मई में मौद्रिक नीति समिति ने एक अनियत बैठक आयोजित करके रीपो दर में 40 आधार अंकों का इजाफा किया था। परंतु बुधवार को आयोजित समिति की निर्धारित बैठक ने वित्तीय बाजारों को कतई चकित नहीं किया। भारतीय रिजर्व बैंक की दरें तय करने वाली इस समिति ने जून में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि नीतिगत रीपो दर में 50 आधार अंकों का और इजाफा करके इसे 4.9 प्रतिशत कर दिया जाए। स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी दर और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर को भी इसी अनुरूप समायोजित किया गया।
वित्तीय बाजार इस बात से राहत में थे कि नीतिगत दरों में इजाफे के साथ नकद आरक्षित अनुपात में बढ़ोतरी नहीं की गई। परंतु यह राहत शायद लंबी न टिके। आरबीआई के गवर्नर के वक्तव्य तथा मौद्रिक नीति समिति के प्रस्ताव से यह साफ संकेत मिलता है कि नीतिगत दरों में इजाफा किया जाएगा तथा अतिरिक्त नकदी समाप्त की जाएगी।
नकदी की स्थिति तथा भविष्य की दरों के दायरे की बात करें तो दो अहम बातें ध्यान देने लायक हैं। पहली बात, मौद्रिक नीति समिति ने अपने रुख में ‘उदारतापूर्ण’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है और अब वह इस उदारता को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसका इस्तेमाल केंद्रीय बैंक के रुख को भ्रामक बना रहा था। दूसरी बात, मौद्रिक नीति समिति ने अपने मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान में 100 आधार अंकों का संशोधन किया था। अब उसे आशा है कि चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति की दर औसतन 6.7 प्रतिशत रहेगी। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि समिति का अनुमान है कि मुद्रास्फीति की दर वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में तयशुदा दायरे से अधिक रहेगी। कानून के मुताबिक इसे लक्ष्य प्राप्ति में विफलता माना जाएगा। ऐसे हालात में कानून की ओर से निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए तो इस विफलता का कारण बताने के साथ-साथ प्रस्तावित कदमों की भी जानकारी देनी होती है। इससे केंद्रीय बैंक पर गंभीर दबाव पड़ सकता है तथा नीतिगत दरों में तेज इजाफा देखने को मिल सकता है। कई अर्थशास्त्रियों ने भी अनुमान जताया है कि मुद्रास्फीति की दर रिजर्व बैंक के संशोधित अनुमान से ऊपर रहेगी। ऐसे में ब्याज दर और बढ़ सकती है।
नीतिगत दरों में लगातार इजाफे का असर ऋण दरों पर भी होगा। बल्कि बाजार की ब्याज दरों में होने वाला इजाफा नीतिगत दरों में इजाफे से अधिक हो सकता है क्योंकि नकदी समाप्त करने से मुद्रा की लागत प्रभावित होगी। हालांकि व्यवस्था में नकदी का स्तर कम हुआ है लेकिन यह अभी भी काफी अधिक है और लक्षित बाजार दर नीतिगत दर से काफी नीचे है। घरेलू ब्याज दरों के अधिक होने तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावों मसलन धीमी वैश्विक वृद्धि, ऊंची जिंस कीमतों तथा वित्तीय हालात सख्त बनाने से अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावनाएं प्रभावित होंगी। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि अनुमान को 7.2 प्रतिशत रखा है। क्षमता के इस्तेमाल में सुधार हो रहा है जिससे कुछ नया निवेश आ सकता है। कॉर्पोरेट तथा बैंक बैलेंस शीट दोनों में सुधार से भी मदद मिल सकती है।
चालू वित्त वर्ष के वृद्धि आंकड़े, खासकर पहली छमाही के आंकड़े गत वर्ष के कमजोर आधार से संचालित होंगे। सुधार की वास्तविक शक्ति की परीक्षा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में होगी जब वृद्धि के करीब 4 फीसदी के कमजोर स्तर पर रहने का अनुमान है। कुल मिलाकर देखें तो अर्थव्यवस्था को अगली कुछ तिमाहियों में अहम समझौते करने होंगे क्योंकि वैश्विक हालात प्रतिकूल हैं, घरेलू मुद्रास्फीति तथा ब्याज दर ऊंचे स्तर पर हैं जो वृद्धि और परिसंपत्ति मूल्य दोनों को प्रभावित करेंगे। जब तक मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब नहीं लाया जाता है अनिश्चितता यूं ही बनी रहेगी।