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ऋण और जमा संतुलन का समाधान वास्तविक अर्थव्यवस्था में, मिंट स्ट्रीट पर नहीं

बैंकों के ऋण में सुधार के लिए रिजर्व बैंक की मदद की आवश्यकता क्यों है? क्या इससे ऋण में मंदी की समस्या हल हो जाएगी? सवाल उठा रही हैं

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प्रांजुल भंडारी   
Last Updated- August 06, 2025 | 10:42 PM IST

बाजार की स्मृति अल्पकालिक हो सकती है। गत वर्ष लगभग इसी समय हम कमजोर जमा वृद्धि को लेकर बातें कर रहे थे। आज, हम कमजोर ऋण वृद्धि को लेकर चिंतित हैं। हमारा मानना कि इन दोनों अवधियों में एक बात समान है। एक ओर जहां मदद के लिए सभी की निगाहें भारतीय रिजर्व बैंक की ओर जाती हैं, वहीं केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति संबंधी उपायों को अपनाकर इस समस्या को आंशिक रूप से ही दूर कर सकता है। इसके बजाय दोनों ही मामलों में समस्या की जड़ और उसका वास्तविक हल कहीं और है: वास्तविक अर्थव्यवस्था और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के घटक। इसे समझते हैं।

गत वर्ष जमा में कमी की समस्या दोहरी थी। एक तो धीमी जमा वृद्धि को लेकर चिंताएं थीं और दूसरे संरचनागत बदलाव (बहुत कम स्थिर जमा, ज्यादा समय पूर्व निकासी योग्य जमा) को लेकर चिंताएं। एक बार मुद्रास्फीति की दर में गिरावट शुरू होने के बाद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति शिथिल कर दी और बुनियादी मौद्रिक वृद्धि पर जोर दिया। वास्तविक जमा वृद्धि 2025 के आरंभ से बढ़ने लगी।

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परंतु क्या पूरी समस्या हल हो गई? शायद नहीं। जमा के घटकों की समस्या बरकरार रही। समयपूर्व निकासी योग्य कॉरपोरेट जमा की बहुत अधिक मात्रा और बहुत कम स्थिर खुदरा पारिवारिक जमा के रूप में यह दिक्कत सामने आई। हम मानते हैं कि यह रिजर्व बैंक के नियंत्रण में नहीं है। इसके बजाय इसकी जड़ें वास्तविक अर्थव्यवस्था में हैं। महामारी के कुछ साल बाद पूंजी पर प्रतिफल श्रम पर प्रतिफल यानी पगार में बढ़त की तुलना में अधिक था। इससे बचत संबंधी आचरण का पता लगाया जा सकता है। वर्तमान की बात करें तो चिंताएं पूरी तरह उलट चुकी हैं। वास्तविक जमा वृद्धि कुछ समय की कमजोरी के बाद बढ़ने लगी लेकिन वास्तविक ऋण वृद्धि में कुछ समय की मजबूती के बाद गिरावट आने लगी। इसकी कई वजह हो सकती हैं। इनमें कम जीडीपी वृद्धि से लेकर असुरक्षित ऋण में बढ़ा जोखिम आदि शामिल हैं।

परंतु यह अहम क्यों है? जीडीपी वृद्धि बीती कुछ तिमाहियों में नरम हुई है। पिछली चार तिमाहियों में यह सालाना आधार पर औसतन 6.5 फीसदी रही जबकि इससे पहले की आठ तिमाहियों में यह 8.5 फीसदी थी। ऋण वृद्धि जीडीपी वृद्धि को प्रभावित करती है और इसका उलट भी सत्य है। ऐसे में अगर ऋण वृद्धि को आगे बढ़ाया जा सका तो जीडीपी वृद्धि भी वापस आ सकती है।

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क्या रिजर्व बैंक मददगार हो सकता है? हां ऐसा हो सकता है और हुआ भी है। रिजर्व बैंक ने वर्ष 2025 के आरंभ से ही नकद आरक्षित अनुपात और रीपो दर में 100-100 आधार अंकों की कमी की है। उसने सिस्टम में 10 लाख करोड़ रुपये मूल्य की नकदी भी डाली है। दरों में इस कटौती का अच्छा असर हुआ है।

क्या इससे ऋण में सुस्ती की समस्या हल हो जाएगी? शायद नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह जमा घटक की जड़ें गत वर्ष वास्तविक अर्थव्यवस्था में थीं उसी तरह ऋण में कमी का मुद्दा भी वास्तविक अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। कमजोर वृद्धि के कारण ऋण की मांग कम है। इससे भी अहम बात यह कि वृद्धि के बदलते घटकों की भी इसमें भूमिका है।

