देश के 87 साल पुराने शीर्ष केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) में अब तक 25 गवर्नर रह चुके हैं। बेनेगल रामा राव का सबसे लंबा कार्यकाल रहा। उन्होंने 1 जुलाई, 1949 से 14 जनवरी, 1957 तक यानी करीब साढ़े सात साल से कुछ अधिक समय तक कार्यभार संभाला था। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद से आरबीआई के आठ गवर्नरों में बिमल जालान का कार्यकाल सबसे लंबा और एस वेंकटरमणन सबसे छोटा था। मौजूदा गर्वनर शक्तिकांत दास दिसंबर 2024 में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने के बाद जालान से आगे निकल जाएंगे। रामा राव के बाद दास आरबीआई के इतिहास में दूसरे गवर्नर होंगे जो कम से कम छह साल तक इस शीर्ष पद पर बने रहेंगे।
उनके कार्यकाल का पांचवां साल हाल ही में शुरू हुआ। तमिलनाडु काडर के 1980 बैच के आईएएस अधिकारी दास के सामने उदारीकरण के बाद के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। करीब 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचने का लक्ष्य तय करने वाली अर्थव्यवस्था 2020 में कोविड-19 महामारी के साथ ‘तकनीकी’ रूप से मंदी की ओर बढ़ रही है। दास ने ब्याज दर को ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंचाते हुए पूरे तंत्र में पैसे भर दिए और कई गैर-परंपरागत कदमों और कई उपायों के साथ अभूतपूर्व संकट से निपटने की कोशिश भी की।
1991 के भुगतान संतुलन संकट के बारे में बात करने वाले लोग कह सकते हैं कि दास नहीं बल्कि वेंकटरमणन की चुनौती सबसे कठिन थी। आखिर ऐसा क्यों? दास ने एक दूसरे से जुड़ चुकी दुनिया में कोविड-19 महामारी की चुनौती का सामना किया, जहां भारतीय अर्थव्यवस्था मौजूदा बाजार दर पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिसाब से छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आरबीआई की एक बेहतर स्थिति थी और इसे गंभीरता से लिया गया।
भारत सितंबर 2022 तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। पूरी दुनिया ने एक ही तरह की चुनौती का सामना किया। वहीं दूसरी तरफ वेंकटरमणन को अलग तरह के पिच पर बल्लेबाजी करनी पड़ी क्योंकि 1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति एक प्रमुख खिलाड़ी जैसी नहीं थी। संयोग से वेंकटरमणन के बाद दास, आरबीआई के पहले ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन नहीं किया है। आइए, उन चार चुनौतियों का जिक्र करते हैं जिनका सामना दास ने अपने चार वर्षों के कार्यकाल के दौरान किया है। उन्होंने दो चुनौतियों का सामना अच्छी तरह से किया है और अब वह बाकी दो चुनौतियों से अपनी आंखें नहीं हटा सकते हैं।
पहला, उन्होंने आरबीआई और सरकार के बीच संबंधों को नए सिरे से उभारा है। जब दास ने पदभार संभाला तब सरकार और आरबीआई के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनसे पहले दो गवर्नरों का कार्यकाल अपेक्षाकृत कम था। रघुराम राजन ने बतौर गर्वनर तीन साल और ऊर्जित पटेल ने दो साल से थोड़ा अधिक (पटेल ने इस्तीफा दिया था) वक्त तक कार्यभार संभाला था। दास ने बिमल जालान की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों के बाद आरबीआई के खजाने से रिकॉर्ड फंड हस्तांतरित करके सरकार के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश की लेकिन यह राशि उतनी नहीं थी जितनी सरकार चाहती थी। उन्होंने पेंशन योजना को अद्यतन करने के लिए आरबीआई के अंदरूनी सूत्रों का दिल भी जीता जो दशकों से एक विवादास्पद मुद्दा था।
कई लोगों को लगा कि आरबीआई के मिंट रोड के दफ्तर में दास के जाने पर केंद्रीय बैंक पर सरकार की पकड़ और मजबूत हो जाएगी। उनके कार्यकाल में तीन साल का विस्तार सरकार के साथ उनके संबंधों की सहजता की पुष्टि करता है, हालांकि उन्होंने आरबीआई की स्वतंत्रता बनाए रखने की कोशिश की है। दूसरा, उन्हें क्रिप्टो से जुड़े कुछ अहम सवालों का सामना करना पड़ा है, हालांकि सरकार का दृष्टिकोण हाल तक कुछ हद तक अस्पष्ट था। उन्होंने बार-बार कहा है कि निजी क्रिप्टोकरेंसी हमारी वृहद अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा हैं और यह वित्तीय और वृहद अर्थव्यवस्था की स्थिरता के मुद्दों से निपटने की आरबीआई की क्षमता को कमजोर करेंगे।
