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नए भारत का विचार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 3:42 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने जी 7 शिखर बैठक में यह रेखांकित किया कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता ‘भारत की सभ्यता के मूल्य’ हैं। उन्हें इसलिए भी सराहा जाना चाहिए कि उन्होंने ‘मुक्त समाज के वक्तव्य’ को अपनाते हुए ‘ऑनलाइन और ऑफलाइन अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा, लोकतंत्र के बचाव और लोगों को भय और दमन से मुक्त जीवन जीने में मदद मुहैया कराने’ का बचाव किया। मुक्त समाजों को लेकर एक आभासी सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में आमंत्रित मोदी ने कहा कि भारत जी 7 का ‘नैसर्गिक सहयोगी’ है। उन्होंने अतिथि राष्ट्रों से कहा कि वे इन मूल्यों को ‘अधिनायकवाद, आतंकवाद और विद्वेषपूर्ण चरमपंथ, गलत सूचना और आर्थिक अवपीडऩ से बचाएं।’ मोदी ने दुनिया के सर्वाधिक ताकतवर लोकतांत्रिक देशों के मंच से यह अहम वक्तव्य उस समय दिया है जब हमारे देश में ही इन मूल्यों के लिए भारी जोखिम है।
ऐसी कोई वजह नहीं है कि उनकी बातों पर विश्वास न किया जाए। सरकार के लिए भी यह उपयोगी होगा कि वह प्रधानमंत्री की बात से संदेश ग्रहण करे और तत्काल ऐसा एजेंडा अपनाए जिससे इन मूल्यों में बेहतरी आए। ऐसा इसलिए कि वैश्विक सूचकांकों में अभिव्यक्ति की आजादी के मानकों पर भारत तेजी से नीचे फिसला है।
उदाहरण के लिए 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में 142वें स्थान पर आया जबकि 2016 में वह 133वें स्थान पर था। सन 2020 में पहली बार जारी अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति सऊदी अरब और लीबिया के समकक्ष है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 161 वर्ष पुराने राजद्रोह के कानून के तहत दर्ज मामलों की तादाद भी 2016 से 2019 के बीच 160 फीसदी बढ़ गई। इसके अलावा कई अन्य कानूनों के तहत भी सैकड़ों पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों को आतंक और गैर कानूनी गतिविधियों के चलते बंदी बनाया गया। इनमें से अनेक के खिलाफ बहुत कम प्रमाण थे और कई को तो बंदी प्रत्यक्षीकरण का अधिकार तक नहीं दिया गया। इन तथ्यों को देखें तो लगता नहीं कि प्रशासन लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध है।
चूंकि अभिव्यक्ति की आजादी के उल्लंघन के इन मामलों में ढेर सारे राज्य प्रशासनों से संबद्ध हैं इसलिए मोदी चाहें तो एक लकीर खींच सकते हैं। इसकी शुरुआत के लिए एक बेहतर बिंदु यह हो सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणियों और निर्णयों पर ध्यान दिया जाए और संसद राजद्रोह संबंधी कानूनों की उचित व्याख्या करे। यह कानून एक औपनिवेशिक सरकार का बनाया हुआ है जिसका लक्ष्य था शासन की आलोचना को रोकना। एक लोकतांत्रिक देश में इन कानूनों की कोई जगह नहीं। साथ ही उन कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, हास्य कलाकारों और कार्टूनिस्टों को माफी दी जा सकती है जिन्हें सरकार की आलोचना के संदेह में जेल भेजा गया। जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को भी राज्य का शत्रु नहीं माना जाना चाहिए और उन पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या के षडयंत्र जैसे हास्यास्पद इल्जाम नहीं लगाए जाने चाहिए।
जिन जी 7 देशों के साथ मोदी ने मुक्त समाजों के बारे में चर्चा की उन्होंने आलोचना को लेकर काफी उदारता का प्रदर्शन किया है। यह एक बुनियादी मूल्य है जिसके साथ नाजुक मिजाज नेता जीना सीखते हैं। मोदी अपने लिए भी स्वतंत्र प्रेस का अवसर जुटा सकते हैं। उन्हें बस एक संवाददाता सम्मेलन  को संबोधित करना होगा जहां पूछे जाने वाले प्रश्न उन्हें पहले से ज्ञात न हों। हकीकत में उन्होंने जो बातें कहीं उनके अनुपालन के लिए जरूरी है कि कुछ ऐसी गलतियों से बचा जाए जो विगत सात वर्ष में हुई हैं।

First Published : June 14, 2021 | 9:04 PM IST