प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
फेडरल बैंक ने घोषणा की है कि अमेरिकी निवेश फर्म ब्लैकस्टोन अपनी सहयोगी एशिया II टॉपको XIII के जरिये 6,196.51 करोड़ रुपये के निवेश से उसकी 9.99 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। इसके लिए निजी नियोजन के आधार पर तरजीही शेयर जारी किए जाएंगे।
फेडरल बैंक इस सौदे के लिए 27.29 करोड़ वारंट जारी करेगा और हर वारंट को 227 रुपये प्रति शेयर कीमत (225 रुपये प्रीमियम सहित) के साथ 2 रुपये अंकित मूल्य के पूर्ण चुकता शेयर में परिवर्तित किया जाएगा। वारंट को शेयर में बदले जाने के बाद ब्लैकस्टोन की फेडरल बैंक में 9.99 फीसदी हिस्सेदारी हो जाएगी जो नियामकीय एवं शेयरधारकों की मंजूरी पर निर्भर करेगी।
वारंट में आवंटन की तारीख से 18 महीने की अवधि होगी और इसे एक या अधिक किस्तों में भुनाया जा सकेगा। निवेशक को सबस्क्रिप्शन के समय निर्गम मूल्य का 25 फीसदी भुगतान करना होगा और शेष 75 फीसदी रकम का भुगतान वारंट के शेयर में बदलने पर किया जाएगा। अगर वारंट को अवधि के खत्म होने तक शेयर में नहीं बदला गया तो वह लैप्स हो जाएगा और उस पर भुगतान की रकम जब्त कर ली जाएगी।
ब्लैकस्टोन को बैंक के बोर्ड में एक सेवानिवृत्त गैर-कार्यकारी निदेशक को नामित करने का विशेष अधिकार भी दिया गया है। यह सभी वारंट के भुनाए जाने और बैंक की कम से कम 5 फीसदी चुकता शेयर पूंजी होने पर ही हो सकेगा। बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर फेडरल बैंक का शेयर आज 1.12 फीसदी बढ़त के साथ 227.40 रुपये पर बंद हुआ।
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फेडरल बैंक का कोई प्रवर्तक नहीं है और उसके सभी शेयर आम शेयरधारकों के पास हैं। बैंक ने तरजीही निर्गम जारी करने और बोर्ड में नामित करने के अधिकार संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए 19 नवंबर, 2025 को शेयरधारकों की एक असाधारण आम बैठक (ईजीएम) बुलाई है। इसका आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये किया जाएगा। ई-वोटिंग के लिए रिकॉर्ड तिथि 12 नवंबर, 2025 तय की गई है।
भारत के बैंकिंग क्षेत्र में विदेशी निवेश की झड़ी लग गई है। पिछले सप्ताह अमीरात एनबीडी ने घोषणा की थी कि वह 3 अरब डॉलर के निवेश से आरबीएल बैंक में 60 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करेगी। यह भारत के निजी बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़ा विदेशी निवेश होगा। इस साल की शुरुआत में जापान के एसएमबीसी ने येस बैंक में 24 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। इससे पहले वारबर्ग पिंकस और अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (एडीआईए) ने आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में 87.7 करोड़ डॉलर का निवेश किया था।
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मैक्वेरी कैपिटल के प्रबंध निदेशक एवं प्रमुख (वित्तीय सेवा शोध) सुरेश गणपति ने कहा, ‘लघु एवं मझोले आकार के बैंकों को बड़े बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अधिक पूंजी, बेहतर प्रौद्योगिकी, दमदार प्रशासन, सख्त नियंत्रण और विशेषज्ञता एवं ज्ञान की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘आरबीआई इसे भलीभांति समझता है। साथ ही हमें लंबी अवधि के लिए विदेशी पूंजी की जरूरत भी है। वोट देने का अधिकार 26 फीसदी तक सीमित है और आरबीआई दमदार नियामकीय ताकत एवं कानूनी नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी (डब्ल्यूओएस) ढांचे पर जोर दे रहा है।’