लेख

नेतृत्व, नियंत्रण और निरंतरता: लिस्टिंग को लेकर उलझन — टाटा ग्रुप में क्या चल रहा है?

स्टील से सॉफ्टवेयर तक फैले इस ग्रुप की हो​ल्डिंग कंपनी में लगभग 66% हिस्सेदारी रखने वाले टाटा ट्रस्ट ने इस मामले में इतनी जल्दी और इतने समय पहले क्यों गंभीरता से विचार किया?

Published by
निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- August 13, 2025 | 11:18 PM IST

टाटा संस के सबसे बड़े शेयरधारक, टाटा ट्रस्ट‌्स ने हाल ही में कार्यकारी अध्यक्ष एन. चंद्रशेखरन (जो चंद्रा के नाम से मशहूर हैं) का कार्यकाल पांच साल के लिए और बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया। इस खबर ने दुनिया का ध्यान खींचा। इसके कई कारण हैं। पहला कारण जिसने उद्योग विशेषज्ञों को हैरान किया, वह था इस प्रस्ताव को पारित करने का समय। चंद्रा का दूसरा कार्यकाल फरवरी 2027 तक है जिसमें अभी 18 महीने का वक्त है। स्टील से सॉफ्टवेयर तक फैले इस समूह की हो​ल्डिंग कंपनी में लगभग 66 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले टाटा ट्रस्ट ने इस मामले में इतनी जल्दी और इतने समय पहले क्यों गंभीरता से विचार किया?

वर्ष 2022 में, चंद्रा को जब टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल मिला था तब क्या ऐसा कुछ हुआ था? बिल्कुल नहीं। 11 फरवरी, 2022 को टाटा संस के निदेशक मंडल ने कथित तौर पर उनके पहले पांच साल के कार्यकाल की समीक्षा की और फिर अगले कार्यकाल के लिए उन्हें फिर से नियुक्त कर दिया।

रतन टाटा उस समय टाटा ट्रस्ट‌्स के अध्यक्ष और टाटा समूह के मानद अध्यक्ष थे। उस वक्त टाटा संस की बोर्ड बैठक में उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था और उन्होंने चंद्रा के कार्यकाल में पांच साल का विस्तार करने की सिफारिश की थी। यह घटना, चंद्रा के पहले कार्यकाल के खत्म होने से सिर्फ 10 दिन पहले हुई थी। ये सारी बातें सामान्य प्रक्रिया जैसी लग रही थीं। उस समय चंद्रा की पुनर्नियुक्ति से पहले टाटा ट्रस्ट का कोई प्रस्ताव नहीं आया था।

फरवरी 2017 में एन. चंद्रशेखरन के टाटा संस के चेयरमैन बनने से पहले साइरस मिस्त्री इस पद पर थे लेकिन उनके कार्यकाल में विस्तार करने का मौका ही नहीं आया। अक्टूबर 2016 में कथित रूप से भरोसे और प्रदर्शन से जुड़े मसलों को लेकर मिस्त्री को, टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। मिस्त्री को हटाने के बाद, टाटा संस के बोर्ड ने रतन टाटा को अंतरिम गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया, जबकि अगले कार्यकारी अध्यक्ष की तलाश के लिए एक समिति बनाई गई। हालांकि बाद में कंपनी के आतंरिक उम्मीदवार चंद्रशेखरन को टाटा संस का शीर्ष नेतृत्व करने के लिए चुना गया जो टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) थे।

मिस्त्री से पहले, रतन टाटा 1991 से 2012 तक 21 साल तक टाटा संस के चेयरमैन रहे। लेकिन वह 75 साल की उम्र में इस पद से हट गए। रतन टाटा असल में टाटा संस और टाटा ट्रस्ट‌्स दोनों के अध्यक्ष थे, ऐसे में यह आखिरी बार था जब एक ही व्यक्ति ने यह दोहरी भूमिका निभाई। टाटा ट्रस्ट‌्स की तरफ से भी शीर्ष पद पर नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति के लिए किसी प्रस्ताव की जरूरत नहीं पड़ी। जेआरडी टाटा के मामले में भी यही स्थिति थी। वह 1938 में नौरोजी सकलतवाला के बाद टाटा समूह के प्रमुख बने और अगले 53 साल तक इस पद पर रहे।

