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सेवा निर्यात का दायरा बढ़ाने से घटेगा कुछ खंडों पर अत्यधिक निर्भरता का खतरा

सेवा क्षेत्र में यात्रा, वेलनेस और वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा देना आवश्यक है। बता रहे हैं धर्मकीर्ति जोशी, आशिष वर्मा और भवि शाह

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धर्मकीर्ति जोशी   
आशिष वर्मा   
भवि शाह   
Last Updated- December 22, 2025 | 10:46 PM IST

वैश्विक सेवाओं का निर्यात वर्ष 2014 से औसतन 6.1 फीसदी की सालाना दर से बढ़कर 2024 में 8.6 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। इसी अवधि में वैश्विक वस्तुओं का निर्यात 2.9 फीसदी की दर से बढ़कर 24.5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। इस तेजी की वजह क्या रही है? कुल वैश्विक निर्यात में सेवाओं का अनुपात 500 आधार अंक बढ़ कर 27 फीसदी हो गया जिससे रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला, खासकर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार में वृद्धि हुई।

वर्ष 2022 में प्रकाशित विश्व बैंक के एक ब्लॉग के मुताबिक 2005 और 2018 के बीच प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के एक नमूने में सेवा निर्यात ने 1.6 करोड़ नए रोजगार सृजित किए जबकि वस्तुओं के निर्यात से उत्पन्न रोजगार में 3.1 करोड़ की कमी दर्ज हुई। आधुनिक विनिर्माण में पूंजी-गहन उत्पादन और उच्च कुशल श्रम शक्ति पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए हाल के वर्षों में यह रुझान जारी रहने के आसार हैं।

इस माहौल में भारत की सेवा निर्यात की चाल असाधारण रही है। उदाहरण के लिए पिछले दशक में वैश्विक स्तर पर वस्तुओं के कुल निर्यात में भारत का हिस्सा केवल 1.8 फीसदी था और यह 18वें स्थान पर था ( इसकी तुलना में चीन पहले स्थान पर)। मगर वैश्विक स्तर पर सेवाओं के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी वर्ष 2014 में 3फीसदी से बढ़कर 2024 में 4.2फीसदी हो गई। इस तरह भारत की सेवा निर्यात वृद्धि दर 9.1फीसदी है जबकि वैश्विक स्तर पर यह दर 6.1फीसदी रही है। यह उपलब्धि भारत को 2024 में दुनिया का आठवां सबसे बड़ा सेवा निर्यातक बनाती है और भारत से आगे रहने वाला एकमात्र विकासशील देश चीन ही है।

भारत से होने वाले कुल निर्यात में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग आधी हो गई है। अमेरिका द्वारा शुल्क लगाए जाने के बाद वस्तुओं के व्यापार की तुलना में सेवा निर्यात कम प्रभावित हुए हैं, जिससे मौजूदा उथल-पुथल से निपटने में मदद मिली है। एक दशक पहले सेवाओं का हमारे कुल निर्यात में केवल 30फीसदी हिस्सा होता था।

सेवा निर्यात की संरचना में भी तेजी से बदलाव हो रहा है। हाल के वर्षों में अन्य व्यावसायिक सेवाएं (ओबीएस) खंड वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र बनकर उभरा है। कोविड महामारी से पहले यात्रा सेवाओं की हिस्सेदारी अधिक हुआ करती थी।

ओबीएस में तीन श्रेणियां हैं, जिनमें अनुसंधान और विकास सेवाएं, पेशेवर और प्रबंधन परामर्श (पीएमसी) सेवाएं और तकनीक, व्यापार-संबंधी सेवाएं शामिल हैं। वर्ष 2024 में 2.1 लाख करोड़ डॉलर का ओबीएस निर्यात कुल वैश्विक सेवा निर्यात का लगभग एक चौथाई था। भारत को इस रुझान से काफी लाभ मिला है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुसार वर्ष 2024 में भारत पीएमसी सेवाओं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश था, जिसमें डब्ल्यूटीओ वर्गीकरण के तहत सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम सेवाएं (आईटीईएस) और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) भी शामिल हैं। अमेरिका पहले स्थान पर रहा।

यह भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) की तेजी से स्थापना के साथ मेल खाता है। मौजूदा समय में भारत में लगभग 1,700 से अधिक जीसीसी हैं जो वैश्विक स्तर पर मौजूद ऐसे केंद्रों के आधे से भी ज्यादा हैं। मगर इसका एक नकारात्मक पहलू भी है और वह है इनका एक जगह जमावड़ा। पीएमसी और कंप्यूटर सेवाएं भारत के सेवा निर्यात में 65फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखती हैं। दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन जैसे प्रमुख सेवा निर्यातकों के सेवा निर्यात में अधिक विविधता रहती है। इसका मतलब है कि अगर मौजूदा संरक्षणवाद का सेवा क्षेत्र पर भी असर हुआ तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

