लेख

पारिवारिक आय सर्वेक्षण: कठिन सवालों के जवाब पाना आसान नहीं होगा

आय सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं की अनिच्छा, कम प्रतिक्रिया दर और गलत अनुमान की संभावना को मुख्य चुनौतियों के रूप में सामने लाया गया है

Published by
एस चंद्रशेखर   
Last Updated- November 23, 2025 | 9:27 PM IST

एक आदर्श दुनिया में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा अगले वर्ष आयोजित पारिवारिक आय सर्वेक्षण (एचआईएस) में भाग लेने वाले लोग (उत्तरदाता) फिल्म ‘दीवार’ के ‘विजय’ जैसे होंगे। उस अमर संवाद को याद कीजिए जब अमिताभ बच्चन (विजय), शशि कपूर (रवि) से कहते हैं: ‘आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है।’ माना कि यह बातचीत दो भाइयों के बीच हो रही है न कि एक सर्वेक्षक और एक उत्तरदाता के बीच। अगर परिवार अपनी प्रतिक्रियाएं देने में इतने ही तत्पर हों तो एचआईएस का संचालन बहुत आसान होगा।

पिछले 75 वर्षों में सांख्यिकीय प्रणाली ने दो कारणों से उपभोग व्यय के सर्वेक्षण किए हैं। पहला, परिवार आय के बजाय उपभोग व्यय का खुलासा करने में अधिक सहज होते हैं। दूसरा, भारत में खाद्य-सुरक्षा और भूख की समस्या थी और उपभोग पर ध्यान केंद्रित करना समझ में आता था। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत परिवारों की आय के बारे में जानकारी एकत्र नहीं करता है।

वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में परिवारों के सभी कामकाजी सदस्यों की श्रम-बाजार आय के बारे में जानकारी होती है। कृषि परिवारों का स्थिति आकलन सर्वेक्षण (एसएएस) कृषक परिवारों से उनकी आय के विभिन्न स्रोतों के बारे में जानकारी एकत्र करता है। परिवारों की आय के बारे में जानकारियां अन्य स्रोतों से भी उपलब्ध हैं, जिनमें भारत मानव विकास सर्वेक्षण, उपभोक्ता पिरामिड पारिवारिक सर्वेक्षण, नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण आदि शामिल हैं।

एचआईएस की योजना के हिस्से के रूप में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सर्वेक्षण आयोजित करने में आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए एक प्रायोगिक सर्वेक्षण आयोजित कर सावधानी बरतने का निर्णय लिया है। इसमें क्षेत्रों से मिली प्रतिक्रिया प्राथमिक चिंता की पुष्टि करती है। वह चिंता यह है कि 95 फीसदी उत्तरदाताओं ने साक्षात्कारकर्ता को आय के विभिन्न स्रोतों के बारे में जानकारी देने में सहज महसूस नहीं किया।

चूंकि, परिवार अपनी आय कम कर बताते हैं, इसलिए कुछ को ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। अधिकांश उत्तरदाताओं ने भुगतान किए गए आयकर पर सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया। इन कारणों से विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों से लाभ प्राप्त करने वाले परिवारों और व्यक्तियों की संख्या के सर्वेक्षण-आधारित अनुमान हमेशा प्रशासनिक आंकड़ों में बताए गए आंकड़ों से कम होंगे।

सर्वे के समय के संबंध में भी एक और चुनौती है। अगर उत्तरदाता कामकाजी सदस्य है तो वह व्यक्ति सुबह काम के लिए तैयार होने में व्यस्त रहता है, दिन के दौरान काम पर होता है और शाम को थका-हारा घर पहुंचता है। तो क्या हम परिवार के गैर-कामकाजी सदस्य को उत्तरदाता बना सकते हैं?

एचआईएस से प्राप्त जानकारियां महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि अधिकांश भारतीय अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं और आयकर रिटर्न नहीं भरते हैं। यह सर्वेक्षण न केवल श्रम आय पर जानकारी एकत्र करने के बारे में है बल्कि निवेश से होने वाली आय के बारे में भी है। यह पूरी तरह संभव है कि परिवार यह कहकर जवाब दे सकते हैं कि वे निवेश नहीं करते हैं। ‘संतोषजनक’ के रूप में जानी जाने वाली यह घटना तब होती है जब उत्तरदाता सटीक उत्तर देने के बजाय वह कहते हैं कि जो वह ठीक समझते हैं। यह मुद्दा अखिल भारतीय ऋण एवं निवेश सर्वेक्षण, 2026 में सामने आएगा। परिवार अपनी वित्तीय संपत्तियों के बारे में जानकारी देने में अनिच्छुक हो सकते हैं।

हितधारकों को महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। क्या होगा अगर वर्तमान सर्वेक्षणों की तरह प्रतिक्रिया दर 100 फीसदी से काफी कम होती है? गैर-श्रम आय पर प्रश्नों के लिए प्रतिक्रिया न मिलने की दर अधिक होने की संभावना है। पिछली तिमाही में प्राप्त ब्याज के सवाल पर क्या यह ठीक है यदि उत्तरदाता कहते हैं कि उन्हें उत्तर नहीं पता है। या अनुमानित उत्तर पर्याप्त हैं? क्या आप, पाठक, अपनी ब्याज आय बिना पता किए बता सकते हैं? कृषि परिवारों के स्थिति आकलन सर्वेक्षण का समय एचआईएस के साथ टकराएगा। स्थिति आकलन सर्वेक्षण के आधार पर कृषि परिवारों की आय का अनुमान लगाया जाता है।

एक केंद्रित सर्वेक्षण होने के नाते इस सर्वेक्षण में प्रत्येक प्रश्न को जिस तरह अलग-अलग स्तर पर पूछा जाता है वह आय सर्वेक्षण की तुलना में अधिक है। सर्वेक्षण-पद्धति सामग्री से एक अंतर्दृष्टि यह मिलती है कि जब प्रश्नों को उच्च स्तर के पृथक्करण यानी अलग-अलग स्तर पर पूछा जाता है तो एक प्रश्न की तुलना में जानकारी अधिक सटीक रूप से प्राप्त होती है। जब तक विश्लेषक इस तरह के अंतरों को ध्यान में नहीं रखते हैं तब तक दो सर्वेक्षणों में अनुमानों की तुलना करने से गलत निष्कर्ष निकलेंगे।

अगर इतनी सारी समस्याएं हैं तो एचआईएस आयोजित करने जहमत क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें उपभोग व्यय के सर्वेक्षण के आधार पर गरीबी के अनुमानों से आगे बढ़ने और आय की पर्याप्तता पर बातचीत शुरू करने की आवश्यकता है। यह याद रखना उचित है कि ‘जीवन यापन के लिए वेतन-पारिश्रमिक’ और ‘एक स्तरीय जीवन स्तर’ शब्द भारत के संविधान के अनुच्छेद 43 में उल्लिखित हैं।

आइए हम स्वीकार करें कि एचआईएस 2026 को क्रियान्वित करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। चुनौतियों को देखते हुए सर्वेक्षण टीम का आदर्श वाक्य फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में ‘सर्किट’ (अरशद वारसी) के संवाद को प्रतिध्वनित करना चाहिए ‘फुल कॉन्फिडेंस में जाने का और एकदम विनम्र के साथ बात करने का’।

(लेखक क्रमशः इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : November 23, 2025 | 9:27 PM IST