हमने पाया कि कुछ साल की मजबूत वृद्धि के बाद 2025 में औपचारिक क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है। ऐसा इक्विटी बाजार के प्रतिफल और वेतन वृद्धि दोनों में धीमापन आने की बदौलत हो रहा है। दूसरी ओर, लंबे समय की कमजोरी के बाद असंगठित क्षेत्र में सुधार हो रहा है। इसमें बेहतर मौसम का भी योगदान है क्योंकि इससे खेती से होने वाली आय सुधार रही है और मुद्रास्फीति में कमी आने से क्रय शक्ति बढ़ रही है। संगठित से असंगठित क्षेत्र की ओर विकास संरचना में यह तब्दीली ऋण वृद्धि पर असर डाल सकती है। गत वर्ष तक निवेश के लिए ऋण की मांग मजबूत बनी हुई थी क्योंकि संगठित क्षेत्र के परिवार अचल संपत्ति में निवेश कर रहे थे। इस बीच खपत के लिए ऋण की मांग भी मजबूत बनी हुई थी। असंगठित क्षेत्र के परिवारों की हालत कमजोर थी और उन्हें अपनी खपत संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा था।

अब जबकि संगठित क्षेत्र की तकदीर उतनी तेजी से नहीं उभर रही थी जैसी कि वह पहले थी तो इस क्षेत्र में भी दीर्घकालिक वित्तीय ऋण मसलन आवास ऋण आदि को लेकर पहले जैसी इच्छा नहीं दिख रही थी। ऐसे में व्यक्तिगत ऋण में धीमापन आ रहा था। इस बीच असंगठित क्षेत्र को उच्च वास्तविक आय से लाभ हो रहा था और उसे खपत पूरी करने के लिए व्यक्तिगत ऋण की आवश्यकता नहीं महसूस हो रही थी। इस तरह, ऋण वृद्धि पर दोनों सिरों से दबाव है। आखिर रास्ता क्या है? हम पाते हैं कि समय के साथ ऋण वृद्धि के कारक में तब्दीली आई है।

वित्त वर्ष 18 में समाप्त दशक को हम भारतीय बैंकों के बहुत ज्यादा फंसे हुए कर्ज के कारण दोहरी बैलेंस शीट समस्या के लिए जानते हैं। उस समय ऋण की आपूर्ति भी एक समस्या थी। परिसंपत्ति गुणवत्ता पहचान के एक कठिन दौर के बाद, बैंकों के एनपीए में कमी आई। वित्त वर्ष 18 के बाद ऋण वृद्धि का मुख्य कारक मांग रही है।

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सवाल यह है कि ऋण की मांग को कैसे बढ़ावा दिया जाए? रिजर्व बैंक ने दरों में कटौती के जरिये अहम भूमिका निभाई है। इससे अगली कुछ तिमाहियों में ऋण की मांग बढ़ेगी लेकिन जैसी कि हमने ऊपर चर्चा की, मौजूदा ऋण वृद्धि की समस्या की जड़ें जीडीपी वृद्धि के घटक में निहित हैं। उसे हल करने से हम अधिक स्थायी समाधान की दिशा में बढ़ पाएंगे।

हम मानते हैं कि रिजर्व बैंक को यह पता है। नीतिगत नरमी की एक अवधि के बाद वह दोबारा सामान्यीकरण और वृहद स्थायित्व पर ध्यान दे रहा है। हाल ही में वेरिएबल रेट रिवर्स रीपो जारी करने के कदम, जो अतिरिक्त तरलता को हटाने और कॉल मनी रेट को नीतिगत रीपो दर के अधिक निकट लाने के उद्देश्य से उठाए गए हैं, हमारे दृष्टिकोण से इसी दिशा में संकेत करते हैं।  यह समन्वय भारत की मुद्रास्फीति की लक्ष्य निर्धारण प्रणाली का एक मूल स्तंभ है।

रिजर्व बैंक यदि ऋण वृद्धि को एक सीमा से आगे नहीं ले जा सकता है तो हमें वास्तविक अर्थव्यवस्था को गति देने का कोई और तरीका तलाश करना होगा। ऐसे में सुधार हमारी मदद कर सकते हैं। ऐसे समय में जबकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं एक बार फिर पुनर्गठित हो रही हैं तो ऐसे में अगर भारत सही सुधार कर सका और अधिक सार्थक उत्पादक और निर्यातक बन सका तो निवेश और वृद्धि दोनों में सुधार होगा। इससे ऋण की मांग में भी सुधार हो सकता है। अवसर स्पष्ट हैं। आपूर्ति श्रृंखलाएं मोटे तौर पर मध्यम तकनीक वाली वस्तुओं की दिशा में पुनर्गठित हो रही हैं। भारत इस अवसर का लाभ उठा सकता है क्योंकि हमारे यहां श्रमिक भी हैं और किफायती वेतन लागत का फायदा भी। ऐसा करने के लिए हमें सही सुधारों की जरूरत है। यानी- मध्यवर्ती कच्चे माल पर कम शुल्क दरें, अन्य देशों के साथ अधिक कारोबारी समझौते, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर और खुलापन तथा विभिन्न राज्यों में कारोबारी सुगमता बढ़ाना। अगर भारत सही सुधारों को अपनाता है तो उच्च ऋण वृद्धि और जीडीपी वृद्धि भी हासिल होंगे।

(लेखिका एचएसबीसी की प्रबंध निदेशक, वैश्विक अनुसंधान, और भारत एवं इंडोनेशिया की मुख्य अर्थशास्त्री हैं।)

First Published : August 6, 2025 | 10:32 PM IST