प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2020 में ‘पारदर्शी कराधान’ के तहत तीन संरचनात्मक कर सुधारों की घोषणा की थी। इन घोषणाओं में फेसलेस असेसमेंट, फेसलेस अपील और करदाता संहिता शामिल थे। मगर वास्तविकता कुछ और है। पेचीदा आयकर नियमों, त्रुटिपूर्ण ऑनलाइन आयकर रिटर्न (आईटीआर) प्रक्रिया और दोषपूर्ण फेसलेस टैक्स असेसमेंट्स से प्रधानमंत्री के कर सुधार उपहास का विषय बन गए हैं। शुरुआत तब हुई जब ऑनलाइन आईटीआर दाखिल करने में करदाताओं को भारी परेशानी उठानी पड़ी। सनदी लेखाकारों (चार्टर्ड अकाउंटेंट्स) के अनुसार कर पोर्टल में लॉग इन करने से लेकर आईटीआर जमा करने तक लगभग सभी चरणों में परेशानी पेश आ रही थी और रिफंड के मद में रकम भी गलत दर्शायी जा रही थी। कर पोर्टल पर आईटीआर दाखिल होने और इनका सत्यापन होने के बाद भी कभी-कभी यह अपुष्ट बताया जाता है। कुछ मामलों में रिटर्न भरने के एक सप्ताह बाद भी आईटीआर, प्राप्ति सूचना या फॉर्म 10-आईई डाउनलोड करना संभव नहीं हो रहा था। कई फॉर्म भरने में बार-बार मशक्कत करनी पड़ रही थी। सनदी लेखाकारों के शब्दों में प्रक्रिया पूरी करने के लिए ‘तकनीकी जुगाड़’ का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद भी परेशाानियों का तांता लगा रहा। नए करदाता और उनके डिजिटल हस्ताक्षर स्वीकार नहीं हो रहे हैं और आधार क्रमांक से सत्यापन के लिए वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) भी काम नहीं करता है।
जून के अंत से शुरू हुई यह दुरूह प्रक्रिया आईटीआर जमा करने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर आते-आते और बढ़ गई। सनदी लेखाकारों ने टैक्स पोर्टल पर अपने खराब अनुभवों का जिक्र सोशल मीडिया पर करना शुरू कर दिया। मगर सरकार की तरफ से आई प्रतिक्रिया संतुष्ट करने वाली नहीं थी। राजस्व सचिव ने तो जोर देकर कहा कि कर पोर्टल बिल्कुल ठीक ढंग से काम कर रहा है। उन्होंने इसके लिए अब तक जमा आईटीआर की संख्या का हवाला दिया। पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच सरकार ने नया ऑनलाइन कर पोर्टल शुरू किया था। इसके लिए सरकार ने इन्फोसिस को करोड़ों रुपये दिए थे। सनदी लेखाकारों का कहना है कि नए पोर्टल की बिल्कुल जरूरत नहीं थी। पुराना पोर्टल कुछ त्रुटियों के साथ भी बेहतर ढंग से काम कर रहा था। ये त्रुटियां ऐसी थीं जो आसानी से दूर कर ली गईं या इनका कोई न कोई उपाय खोज लिया गया था। सनदी लेखाकार अमित पटेल ने कहा, ‘नए पोर्टल पर कुछ भी जमा करना लगभग पत्थर पर घास उगाने जैसा लग रहा था।’ जब करदाताओं ने पेश आ रहीं परेशानियों का जिक्र किया तो सरकार ने शुरू में उन पर ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपरोक्ष रूप से जता दिया कि सरकार की किसी पहल पर सवाल उठाने वाले लोग ‘नकारात्मक सोच’ रखते हैं। जब शिकायतों का सिलसिला नहीं थमा तो प्रधानमंत्री ने सांकेतिक तौर पर सार्वजनिक रूप से इन्फोसिस को डांट लगा दी। अगस्त 2021 के अंत में इन्फोसिस ने वादा किया था कि कुछ दिनों में कर पोर्टल की खामियां दुरुस्त कर ली जाएंगी। इसके बाद भी 8 जनवरी को सनदी लेखाकारों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को उन परेशानियों की एक फेहरिस्त भेजी जिनका सामना उन्हें हरेक दिन करना पड़ रहा था।