निवेशकों को चेतावनी देते हुए दास ने 17वीं सदी में यूरोप के कुछ हिस्सों खासकर हॉलैंड में ‘ट्यूलिप मैनिया’ का जिक्र करते हुए कहा कि क्रिप्टो का मूल्य ‘ट्यूलिप’ जितना भी नहीं है। 17वीं शताब्दी में ट्यूलिप बल्ब की कीमतें इन अटकलों की वजह से आसमान छूने लगीं थीं कि यह बाजार में नया और अनूठा उत्पाद था लेकिन इसमें बड़ी गिरावट देखी गई।
इस बीच, आरबीआई ने पहले ही थोक और खुदरा केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) के लिए प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की हैं। सीबीडीसी, क्रिप्टोकरेंसी की जगह नहीं लेगा क्योंकि यह क्रिप्टो के लिए प्रॉक्सी नहीं होगा, लेकिन यह हमें आश्वस्त करेगा कि आरबीआई डिजिटल दौर की चुनौतियों का सामना कर सकता है।
दास के सामने एक और बड़ी चुनौती केंद्रीय बैंक को, वित्तीय क्षेत्र में डिजिटल बाधाओं से निपटने के लिए लैस करना है। वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियां अपने डोमेन क्षेत्र का विस्तार कर रही हैं और खेल के नियम बदलने के साथ ही कई बैंक नई व्यवस्था में कमजोर दिख रहे हैं। दास को अब यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आरबीआई डिजिटल के खेल में रेफरी की भूमिका निभाने के लिए कौशल और विशेषज्ञता से पूरी तरह लैस हो। ऐसा नहीं होने पर इस तरह की बाधा वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
आरबीआई ने अगस्त 2022 में इस दिशा में पहला कदम उठाया जब उसने यह तय किया कि कर्ज देने का कारोबार केवल उन संस्थाओं के द्वारा किया जा सकता है जिनका नियमन आरबीआई करता है। इस तरह तीसरे पक्ष को ऋण देने और ऋण पुनर्भुगतान के संग्रह के दायरे से बाहर रखने की कोशिश हुई। एक महीने बाद, इसने डिजिटल उधार से जुड़े दिशानिर्देशों को स्पष्ट किया।
अंत में, दास के सामने सबसे बड़ी चुनौती महंगाई के जिन्न को बोतलबंद करना और रुपये के अवमूल्यन का प्रबंधन व्यवस्थित तरीके से भी करना है। फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से पहले दास ने आरबीआई के रुख को उदार बनाए रखा और वह चाहते थे कि वृद्धि के लिए जब तक आवश्यक हो उसे जारी रखा जाए। लेकिन, युद्ध छिड़ने के बाद से वैश्विक वित्तीय परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया है ऐसे में वह कोई कदम उठाने में देरी नहीं कर सकते थे। उन्होंने अनौपचारिक रूप से बहुत पहले ही ऊंची कीमत पर रिवर्स रीपो बोली के माध्यम से पैसा जुटाना शुरू कर दिया था लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं और वैश्विक स्तर पर उच्च मुद्रास्फीति का प्रसार हुआ तब इतनी रकम पर्याप्त नहीं थी।
दास को इसे समझने में समय लगा। एक विस्तारवादी बजट के ठीक बाद, फरवरी 2022 की मौद्रिक नीति में भी वर्ष के लिए केंद्र सरकार की सकल उधारी 14.3 लाख करोड़ रुपये के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई। सरकार द्वारा देश में नकदी बढ़ाने का काम आरबीआई को दे दिया गया था और दास बेफिक्र थे। केंद्रीय बैंक की दर निर्धारण संस्था ने तब दरों को अपरिवर्तित रखा था।
लेकिन, एक के बाद एक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नीतिगत दर को चार बार बढ़ाकर दिसंबर तक 4 प्रतिशत से 6.25 प्रतिशत कर दिया। पहली वृद्धि की घोषणा मई के पहले सप्ताह में की गई थी, जो एमपीसी की बैठक से एक महीने पहले और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अपनी नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि की घोषणा से ठीक 12 घंटे पहले की गई थी जो 22 वर्षों में सबसे अधिक है ताकि चार दशकों में सबसे खराब मुद्रास्फीति की स्थिति से निपटने में अमेरिका को मदद मिले।
एक आधार बिंदु एक प्रतिशत बिंदु का सौवां हिस्सा है। मई में 40 आधार अंकों की वृद्धि के बाद, भारत में, जून, अगस्त और अक्टूबर में 50-50 आधार अंकों की तीन वृद्धि हुई और दिसंबर में 35 आधार अंकों की वृद्धि हुई। अब इंतजार करना होगा कि दास कब रुकावट का बटन दबाएंगे और नीतिगत दर में कटौती कर इस चक्र को बदलेंगे। वाई वी रेड्डी संभवत: एकमात्र ऐसे गवर्नर हैं जिन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान दरों में वृद्धि की और उन्होंने एक बार भी उसमें कटौती नहीं की। वह फुर्तीले और विचारों के प्रति खुले हैं। संतुलन साधने में भी उन्हें महारत हासिल है और वह सभी को सुनते हैं लेकिन अपने निर्णय खुद लेते हैं।