असल समस्या तो यही है। पीएमसी और कंप्यूटर सेवाओं को हटा दें तो भारत यात्रा, परिवहन और वित्तीय सेवाओं जैसी किसी भी अन्य बड़ी सेवा श्रेणी में वैश्विक शीर्ष 10 निर्यातकों में भी शामिल नहीं है। विश्व स्तर पर निर्यात की जाने वाली सेवाओं में इन तीनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी लगभग आधी है। इन तीनों क्षेत्रों में भारत की हिस्सेदारी न के बराबर (1-2फीसदी) है। पीएमसी सेवाओं की लगभग 13 फीसदी हिस्सेदारी की तुलना में यह बहुत कम है। इसके अलावा, जहां वैश्विक सेवा निर्यात में हमारी हिस्सेदारी में पिछले दशक के दौरान अ​धिकांश समय वृद्धि देखी गई, वहीं वर्ष 2022, 2023 और 2024 में यह 4.2 फीसदी पर स्थिर रही।

इसके साथ ही 2014 और 2024 के बीच भारत वैश्विक स्तर पर आठवें स्थान से आगे नहीं बढ़ पाया है क्योंकि सिंगापुर, आयरलैंड और चीन ने सेवा निर्यात के लिए सफलतापूर्वक और आक्रामक रूप से प्रतिस्पर्द्धा की है और वे भारत की तुलना में अधिक फायदे में रहे हैं।

भारत की तुलना में चीन निश्चित रूप से एक बड़ा सेवा निर्यातक है और यह अलग-अलग किस्म की पेशकश भी करता है। यह परिवहन सेवा निर्यात में अग्रणी है (सिंगापुर के बाद दूसरा) और तकनीक, व्यापार-संबंधी और अनुसंधान एवं विकास सेवाओं का एक बड़ा निर्यातक बनने की पूरी क्षमता रखता है।

इसका मतलब है कि भारत को अपने सेवा निर्यात में विविधता लाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना होगा। किसी भी सूरत में हमें अपनी अंतर्निहित शक्तियों पर आधारित दो-तरफा रणनीति की जरूरत है यानी पीएमसी में पकड़ बनाए रखने के साथ अन्य सेवाओं के वैश्विक निर्यात में प्रतिस्पर्द्धी क्षमता बनाए रखनी होगी। उदाहरण के लिए वैश्विक स्तर पर महामारी के बाद से यात्रा सेवाओं में सबसे तेज वृद्धि हुई है और यह दूसरा सबसे बड़ा सेवा निर्यात खंड बना हुआ है। मगर भारत के लिए यह खंड अब भुगतान संतुलन के लिहाज से शुद्ध नकारात्मक हो गया है।

इसे देखते हुए अब आगे बढ़ने और फिर से लय में आने का समय है। चिकित्सा और तंदुरुस्ती (वेलनेस) वाले पर्यटन में भारत की क्षमता जग जाहिर है। ई-वीजा योजना के विस्तार और आध्यात्मिक पर्यटन सर्किट के विकास जैसी सरकारी पहल को और समर्थन मिलना चाहिए। चिकित्सा और वेलनेस पर्यटन इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पीएमसी या कंप्यूटर सेवाओं की तुलना में महानगरों से बाहर रोजगार के अवसर पैदा करने की अधिक क्षमता है। अन्य सेवाएं भी गति पकड़ती हुई प्रतीत होती हैं। उदाहरण के लिए जहाज निर्माण, बंदरगाहों और जलमार्गों के लिए समुद्री प्रोत्साहन परिवहन सेवाएं निर्यात को बढ़ावा दे सकती हैं।

गुजरात इंटरनैशनल फाइनैंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) वित्तीय सेवा निर्यात का केंद्र बन सकता है। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा और अन्य देशों के पहले कदम बढ़ाने के कारण उन्हें मिले लाभों को देखते हुए वैश्विक स्तर पर भारत के सेवा निर्यात में सार्थक योगदान सुनिश्चित करने के लिए केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है।
एक और पहलू व्यावसायिक पेशेवर हैं। उन्नत देशों में विशेष रूप से प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, वेल्डर, मशीनिस्ट (यान्त्रिक) और पैरामेडिक्स/वृद्धों की देखभाल करने वाले पेशेवरों की मांग बढ़ रही है। हमें घरेलू और बाहरी दोनों बाजारों के लिए इन सेवाओं में बढ़ते कौशल अंतर को पाटने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये पेशे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के आगमन से संभावित नौकरी व्यवधानों के प्रति अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।

भारत के हालिया मुक्त व्यापार समझौते सेवा निर्यात पर प्रतिबंध कम करने पर केंद्रित हैं। उदाहरण के लिए इनकी मदद से बाजार तक आसान पहुंच (भौतिक एवं डिजिटल) और पेशेवरों की आवाजाही (परमिट एवं वीजा), योग्यताओं की मान्यता (चार्टर्ड अकाउंटेंट, नर्स,आर्किटेक्चर आदि के लिए पारस्परिक मान्यता समझौते) और शिक्षा, आईटी एवं वित्त क्षेत्रों के लिए प्रतिबद्धता सुनिश्चित होने के साथ वैश्विक स्तर पर उच्च-मूल्य वाली सेवाओं में प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़नी चाहिए खासकर आईटी, कारोबार और रचनात्मक क्षेत्रों में।

सेवा क्षेत्र में तेज विकास, स्थिरता और भारत के लाभों को देखते हुए इनका निर्यात बढ़ाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। दवा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा क्षेत्र में विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा देने के लिए लक्षित प्रयास साथ-साथ जारी रहने चाहिए।


(लेखक क्रिसिल में क्रमशः मुख्य अर्थशास्त्री, वरिष्ठ अर्थशास्त्री और आर्थिक विश्लेषक हैं)

First Published : December 22, 2025 | 9:18 PM IST