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अतार्किक विकल्प: क्या राह से भटक गए हैं FII, निफ्टी में तेजी के बीच कैसे DII और विदेशी निवेशकों के रुख में हुआ अंतर?

जून 2022 और 20 सितंबर 2024 के बीच बाजार में तेजी के दौरान एफआईआई शुद्ध बिकवाल रहे थे! जी हां, आपने ठीक ही पढ़ा। उन्होंने 1.82 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

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देवाशिष बसु   
Last Updated- September 26, 2024 | 9:19 PM IST

नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का मानक सूचकांक निफ्टी जून 2022 के मध्य से 69 प्रतिशत उछल चुका है। जून मध्य में निफ्टी 15,183 अंक पर था मगर अब यह 25,791 अंक तक पहुंच चुका है। पिछले 18 महीनों में इसमें 52 प्रतिशत उछाल आई है।

ऐसा लग रहा है कि खुदरा निवेशकों, म्युचुअल फंड और अन्य देसी संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने बाजार में तेजी से मोटा मुनाफा कमाया है। हां, आंख मूंदकर दांव लगाने वाले डेरिवेटिव कारोबारियों को जरूर नुकसान हुआ है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक अध्ययन के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में डेरिवेटिव कारोबारियों ने 51,689 करोड़ रुपये का घाटा झेला है।

विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का क्या रुख रहा? यह माना जा सकता है कि अपने अथाह अनुभव, गहरे शोध और बड़ी रकम हाथ में होने के कारण उन्हें बाजार में भारी तेजी के दौरान मोटा मुनाफा कमाना चाहिए था। लेकिन एफआईआई के बारे में यहां कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए जा रहे हैं।

जून 2022 और 20 सितंबर 2024 के बीच बाजार में तेजी के दौरान एफआईआई शुद्ध बिकवाल रहे थे! जी हां, आपने ठीक ही पढ़ा। उन्होंने 1.82 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे। सबसे बड़ी बिकवाली जून 2022 में हुई। नवंबर 2021 से बाजार में कमजोरी का दौर शुरू हुआ था और जून 2022 में वह एकदम नीचे चला गया था।

बाजार इतना नीचे था तब भी एफआईआई ने घबराहट में 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेच डाले। वर्ष 2021 के अंत से भारतीय एवं वैश्विक बाजार ऊंचे मूल्यांकन, अमेरिका में मुद्रास्फीति में तेजी, चीन में कोविड के बाद कमजोर सुधार और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण बाजार गिरने लगे थे। आखिर एफआईआई ने जून 2022 में किन्हें शेयर बेचे? ये शेयर डीआईआई ने खरीदे थे। जून में जब बाजार नीचे था तब डीआईआई ने 47,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे थे।

यही बाद में भी दोहराया गया। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष जनवरी में अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से बाजार में खलबली मच गई तो डीआईआई को अच्छा मौका मिल गया और उन्होंने 33,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर खरीद लिए। इसी दौरान एफआईआई ने घबराकर 41,000 करोड़ रुपये के शेयर बेच डाले।

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि माहिर निवेशकों से भी कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं मगर बाजार में ऐसी किसी भी बड़ी घटना पर एफआईआई ने घटिया फैसले लेकर चौंकाया। एफआईआई ने पिछले साल मई और जून में बढ़-चढ़ कर निवेश किया मगर जैसे ही तेजी शुरू हुई तो अगले तीन महीनों में उन्होंने बिकवाली आरंभ कर दी।

उन्होंने 76,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जो डीआईआई ने खरीद (70,000 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध खरीदारी) लिए। जब नवंबर 2023 में बाजार ऊपर भागा तो डीआईआई को मोटा फायदा हुआ। इससे एफआईआई का फैसला कहीं न कहीं बचकाना लगने लगा।

एफआईआई तब भी नहीं संभले और इस साल केवल मार्च को छोड़कर जनवरी और मई के बीच शुद्ध बिकवाल रहे। मार्च में उन्होंने 3,300 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे थे। आम चुनाव से ठीक पहले के कुछ महीनों में एफआईआई ने 1.26 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे जबकि डीआईआई ने 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के शेयरों की लिवाली की।

एफआईआई का फैसला एक बार फिर गलत साबित हुआ। जिस दिन लोक सभा चुनाव के परिणाम आ रहे थे उस दिन बाजार धड़ाम से जरूर गिरा मगर उसके बाद से लगातार तेजी बनी हुई है। आश्चर्य की बात है कि पिछले चार महीनों के दौरान एफआईआई ने काफी छोटे स्तर पर खरीदारी की और अगस्त में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की बिकवाली की।