अब हम इस विषय पर फिर से वापस आते हैं कि टाटा ट्रस्ट‌्स द्वारा टाटा संस के अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने के हालिया प्रस्ताव का क्या महत्त्व है? प्रक्रिया के मुताबिक, इस प्रस्ताव को, मंजूरी के लिए टाटा संस के बोर्ड के सामने रखा जाएगा। हालांकि ऐसे किसी प्रस्ताव के बिना भी टाटा संस अपने समूह के नेतृत्व के बारे में फैसला लेता ही। आमतौर पर, पेशेवर तरीके से चलाई जाने वाली कंपनियों में जब किसी नेतृत्वकर्ता का कार्यकाल खत्म होने वाला होता है, तब तीन विकल्प होते हैं: अगर नियमों की अनुमति हो तब मौजूदा नेतृत्वकर्ता का कार्यकाल बढ़ाना, अगले नेतृत्वकर्ता की तलाश करने के लिए एक समिति बनाना या

शीर्ष पद के लिए किसी आंतरिक उम्मीदवार का चुनाव करना। लेकिन यह मामला सिर्फ नियुक्ति या दोबारा नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में नहीं है। इस मामले में टाटा संस के सबसे बड़े शेयरधारक, टाटा ट्रस्ट‌्स ने आंतरिक स्तर पर और बाहरी स्तर पर यह संदेश भेजा है कि वह मौजूदा चेयरमैन के नेतृत्व का समर्थन करता है। निश्चित रूप से सबसे बड़े शेयरधारक के तौर पर, टाटा ट्रस्ट‌्स की राय की अनदेखी नहीं की जा
सकती है।

चूंकि टाटा ट्रस्ट‌्स ने उसी बैठक में एक और अहम मामले पर प्रस्ताव पारित किया है, तो स्थिति थोड़ी जटिल दिखती है। प्रस्ताव के अनुसार, टाटा ट्रस्ट‌्स चाहता है कि अध्यक्ष चंद्रा और टाटा संस का बोर्ड दो काम करे- पहला, टाटा संस के दूसरे सबसे बड़े शेयरधारक के तौर पर शापूरजी पालोनजी समूह की हिस्सेदारी खत्म करने की दिशा में काम करे। दूसरा, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से बात करके टाटा संस को सार्वजनिक सूचीबद्धता की अनिवार्यता से बाहर रखा जाए।

अहम बात यह है कि सितंबर 2022 में आरबीआई ने टाटा संस को एक ऊपरी-श्रेणी की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी घोषित की थी। इस वर्गीकरण के तहत टाटा संस के लिए तीन साल के भीतर शेयर बाजार में सूचीबद्धता कराना अनिवार्य है। आरबीआई के पास टाटा संस का यह अनुरोध लंबित है, जिसमें उसने ऊपरी-श्रेणी की मुख्य निवेश कंपनी के वर्गीकरण में बदलाव की मांग की है।

टाटा संस की सूचीबद्धता से जुड़ी आरबीआई की समयसीमा अब करीब आ रही है ऐसे में उद्योग के जानकार टाटा ट्रस्ट‌्स के प्रस्ताव में शामिल तीनों बिंदुओं को एक साथ जोड़कर देख सकते हैं। इसका मतलब यह हो सकता है कि सबसे बड़े शेयरधारक, सिर्फ मौजूदा अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने की बात नहीं कर रहे, बल्कि इसके साथ दो और शर्तें जोड़ रहे हैं, जिसमें शापूरजी पलोनजी समूह की हिस्सेदारी बेचना और टाटा संस को प्राइवेट कंपनी बनाए रखने की बात शामिल है। ये शर्तें समूह के नेतृत्व की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम मानी जा सकती हैं।

रतन टाटा के बाद के दौर में, नोएल टाटा (टाटा ट्रस्ट‌्स के अध्यक्ष) और टाटा संस के बीच संबंधों को लेकर उत्सुकता बनी हुई है। सवाल यह है कि क्या सबसे बड़ा शेयरधारक समान बात कह रहा है? अगर ऐसा है और नोएल टाटा को ट्रस्ट के लोगों का पूरा समर्थन मिल रहा है तब इसका व्यापक अर्थ यह है कि टाटा समूह की नीतियों की निरंतरता बनी रहेगी। लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो हो सकता है कि टाटा ट्रस्ट के भीतर नियंत्रण की बात और परोपकारिता के पहलू के बीच कुछ पक रहा हो। परोपकारिता टाटा ट्रस्ट‌्स का मुख्य उद्देश्य रहा है और यही रहना चाहिए।

First Published : August 13, 2025 | 11:15 PM IST