई अक्सर उनकी चतुराई भरी राजनीति से हो जाती है। भाजपा में ऐसा कोई अन्य नेता नहीं होगा जो संगठन या विभिन्न भाजपा नेताओं के लिए उतना भरोसेमंद रहा हो जितने कि राजनाथ सिंह हैं। दुख की बात है कि उन्हें इसका पर्याप्त श्रेय नहीं मिला।
अटल बिहारी वाजपेयी की तरह उन्हें भी गलत पार्टी में सही व्यक्ति कहा जा सकता है। सिंह ने हमेशा कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को भारत के नागरिकता कानूनों को धार्मिक पूर्वग्रह का मोड़ देने वाला नहीं समझा जाना चाहिए, पड़ोसी देशों के हिंदुओं की समस्याओं का हल नहीं समझा जाना चाहिए। यह पड़ोसी देशों के हिंदुओं की समस्या को लेकर प्रतिक्रिया थी। यह बात मुस्लिमों तथा अन्य अल्पसंख्यकों के इस डर को दूर करने के लिए कही गई जिसके तहत उन्हें लग रहा कि अगर वे अपनी नागरिकता का कोई सबूत नहीं दे पाए तो उन्हें किसी शिविर में भेज दिया जाएगा। जब उनके संसदीय क्षेत्र लखनऊ में सीएए विरोधी हिंसा भड़की थी तब उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने को कहा।
सच यह है कि योगी आदित्यनाथ के उभार के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में सिंह के लिए जगह कम हुई है। हालांकि सिंह को जब भी ‘ठाकुर’ नेता बताया गया वह नाराज हुए और उन्होंने इसका प्रतिवाद किया (ऐसी ही एक घटना में वह आडवाणी पर आपा खो बैठे थे), लेकिन हकीकत को स्वीकार करना होगा: उत्तर प्रदेश भाजपा में शीर्ष पर एक और राजपूत नेता की गुंजाइश नहीं है। इसलिए सिंह ने गरिमापूर्ण ढंग से आदित्यनाथ की स्थिति को स्वीकार कर लिया। हाल ही में महाराजगंज में आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर प्रशासक आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि योगी आदित्यनाथ उन्हें विविध भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में इज्जतदार बुजुर्ग की भूमिका आ पडऩे के बाद सिंह को केंद्र में अपनी राजनीति दुरुस्त करनी पड़ी। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान उनके बेटे पंकज सिंह पर कुछ आरोप लगे थे। इसके जवाब में उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी देते हुए कहा था, ‘मैं ऐसी राजनीति को ठोकर मारता हूं।’ भाजपा को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा। बाद में उन्हें कुछ महत्त्वपूर्ण कैबिनेट कमेटियों से हटा दिया गया। हालांकि कुछ समय बाद वह बहाल हो गए। इस विषय पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
बतौर भाजपा अध्यक्ष सिंह को कुछ अप्रिय निर्णय लेने पड़े थे। सन 2009 के आम चुनाव में भाजपा की हार के बाद जब उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिया तो सिंह को एक असाधारण कदम उठाते हुए ऐसे आदेश जारी करने पड़े थे कि यदि कोई शीर्ष नेतृत्व से अपनी शिकायत सार्वजनिक करेगा तो उससे कड़ाई से निपटा जाएगा। एक भाजपा नेता के मुताबिक वह लालकृष्ण आडवाणी की सलाहकार टोली और शेष पार्टी के बीच टकराव था जहां राजनाथ सिंह कुछ हद तक अपना इकबाल बचाए रखने का प्रयास कर रहे थे। जब गोवा में पार्टी की बैठक में मोदी ने सार्वजनिक रूप से शीर्ष पद का दावा पेश किया तो यह दायित्व सिंह पर आया कि वे ऐसा फैसला लें जो पार्टी और खासकर आडवाणी को स्वीकार्य हो। आडवाणी एक सार्वजनिक पत्र लिखकर उन पर हमला कर चुके थे। सिंह ने आदर्श भारतीय व्यक्ति की तरह आडवाणी की आलोचना को सर झुकाकर स्वीकार किया।
रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक उपयोग करने का काम दूसरों पर छोड़ दिया। जब भारतीय सेना और चीन की सेना सीमा पर एक दूसरे के सामने थीं तब भी उनके वक्तव्य नपेतुले रहे। उन्होंने कहा, ‘यह सही है कि चीन के लोग सीमा पर हैं। उनका दावा है कि यह उनका क्षेत्र है। हमारा दावा है कि यह हमारी जमीन है। इस बात पर असहमति है। और अच्छी खासी संख्या में चीन के लोग भी आ गए हैं। भारत ने वह सब किया है जो किया जाना चाहिए।’ कुछ ही लोगों को पता है कि इसके बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत में सिंह के संयम की सराहना की। यही बात चीन के भारतीय राजदूत विक्रम मिस्त्री से भी कही गई। सामरिक संयम के लिए दुनिया ने चाहे भारत की सराहना की हो लेकिन देश में राजनाथ सिंह ही इसके प्रतीक हैं।