अर्थव्यवस्था

चीन से निवेश पर लगी रोक हट सकती है! उच्चस्तरीय समिति ने सरकार को दिए दो बड़े विकल्प

उच्चस्तरीय समिति द्वारा प्रेस नोट 3 की समीक्षा करते हुए चीन से निवेश पर लगी पाबंदियों को हटाने या चरणबद्ध ढील देने की सिफारिश की गई है और निर्णय डीपीआईआईटी को सौंपा गया है

Published by
श्रेया नंदी   
Last Updated- November 23, 2025 | 11:03 PM IST

नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने सिफारिश की है कि सरकार चीन से आने वाले निवेश पर प्रतिबंध हटा ले अथवा पाबंदियों में चरणबद्ध तरीके से ढील देन पर विचार करे। इस मामले से अवगत सूत्रों ने यह जानकारी दी। चीन से निवेश पर पाबंदियां 5 साल से अ​धिक समय से बरकरार हैं।

समिति ने अपनी एक आंतरिक रिपोर्ट को अक्टूबर में अंतिम रूप दिया। उसमें उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) को दोनों विकल्पों पर विचार करने और 31 दिसंबर तक कोई अंतिम निर्णय लेने का सुझाव दिया गया है। यह एक ऐसा निर्णय होगा जिससे चीन से आने वाले निवेश के प्रति भारत के नजरिये में बदलाव आएगा। चीन से विदेशी निवेश को बढ़ावा दिए जाने से भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जुड़ने में भी मदद मिलेगी। साथ ही इससे चीन को निर्यात भी बढ़ सकता है।

गैर-वित्तीय नियामकीय सुधार पर उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट में दो विकल्प सुझाए गए हैं। एक सूत्र ने बताया कि एक विकल्प प्रेस नोट 3 को वापस लेना है। इसका मतलब यह होगा कि चीन सहित भूमि सीमा वाले पड़ोसी देशों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।

मौजूदा एफडीआई नियमों के अनुसार, भारत के साथ भूमि सीमा वाले देशों- चीन, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार- से आने वाले किसी भी निवेश प्रस्ताव के लिए पहले सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य है। यह उन मामलों पर भी लागू होता है जहां निवेशक इनमें से किसी भी देश से हो।

प्रेस नोट 3 के तहत भारत ने अपनी ​स्थिति में बदलाव किया था।

ऐसा कोविड-19 वै​श्विक महामारी के दौरान घरेलू कंपनियों पर वित्तीय दबाव के मद्देनजर किया गया था ताकि उन्हें किसी भी अवसरवादी अधिग्रहण से बचाया जा सके। हालांकि इसका उद्देश्य सीमा पर तनाव के बीच चीन से होने वाले निवेश पर रोक लगाना था। 17 अप्रैल, 2020 से पहले चीन से आने वाले निवेश के लिए पहले सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होती थी।

समिति के अनुसार, दूसरे विकल्प के तहत 10 फीसदी से कम लाभकारी स्वामित्व वाले निवेश प्रस्तावों की अनुमति देकर प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है। इसका मतलब यह है कि किसी कंपनी में 10 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले चीन के अथवा भूमि सीमा वाले किसी भी पड़ोसी देश के निवेशक को निवेश करने की अनुमति होगी। सूत्रों ने बताया कि इसके लिए न्यूनतम 10 फीसदी हिस्सेदारी के साथ लाभकारी स्वामित्व की परिभाषा तैयार करनी होगी। इसके अलावा, गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में कुल मिलाकर 49 फीसदी तक निवेश के लिए चीन एवं भूमि सीमा वाले अन्य देशों के निवेशकों को अनुमति दी जानी चाहिए। यह निवेश कैबिनेट सचिव की

अध्यक्षता वाली एक समिति की मंजूरी पर निर्भर करेगा। हालांकि निवेश हासिल करने वाली भारतीय कंपनी पर सबसे बड़े शेयरधारक का प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। एफडीआई नीति के तहत रणनीतिक क्षेत्रों में दूरसंचार, बिजली, अंतरिक्ष, रक्षा, पेट्रोलियम और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं।

पिछले साल की आ​र्थिक समीक्षा में चीन प्लस वन रणनीति का फायदा उठाने के लिए एक द्विआयामी रणनीति का प्रस्ताव दिया गया था। उसमें कहा गया था कि चीन की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होकर अथवा चीन से एफडीआई को प्रोत्साहित करते हुए ऐसा किया जाना चाहिए।

समीक्षा में कहा गया था, ‘भारत के पास चीन प्लस वन रणनीति का फायदा उठाने के लिए दो विकल्प हैं: वह चीन की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल हो सकता है अथवा चीन से एफडीआई को बढ़ावा दे सकता है। इनमें चीन से एफडीआई पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर विकल्प दिख रहा है क्योंकि इससे अमेरिका को निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह बिल्कुल उसी तरह की रणनीति है जिसे पूर्वी एशियाई देशों ने अपनाई थी। चीन प्लस वन रणनीति का फायदा उठाने के लिए एफडीआई पर ध्यान केंद्रित करना व्यापार पर निर्भर रहने के मुकाबले अधिक फायदेमंद लगता है।’

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कैलेंडर वर्ष 2025 में जनवरी से जून की अव​धि में चीन से एफडीआई 9.1 लाख डॉलर रहा जबकि इस दौरान देश में 2.8 करोड़ डॉलर का एफडीआई इक्विटी निवेश हुआ। नीति आयोग ने इस संबंध में बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा भेजे गए सवालों का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया।

First Published : November 23, 2025 | 11:03 PM IST