भारी हंगामे के बीच संसद के शीतकालीन सत्र का पटाक्षेप हो गया। मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए इस बात की पहले से ही उम्मीद की जा रही थी कि संसद का शीतकालीन सत्र सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के बीच तनातनी का शिकार हो जाएगा। विपक्ष को इस सत्र में सरकार को घेरने का मौका मिला था मगर वह इसका लाभ नहीं उठा पाया। वर्ष 2004 से ही यह सिलसिला दिख रहा है जब संसद के भीतर विपक्ष हंगामा खड़ा करने के सिवाय सरकार को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया है।
करीब पिछले 20 वर्षों से विपक्षी दल कठोर हाव-भाव दिखाने में व्यस्त रहे हैं और राष्ट्रीय हितों के मुद्दे उठाने में चूक गए हैं। इस दौरान विपक्ष की एक खास रणनीति रही है और वह है संसद की कार्यवाही में बाधा डालना। यह किसी की समझ में अब तक नहीं आया है कि आखिर ऐसा करने से विपक्ष को क्या हासिल होता है। इस समय देश में महंगाई एक गरम मुद्दा है मगर कांग्रेस संसद में इसे लेकर बहस करना भूल गई। जितने भी आर्थिक विषय हैं उनमें महंगाई में राजनीतिक स्तर पर उथल-पुथल लाने की सर्वाधिक क्षमता होती है। यह ऐसा मुद्दा है जो सभी से जुड़ा हुआ है और लोगों के दिलो-दिमाग से लेकर उनकी क्रय शक्ति सभी पर असर डालता है। मगर इन बातों की परवाह किए बिना विपक्ष उन विषयों पर विरोध-प्रदर्शन करता रहा जो किसी लिहाज से महत्त्वपूर्ण नहीं थे। कोई पिता किसी कथित अपराध के लिए अपने पुत्र को दंडित करने नहीं जा रहा है! मगर विपक्ष यह समझ नहीं पाया और संसद की कार्यवाही प्रभावित होती रही।
विपक्ष उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के पुत्र की भूमिका के लिए उन्हें बर्खास्त करने की मांग कर रहा था। मगर यह लगभग तय हो गया था कि इस मुद्दे पर विपक्ष को कुछ हाथ लगने वाला नहीं है। कम से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले फरवरी-मार्च तक तो अजय मिश्र को बर्खास्त करने का कदम सरकार नहीं उठाएगी। राज्य के विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए अहम है और उतना ही अहम पार्टी के लिए ब्राह्मण मतदाताओं का साथ है।
कांग्रेस को इस बात से अवगत होना चाहिए था कि ऊंची महंगाई किसी सरकार के दोबारा सत्ता में आने की संभावनाओं पर किसी हद तक पानी फेर सकती है। वर्ष 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की वापसी की संभावनाओं पर ऊंची महंगाई ने विराम लगा दिया। यह तब हुआ जब महंगाई केवल एक वर्ष से ऊंचे स्तरों पर रही थी। यह तर्क भी दिया जा सकता है कि 2014 में देश की जनता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मतदान किया था मगर महंगाई दर नियंत्रण में रही होती तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार को 44 से अधिक सीटें मिली होतीं। देश में एक बार फिर महंगाई तेजी से बढ़ रही है। हालांकि यह अभी उस स्तर तक नहीं पहुंची है जितनी संप्रग सरकार के कार्यकाल में दिखी थी। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कुछ महीने पूर्व के अपने पूर्व के स्तर का गुणक होती हैं।
टमाटर के भाव हाल ही के समय में करीब 80 रुपये प्रति किलोग्राम रहे। पिछले कुछ महीनों पूर्व की कीमतों से तुलना करें तो यह लगभग दोगुना है। देश के कुछ हिस्सों में तो टमाटर का भाव 100 रुपये प्रति किलोग्राम का स्तर पार कर गया। प्याज की कीमतें भी फिर बढ़ गईं और इसके भाव नौ महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। इस बीच, अमूल और मदर डेरी जैसी दुग्ध उत्पादक कंपनियों ने दूध के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। इन कंपनियों ने कीमतें बढ़ाने के पीछे लागत में बढ़ोतरी का हवाला दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक पूर्व गवर्नर ने एक बार कहा था कि अगर आप आम लोगों को प्रभावित करने वाली बढ़ती महंगाई का आकलन करना चाहते हैं तो दूध और सब्जियों की कीमतों पर नजर रखें। उन्होंने कहा था कि इन दोनों वस्तुओं की कीमतें हर जगह लगभग एक समान ढंग से बढ़ती हैं। पेट्रोल और अन्य ईंधनों की महंगाई भी सभी को परेशान करती है। हाल में पेट्रोल एवं डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती जरूर की गई है मगर इससे कोई विशेष अंतर आता प्रतीत नहीं हो रहा है। अगर लोग जितनी कीमत का भुगतान करते हैं उसमें 50 प्रतिशत हिस्सा करों का हो तो लोग इसे कभी पचा नहीं पाएंगे। स्वाभाविक है इससे उनके मन में रोष पनपेगा।
रसोई गैस के उदाहरण पर ही विचार करें। घरों में इस्तेमाल होने वाले सिलिंडर की कीमत 900 रुपये (14.2 किलोग्राम) से अधिक है, वहीं 19 किलोग्राम वाले वाणिज्यिक सिलिंडर की कीमत हाल के महीनों में 350 रुपये से भी अधिक वृद्धि के साथ 2,100 रुपये हो गई है।
उज्ज्वला योजना से आम लोग स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल की ओर बढ़े थे मगर रसोई गैस की आसमान छूती कीमतों ने मामला बिगाड़ दिया है। कांग्रेस ने हाल में ही जयपुर में ‘महंगाई हटाओ’ रैली आयोजित की थी। मगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्राथमिकता कुछ और थी। महंगाई जैसा अहम विषय उठाने के बजाय उन्होंने हिंदू एवं हिंदुत्व के बीच अंतर स्पष्ट करना अधिक उचित समझा! अगर विपक्ष के इस रवैये के बीच भाजपा महंगाई जैसे मुद्दे पर बच निकलती है तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए।