समय उपयोग सर्वेक्षण (टीयूएस) यह समझने में काफी सहायक होता है कि विभिन्न उम्र दायरे में आने वाले लोग (महिला एवं पुरुष) सवैतनिक एवं अवैतनिक गतिविधियों में किस तरह शिरकत करते हैं। टीयूएस आंकड़े दर्शाते कि किस प्रकार स्त्री-पुरुष मानदंड और सामाजिक भूमिकाएं पुरुषों और महिलाओं के समय के विभाजन को प्रभावित करती हैं, चाहे वह घर के भीतर हो या व्यापक समाज में। महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक कार्यों पर विचार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अवैतनिक घरेलू एवं देखभाल कार्यों पर स्त्री-पुरुष, उम्र और स्थान के आधार पर व्यतीत समय की गणना के लिए टिकाऊ विकास, 2030 की अपनी कार्य योजना (एजेंडा) में एक संकेतक की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य नारी-पुरुष समानता एवं महिला सशक्तीकरण की प्रगति पर नजर रखना है।
समय उपयोग पर भारत में सर्वेक्षणः भारत में वर्ष 2019 और 2024 में समय उपयोग पर दो सर्वेक्षण किए गए। इन सर्वेक्षणों में प्रत्येक परिवार में 6 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की 24 घंटे (साक्षात्कार के एक दिन पहले 4 बजे सुबह से लेकर साक्षात्कार के दिन 4 बजे सुबह तक) की बीच की गतिविधियां दर्ज की गईं। प्रत्येक सर्वेक्षण में लगभग 4.5 लाख लोगों की प्रत्येक दिन नौ बड़ी गतिविधियों का अध्ययन किया गया। इस नमूने में लगभग 60 फीसदी लोग ग्रामीण और 40 फीसदी शहरी क्षेत्रों के थे।
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भारतीय युवा के समय के उपयोग का प्रारूपः राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 के अनुसार भारत में 15-29 वर्ष के ‘युवाओं’ की एक बड़ी आबादी है। जनसंख्या अनुमानों पर तकनीकी समूह ने उनकी आबादी वर्ष 2024 में 37 करोड़ (1.41 अरब लोगों में) रहने का अनुमान लगाया था। उनकी इतनी बड़ी आबादी को देखते हुए उनके समय के उपयोग का अध्ययन महत्त्वूर्ण हो जाता है।
वर्ष 2019 में प्रति दिन 1,440 मिनट में से भारतीय युवाओं ने रोजगार-संबंधित गतिविधियों पर 148 मिनट खर्च किए। यह आंकड़ा 2024 में बढ़कर 158 मिनट हो गया। वित्त वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के सबस्क्राइबर की संख्या वित्त वर्ष 2019 के 61 लाख से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 1.31 करोड़ हो गई। गौर करने वाली बात यह है कि इन शुद्ध पेरोल वृद्धि में 29 वर्ष से कम उम्र के लोगों की संख्या लगभग 61 फीसदी थी। इसके अलावा, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 2019 की तुलना में वर्ष 2024 में काफी कम हो गई।
वर्ष 2019 में काम के अलावा भारतीय युवाओं ने सीखने और लोगों से घुलने-मिलने, दोनों में से प्रत्येक पर 125 मिनट बिताए। 136 मिनट उन्होंने खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों पर खर्च किए जबिक 171 मिनट घरलू एवं देखभाल के कार्यों पर बिताए। शेष बचे 735 मिनट उन्होंने अपनी देखभाल एवं अन्य गतिविधियों पर खर्च किए। वर्ष 2024 तक खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों पर आवंटित समय बढ़कर 156 मिनट हो गया जबकि सीखने (124 मिनट), बिना भुगतान वाले घरेलू एवं देखभाल कार्यों (177 मिनट) पर व्यतीत समय में तुलनात्मक रूप से कोई बदलाव नहीं दिखा। खुद की देखभाल पर व्यतीत समय भी 2024 में काफी कम हो गया।
