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राज्यों को पूंजीगत व्यय मद में अधिक समर्थन

केंद्र की तरफ से राज्यों के लिए अधिक पूंजी आवंटित करना स्वागतयोग्य है मगर इस रकम का उपयोग अतिरिक्त सहायता के रूप में ही किया जाना चाहिए। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- July 27, 2023 | 9:36 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अब तक जितने बजट प्रस्तुत किए हैं उनकी एक विशेष बात यह रही है कि सरकार के पूंजीगत व्यय में लगातार बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में सरकार के पूंजीगत व्यय की हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 1.67 प्रतिशत रही थी। यह अनुपात कालांतर में धीरे-धीरे बढ़ता गया।

2020-21 में पूंजीगत व्यय बढ़कर जीडीपी का 2.15 प्रतिशत, 2021-22 में 2.53 प्रतिशत और 2022-23 में 2.67 प्रतिशत हो गया। चालू वित्त वर्ष में यह जीडीपी का 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। आखिरी बार 2004-05 में सरकार का पूंजीगत व्यय जीडीपी का 3 प्रतिशत से अधिक रहा था।

यह सराहनीय कदम था, विशेषकर इसलिए कि पूंजीगत व्यय में मामूली बढ़ोतरी कर वित्त मंत्री को राजकोषीय घाटा कम रखने में सहायता मिलती। वास्तव में उन्होंने इस स्पष्ट लाभ को नजरअंदाज कर दिया। यह वित्त मंत्री के उस संकल्प को दर्शाता है कि वह न केवल देश के आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ा रही हैं बल्कि निजी क्षेत्र से निवेश भी लाने का पूरा प्रयत्न भी कर रही हैं। पिछले कुछ समय से देश में निजी क्षेत्र से आने वाला निवेश सुस्त पड़ गया है।

सीतारमण का बजट पिछले कई वर्षों में किसी भी पांच वर्ष की अवधि में सरकार के पूंजीगत व्यय में सबसे तेज बढ़ोतरी के लिए याद रखा जाएगा। सरकार जिस तरह से सब्सिडी का बोझ वहन करती है, वित्त मंत्री ने उसमें पारदर्शिता लाने के लिए भी सभी संभावित उपाय किए हैं।

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मगर एक और महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। यह बदलाव कोविड महामारी के बाद पूंजीगत व्यय बजट की संरचना से संबंधित है। वर्ष 2021-22 में 5.93 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया गया था। इनमें 10,000 करोड़ रुपये की एक छोटी राशि भी थी जिन्हें राज्यों को 50 वर्षों के लिए ब्याज मुक्त ऋण के रूप में दिए जाने का प्रस्ताव था। मगर इसके लिए राज्य सरकारों को आर्थिक नीतियों में कुछ निश्चित सुधार करने के लिए कहा गया।

इसके अगले वर्ष में राज्यों को पूंजीगत व्यय समर्थन के रूप में 1 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इस तरह, राज्यों को 7.5 लाख करोड़ रुपये में 13 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आवंटित किया गया। यह हिस्सा 2023-24 में बरकरार रखा गया है और 10 लाख करोड़ रुपये में पूंजीगत व्यय परियोजनाओं के लिए राज्यों को 1.3 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। क्या पूंजीगत व्यय के मद में आवंटन बढ़ाने के बाद राज्यों ने अधिक पूंजीगत व्यय किए हैं?

ध्यान देने योग्य बात है कि जब 2021-22 में राज्यों को पूंजीगत व्यय के रूप में केवल 10,000 करोड़ रुपये दिए गए थे तो उस समय ज्यादातर राज्यों में पूंजीगत व्यय में भारी इजाफा हुआ था। आधिकारिक आंकड़े दर्शाते हैं कि 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का पूंजीगत व्यय 2020-21 में दर्ज 4 लाख करोड़ रुपये से लगभग 32 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 5.31 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया था।

इसका कारण यह था कि सरकार ने कोविड महामारी के दौरान लोगों को राहत देने के लिए खर्च बढ़ाना शुरू कर दिया था। एक और बात यह दिखी कि सरकार से कम समर्थन मिलने के बावजूद राज्यों ने पूंजीगत व्यय के मद में अधिक खर्च करना शुरू कर दिया था। 2021-22 में केवल तीन राज्यों- आंध्र प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम- के पूंजीगत आवंटन में कमी दर्ज की गई और यह 10-13 प्रतिशत के दायरे में रही।

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मगर एक चौंकाने वाली बात भी थी। वर्ष 2022-23 में जब कोविड महामारी थमती नजर आई तो इन 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का पूंजीगत व्यय महज 12 प्रतिशत बढ़कर 5.97 लाख करोड़ रुपये तक सीमित रहा। यह मामूली बढ़ोतरी तब हुई थी जब केंद्र ने पूंजीगत व्यय समर्थन के रूप में राज्यों को 1 लाख करोड़ रुपये के समर्थन की पेशकश की थी।