अलबत्ता सितंबर में अब तक वे शुद्ध खरीदार रहे हैं। ये आंकड़े बड़े सौदों (बल्क डील) के बाद कुछ बदल सकते हैं मगर रुझान मोटे तौर पर स्पष्ट हैं। बाजार में तेजी के पिछले 29 महीनों में देसी संस्थागत निवेशकों ने 5.91 लाख करोड़ रुपये से अधिक के शेयर खरीदे और एफआईआई ने 1.82 लाख करोड़ रुपये के शेयरों की शुद्ध बिकवाली की।

हालात कितने बदल गए हैं! एक दौर था, जब भारतीय बाजार में एफआईआई का दबदबा इतना अधिक था कि दिवंगत आर रवि मोहन (तब क्रिसिल के प्रबंध निदेशक) ने इस समाचार पत्र से कहा था, ‘एफआईआई के प्रति लोगों का सम्मान अब डर और खुशी की मिली-जुली भावना में बदल गया है।’

आश्चर्य की बात यह नहीं है कि एफआईआई हालात भांप नहीं पाए। पेशेवर निवेशक भी कभी-कभी गलती कर बैठते हैं। उनकी शांत, पेशेवर और गहरे शोध एवं सोच विचार के बाद सही दाम पर खरीदारी करने की छवि अक्सर गलत साबित हो जाती है। मगर उनसे गलतियां अक्सर जान-बूझकर लिए गए फैसलों का नतीजा होती हैं न कि लापरवाही का।

बाजार में तेजी के दौरान एफआईआई अधिक चढ़ने वाले शेयर खरीदते हैं और खुदरा निवेशकों की तरह व्यवहार करते हैं। वर्ष 1994 में उन्होंने परिसंपत्तियों से भारी मगर कमजोर संचालन वाली भारतीय कंपनियों पर बड़े दांव लगाए थे। 1999 में भी तेजी के दौरान उन्होंने सॉफ्टवेयर कंपनियों पर दांव लगाए थे। ऐसा उन्होंने दूसरे निवेशकों को देखते हुए या कयासों से प्रभावित होकर अथवा कीमतें बढ़ने की उम्मीद में किया था।

एफआईआई ने 60 से 80 प्रतिशत तक रकम तकनीक, मीडिया एवं दूरसंचार कंपनियों में काफी महंगे शेयरों में झोंक दी। 2005 से 2008 के दौरान बाजार में शानदार तेजी के समय उन्होंने रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचा कंपनियों में ज्यादा निवेश कर दिया, जिसका नतीजा उनके लिए कमजोर प्रतिफल के रूप में सामने आया।

यह पहला मौका है जब एफआईआई वे निर्णय नहीं ले पाए, जो उनकी रणनीति के लिए सही बैठते। वे उच्च गुणवत्ता वाली बुनियादी क्षेत्र की कंपनियों, रक्षा एवं हरित ऊर्जा एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों में तेजी का लाभ नहीं ले पाए। इनमें कई कंपनियों के प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि यह स्थिति क्यों आई है।

आखिरकार पेशेवर निवेश में तगड़ी होड़ होती है और प्रदर्शन को कसौटी पर हर महीने कसा जाता है। इस वजह से संस्थागत निवेशक बाजार में तेजी से चढ़ते शेयर खरीदते हैं और तेजी थमने पर उन्हें बेच देते हैं। उनके लिए चढ़ते हुए शेयर खरीदने से रुकना मुमकिन नहीं हो पाता। पिछले 30 वर्षों में पहली बार मैंने देखा है कि एफआईआई धारा के विपरीत तैर रहे हैं। अब फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें घटा दी हैं और भारत सरकार ने भी आर्थिक वृद्धि को ताकत देने वाली नीतियां जारी रखने के संकेत दिए हैं तो क्या एफआईआई अपना रवैया बदलेंगे?

(आंकड़ों के कई स्रोत हैं मगर लेख में नकदी-बाजार निवेश के अस्थायी आंकड़े इस्तेमाल किए गए हैं। अन्य स्रोतों से आंकड़े अधिक एफआईआई निवेश दिखा सकते हैं।)

(लेखक डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक एवं मनीलाइफ फाउंडेशन के न्यासी हैं)

First Published : September 26, 2024 | 9:19 PM IST