समय उपयोग में ग्रामीण-शहरी अंतरः तेज शहरीकरण, व्यापक विकास और ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के उभरते अवसरों के कारण वर्ष 2024 में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में युवाओं के बीच समय के उपयोग में समानता बढ़ गई। ग्रामीण क्षेत्र के युवा अब अपनी देखभाल गतिविधियों के बाद अधिकतर समय रोजगार संबंधित कार्यों पर बिता रहे हैं। 2019 में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं ने ज्यादातर समय घरेलू सदस्यों के लिए अवैतनिक कार्यों पर (स्वः देखभाल छोड़कर) बिताए जबकि शहरी क्षेत्र के युवाओं ने अपने समय मुख्य रूप से रोजगार संबंधित गतिविधियों पर खर्च किए। वर्ष 2024 तक रोजगार से जुड़ी गतिविधियों पर व्यतीत समय ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में तेजी से बढ़ गया।
वर्ष 2018-2019 से 2023-2024 तक ग्रामीण युवाओं के मामले में श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 37.8 फीसदी से बढ़कर 48.1 फीसदी हो गई जबकि कामगार आबादी अनुपात 31.7 फीसदी से बढ़कर 44 फीसदी हो गया। वैतनिक या भुगतान वाले कार्यों में हाल में बढ़ोतरी संकेत देती है कि सरकार द्वारा व्यापक प्रशिक्षण एवं कौशल विकास कार्यक्रमों से युवा श्रम बाजार में उतरने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं।
समय उपयोग में नारी-पुरुष असामनताः युवा पुरुष एवं महिलाएं वैतनिक और अवैतनिक सेवाओं पर अपने समय का आवंटन जिस रूप में करते हैं उसमें बड़ी असमानता दिखी है। ‘परिवार के सदस्यों के लिए एक दिन में प्रति व्यक्ति अवैतनिक घरेलू एवं देखभाल सेवाओं पर व्यतीत औसत समय’ के अनुमान बताते हैं कि 2019 में युवा पुरुष और महिलाओं के मामले में यह क्रमशः 2.22 फीसदी और 21.60 फीसदी रहा और 2024 में क्रमशः 2.36 फीसदी और 22.01 फीसदी दर्ज किया गया। इस तरह, अवैतनिक कार्य योगदान में नारी-पुरुष असमानता में कोई बड़ी गिरावट नहीं देखी गई।
स्त्री-पुरुष समानता की तरफ कदमः पिछले पांच वर्षों के दौरान श्रम बल में महिलाओं की हिस्सेदारी में भारी इजाफा हुआ है। वर्ष 2018-19 और 2023-24 के बीच ग्रामीण महिलाओं के लिए एलएफपीआर लगभग दोगुना हो गई। ग्रामीण क्षेत्र में यह 15.8 फीसदी से बढ़कर 30.8 फीसदी हो गई जबकि शहरी क्षेत्र में 17.1 फीसदी से बढ़कर 23.8 फीसदी हो गई। श्रम बल में और अधिक युवा महिलाओं के शामिल होने से रोजगार संबंधित गतिविधियों पर व्यतीत औसत समय भी बढ़ गया है।
‘विकसित भारत’ के लक्ष्य (जिसमें अर्थव्यवस्था में पुरुष और महिलाओं के बराबर योगदान की कल्पना की गई है) के अनुरूप ये रुझान काफी उत्साह बढ़ाने वाले हैं। महिलाओं की वैतनिक गतिविधियों में हिस्सेदारी बढ़ने और इसके अलावा उन पर अवैतनिक घरेलू जिम्मेदारियों का भी बोझ होने से पुरुषों की तुलना में उनके पास मनोरंजन, घूमने और स्वयं पर ध्यान के लिए कम समय बचता है। यह चिंता का विषय है। पुरुषों में घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ महिलाओं के साथ साझा करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना परंपरागत स्त्री-पुरुष मान्यताओं से उबरने और स्त्री-पुरुष समानता का लक्ष्य प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
(लेखक क्रमशः राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय में उप-महानिदेशक और उप-निदेशक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)