ऐसा क्यों हुआ? केंद्र से 1 लाख करोड़ रुपये मिलने के बाद भी राज्यों के पूंजीगत व्यय में केवल 66,000 करोड़ रुपये बढ़ोतरी हुई। कम से कम आठ राज्यों में पूंजीगत आवंटन में भारी कमी आई। आंध्र प्रदेश के पूंजीगत व्यय में 55 प्रतिशत, पंजाब और हरियाणा में 17-17 प्रतिशत, तेलंगाना में 38 प्रतिशत, असम में 20 प्रतिशत और नगालैंड में 18 प्रतिशत कमी दर्ज की गई।

इसके उलट, कई बड़े राज्यों में वर्ष 2022-23 में पूंजीगत व्यय में भारी अंतर से हुआ। बिहार में 29 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ और गुजरात में 27-27 प्रतिशत, हरियाणा में 17 प्रतिशत, झारखंड में 49 प्रतिशत, केरल में 13 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 32 प्रतिशत, ओडिशा में 45 प्रतिशत, त्रिपुरा में 48 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 31 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 26 प्रतिशत इजाफा हुआ। कर दिया। तमिलनाडु और उत्तराखंड अपवाद रहे क्योंकि उनके पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी एक अंक- क्रमशः 7 प्रतिशत और 9 प्रतिशत- में रही।

इसके चार प्रमुख संभावित कारण हो सकते हैं। पहला कारण यह हो सकता है कि कोविड महामारी धीरे-धीरे कमजोर होने से राज्य रोजगार बढ़ाने के लिए पूंजीगत परियोजनाओं पर अधिक व्यय करने में रुचि नहीं ले रहे हैं। दूसरा कारण यह हो सकता है कि जिन राज्यों में पूंजीगत व्यय में कमी देखी गई वे या तो क्रियान्वयन के योग्य परियोजनाओं की कमी से जूझने लगे या रकम उपलब्ध रहने के बावजूद इनका इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं हो पाए।

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तीसरा कारण यह हो सकता है कि कई राज्यों ने केंद्र से समर्थन के रूप में मिले 1 लाख करोड़ रुपये का उपयोग अपने फायदे के लिए किया और अपना बजट आवंटन बढ़ा दिया। चौथी बात यह हो सकती है कि कई राज्यों ने मूल रूप से पूंजीगत परियोजनाओं के लिए केंद्र से मिले धन का उपयोग राजस्व व्यय के तहत अन्य योजनाओं के लिए किया होगा।

कारण कुछ भी हो, मगर केंद्र से पर्याप्त समर्थन मिलने के बावजूद 2021-22 में राज्यों के लिए पूंजीगत व्यय में सुस्त बढ़ोतरी से पूंजीगत व्यय की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए सहायता की प्रकृति या नीतिगत पहल पर गंभीर रूप से पुनर्विचार की जरूरत महसूस हो सकती है। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में इन राज्यों ने पूंजीगत आवंटन में 37 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान जताया है।

संभवतः केंद्र से लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये मिलने के बाद वे उत्साहित हो गए थे। मगर 2022-23 में जो हुआ उसे देखते हुए इस बात को लेकर अब गंभीर संदेह जताए जा रहे हैं कि ये राज्य पूंजीगत व्यय में अनुमानित बढ़ोतरी का लक्ष्य हासिल कर पाएंगे या नहीं।

पूंजीगत परियोजनाएं क्रियान्वित करने में रकम इस्तेमाल करने की राज्यों की क्षमता निश्चित रूप से चिंता का कारण है। इससे भी चिंता की बात यह है कि तेज रफ्तार से इन परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने के लिए भी कोई त्वरित समाधान मौजूद नहीं है।

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एक और गंभीर चिंता की बात यह है कि क्या कुछ राज्य केंद्र से मिलने वाली रकम का बेजा इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं। राज्यों को केंद्र से मिली रकम का इस्तेमाल पूंजीगत व्यय का लक्ष्य पूरा करने और अपने वित्तीय संसाधनों का इस्तेमाल लोकलुभावन योजनाओं के लिए करना राजनीतिक रूप से अधिक सुविधाजनक लगता होगा।

केंद्रीय वित्त मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूंजीगत व्यय मद में केंद्र से राज्यों को मिलने वाली रकम प्रभावी रूप से निर्धारित लक्ष्य के लिए अतिरिक्त समर्थन के रूप में ही इस्तेमाल हो, न कि राज्य अपने वित्तीय संसाधन दूसरे व्यय मदों में खर्च कर केंद्र से प्राप्त सहायता का इस्तेमाल अपनी पूंजीगत परियोजनाओं के लिए करें।

First Published : July 27, 2023 | 9:36 PM IST