भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को कहा कि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) की स्थिरता के लिए जरूरी है कि इस पर आने वाली लागत कोई न कोई वहन करे। उन्होंने कहा कि सरकार इस समय इन लागतों पर सब्सिडी दे रही है, जिससे अंतिम उपभोक्ता इस सेवा का मुफ्त में इस्तेमाल कर सकें। उन्होंने यह भी साफ किया कि उपयोगकर्ताओं को यूपीआई लेनदेन के लिए भुगतान नहीं करना होगा।
मल्होत्रा ने इस बात पर जोर दिया कि यूपीआई पर आने वाली लागत का भुगतान किया जाना चाहिए, यह ज्यादा जरूरी नहीं है कि कौन इस लागत का बोझ उठा रहा है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘इसकी लागतें हैं। किसी न किसी को तो इसे चुकाना ही होगा। कौन चुकाता है, यह महत्त्वपूर्ण है, लेकिन उतना महत्त्वपूर्ण नहीं, जितना कि बिल चुकाया जा रहा है। (यूपीआई की) स्थिरता के लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि सामूहिक रूप से या व्यक्तिगत रूप से, कोई न कोई इसका भुगतान करे।’
इसके पहले एक सार्वजनिक मंच पर मल्होत्रा ने कहा था कि यूपीआई भुगतान व्यवस्था के लिए सरकार विभिन्न हिस्सेदारों को सब्सिडी दे रही है, लेकिन इसकी कुछ लागत का भुगतान किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘मेरा कहना यह है कि इस समय भी यह मुफ्त नहीं है। कोई इसका भुगतान कर रहा है, सरकार इस पर सब्सिडी दे रही है। लेकिन, कहीं न कहीं से इस लागत का भुगतान किया जाना चाहिए। सरकार की नीति से यूपीआई के विस्तार को बढ़ाने में मदद मिली है।’
केंद्र सरकार हर साल यूपीआई को बढ़ावा देने के लिए पियर-टु-मर्चेंट (पी2एम) लेनदेन और रुपे डेबिट कार्ड से लेनदेन के लिए एक निश्चित राशि देती है। यह राशि बैंकों और फिनटेक कंपनियों को हर वित्त वर्ष के आखिर में दी जाती है।