किसी भी नए सॉफ्टवेयर के विकास के साथ कुछ महत्त्वपूर्ण बातें जुड़ी होती हैं। इनमें शुरुआत से पहले पूर्ण परीक्षण और शुरुआत के बाद प्रतिक्रियाओं के आधार पर त्रुटियों का निपटारा आदि शामिल हैं। मगर आश्चर्य की बात है कि तकनीक को अधिक महत्त्व देने वाली सरकार ने नया कर पोर्टल शुरू करने से पहले इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। आधार और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली की शुरुआत भी इसी लचर रवैये के साथ की गई थी। किसी परियोजना के साथ ‘फॉलबैक ऑप्शन’ भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है। इसका आशय है कि अगर नई प्रणाली ठीक ढंग से काम नहीं कर रही है तो पुरानी प्रणाली दोबारा इस्तेमाल में लाई जाती है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि पुराना आईटी पोर्टल समाप्त किया जा चुका है। अब अस्थायी रूप से भी पुरानी प्रणाली की तरफ लौटना संभव नहीं रह गया है। नियोजन एवं क्रियान्वयन पर अक्सर अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकार ने नई प्रणाली में विसंगतियां आने की स्थिति में कोई दूसरा विकल्प तैयार नहीं रखा था।
क्या इन्फोसिस ने निजी क्षेत्र के किसी ग्राहक को ऐसी त्रुटिपूर्ण प्रणाली दी होती? और क्या बिना समुचित जांच के ग्राहक ने ऐसी किसी प्रणाली के साथ आगे बढऩे का निर्णय लिया होता? मगर कड़ाई से पेश आने के बजाय सरकार का रवैया इन्फोसिस के साथ पहले की तरह ही सामान्य है। हमें यह बात भी याद रखनी चाहिए कि इन्फोसिस ने कंपनियों द्वारा कर जमा करने के लिए एक अन्य बहु-उद्देश्यीय सरकारी पोर्टल-एमसीए21 शुरू किया है। वास्तव में यह एक रहस्य प्रतीत होता है कि लोगों में अपनी छवि को लेकर सतर्क और किसी तरह की चूक की स्थिति में जनता एवं संगठनों के खिलाफ कड़ाई से पेश आने वाली सरकार एक निजी कंपनी के साथ एक त्रुटिपूर्ण परियोजना देने पर भी ढिलाई से पेश आ रही है।
फेसलेस असेसमेंट
ऐसा लगा था कि फेसलेस असेसमेंट से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा जाएगा। वास्तव में कई कर मामले तेजी से निपटाए गए और रिफंड भी कम से कम समय में पूरे कर दिए गए। मगर कुछ दूसरे मामलों में करदाताओं के लिए मुश्किलें बढ़ गईं। करदाताओं से कई अतिरिक्त जानकारियां मांगी गईं और इनका निपटारा करने के लिए उन्हें पर्याप्त समय भी नहीं दिया गया। यहां तक कि करदाताओं को उनका पक्ष रखने का अवसर तक नहीं दिया गया। नोटिस भी कई बार किसी दूसरे व्यक्ति के ई-मेल पर भेज दिए गए। फेसलेस असेसमेंट शुरू करने पहले व्यापक विचार नहीं किया गया। सनदी लेखाकार अमित के अनुसार अपील पर आवश्यक कदम उठाने जैसे कई काम रुक गए। कर पोर्टल से एक ही सूचनाएं बार-बार मांगी जा रही हैं। अगर कोई ‘फाइनल’ टैब या ‘पार्शियल’ टैब दबा कर अपना जवाब देता है तो भी अपील का निपटान नहीं होता है। कुछ महीनों बाद दूसरा नोटिस आ जाता है।
सनदी लेखाकारों की शिकायत है कि अतिरिक्त कर की मांग में त्रुटि दूर नहीं की जा रही है बल्कि यह बकाया रिफंड से स्वत: ही काट लिया जाता है। अपील करदाताओं के पक्ष में जाने के बाद भी अतिरिक्त कर की मांग रिफंड से काट ली जाती है या समायोजित कर ली जाती है। त्रुटियां दूर करने के लिए करदाताओं के ज्यादातर आवेदनों पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि उनके आवेदनों पर विचार करने का अधिकार केंद्रीय निपटान केंद्र (सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर) के पास है या किसी क्षेत्राधिकार अधिकारी के पास। सरकार ने पिछले साल कर पुनर्आकलन अंतिम तिथि के बाद शुरू किया था। न्यायालय ने अब ऐसा करने से आयकर विभाग को रोक दिया है। कर फॉर्म पेचीदा और लंबे होते जा रहे हैं, वहीं मामूली खामियों पर भी आयकर विभाग कड़ाई से पेश आ रहा है। वास्तविकता यह है कि कर प्रताडऩा और कर उगाही नई कर प्रणाली का हिस्सा बन गया है। इस वजह से कर विभाग नागरिकों के लिए स्थिति सहज बनाने के बजाय उन पर असहनीय बोझ डालता रहेगा और ‘पारदर्शी कराधान’ एक खोखला नारा और उपहास का विषय बना रहेगा।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं)