फूलों और सजावटी पौधों की व्यावसायिक कृषि अथवा फूलों की खेती, जिसे सरकार द्वारा ‘निर्यात-उन्मुख क्षेत्र’ का दर्जा दिया गया है, सामान्य फसल वाली खेती की तुलना में कहीं ज्यादा आकर्षक है। फूलों की खेती से प्रति इकाई भूमि पर शुद्ध लाभ खेती वाली अधिकांश फसलों की तुलना में 10 से 20 गुना ज्यादा हो सकता है। लेकिन यह काफी ज्यादा निवेश और प्रौद्योगिकी-गहन गतिविधि होती है, जिसे यथासंभव ग्रीनहाउस में पर्यावरण संबंधी नियंत्रित परिस्थितियों में किया जाना चाहिए। कुछ फूल जैसे गेंदा, गुलाब, गुलदाउदी, गैलार्डिया, कुमुदिनी, लिली, ऐस्टर और रजनीगंधा की तो खुले खेतों में भी व्यावसायिक रूप से खेती की जा सकती है, लेकिन बेहतरीन उपज प्राप्त करने के वास्ते इसके लिए भी विशेष कौशल की जरूरत होती है।
इत्र, प्राकृतिक रंग, आयुर्वेदिक औषधि तथा गुलकंद और शरबत बनाने के लिए फूलों की खेती से संबंधित उत्पादों की औद्योगिक मांग में वृद्धि ने फूलों की खेती को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान किया है। देश के फसल क्षेत्र के मूल्य में अब इस क्षेत्र का योगदान लगभग दो प्रतिशत है।
फूलों के व्यावसायिक उत्पादन तथा फूलों और इनके मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्यात क्षेत्र में तकरीबन नया होने के बावजूद भारत ने 2021-22 में लगभग 770 करोड़ रुपये की करीब 23,597 टन फूलों की खेती से संबंधित वस्तुओं का निर्यात किया है। इसके निर्यात गंतव्यों में अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, यूएई तथा सबसे महत्त्वपूर्ण नीदरलैंड, जो दुनिया का सबसे बड़ा फूल बाजार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नीलामी केंद्र है, जैसे विकसित देश शामिल हैं।
अनुमान जताया गया है कि भारत ने वर्ष 2020-21 में करीब 3,20,000 हेक्टेयर क्षेत्र से ही लगभग 30 लाख टन फूलों का उत्पादन किया है। उद्योग हलकों द्वारा वर्ष 2021 में लगभग 20,700 करोड़ रुपये आंका जाने वाला देश के फूल बाजार का आकार 13-14 प्रतिशत की जोरदार चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ अगले पांच साल में 42,500 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है।
विकसित होते इस क्षेत्र की उपज में विभिन्न प्रकार के उत्पाद शामिल हैं, जैसे फूल (माला और सजावट के लिए), तना युक्त फूल (कट फ्लॉवर – गुलदस्ते बनाने के लिए), गमले वाले पौधे, बेलबूटे, कलियां, कंद, जड़ युक्त और सूखे या निर्जलित फूल तथा सजावटी पत्तियां। खेती वाले फूलों का दायरा, जो शुरुआत में मुख्य रूप से गुलाब, गेंदा, ऐस्टर, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी आदि तक ही सीमित था, इसके बाद से बढ़ चुका है, जिसमें गुलनार, जरबेरा, जिप्सोफिला, लिआट्रिस, नेरिन, आर्चिया, एन्थुरियम, ट्यूलिप, लिली तथा कई तरह के ऑर्किड शामिल हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल प्रमुख फूल उत्पादक राज्यों के रूप में उभरे हैं।
जन्मदिन, शादी-विवाह और अन्य सालगिरहों तथा स्वागत और विदाई समारोहों के साथ-साथ जैसा कि अब तक वैलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे और इसी तरह के अन्य कार्यक्रमों सदृश्य गैर-पारंपरिक अवसरों पर भी फूलों के जरिये संदेश देने के बढ़ते चलन ने फूलों की घरेलू मांग को और बढ़ावा दिया है, खास तौर पर तना युक्त फूलों की मांग को। महानगर और बड़े शहर फूलों की खपत वाले प्रमुख केंद्र बन गए हैं। हालांकि सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर माला बनाने और सजावट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फूलों की मांग अब भी घरेलू बाजार पर हावी है, जिसका फूलों की कुल बिक्री में लगभग 60 प्रतिशत योगदान रहता है।
वास्तव में वर्ष 1988 में नई बीज नीति की घोषणा वैज्ञानिक तर्ज पर फूलों की व्यावसायिक खेती के संबंध में महत्त्वपूर्ण मोड़ थी, जिसमें वैश्विक गुणवत्ता मानकों के अनुरूप फूलों के लिए कृषि सामग्री के आयात की अनुमति प्रदान की गई थी। 1990 के दशक की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने फूलों और उनके मूल्य संवर्धित उत्पादों के लिए अति आवश्यक निर्यात सुविधा प्रदान की थी, जिससे फूलों की खेती के लिए निर्यात-उन्मुख उच्च प्रौद्योगिकी वाली इकाइयों की स्थापना में निवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ। इन कदमों से फूलों की फसलों की उत्पादकता और किसानों की आय में सुधार में भी मदद मिली। मधुमक्खी पालन के साथ फूलों की खेती का एकीकरण फूलों की खेती वाली इकाइयों के लाभ में और सुधार लाने में मदद कर सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि फूलों के प्रजनन में व्यवस्थित रूप से अनुसंधान और विकास मुख्य अनाज में सुधार के मुकाबले काफी पहले शुरू हो गया था, जिससे हरित क्रांति हुई। गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के विकास, जिसने खाद्यान्न उत्पादन में सफलता प्रदान की, से पहले अनोखे रंग, आकार या पंखुड़ियों की आकृति और गोचर अन्य सौंदर्य गुण वाले फूलों की किस्मों का उत्पादन किया गया था।
सबसे पहले गुलाब ने फूलों के प्रजनकों का ध्यान आकर्षित किया। दरअसल गुलाब की किस्मों का विस्तृत दायरा उपलब्ध होने से देश के विभिन्न हिस्सों में गुलाब के बगीचों की स्थापना को प्रेरणा मिली। आगे चलकर फूल-विशिष्ट कई अन्य उद्यान बहुत-से स्थानों पर स्थापित हुए। जम्मू कश्मीर में श्रीनगर के पास विस्तृत क्षेत्र में फैला ट्यूलिप उद्यान इनमें सबसे खास है, जो पर्यटन का प्रमुख आकर्षण बन चुका है। वनस्पति उद्यानों ने भी फूलों की नई किस्मों के प्रजनन और संरक्षण में योगदान दिया है।
हालांकि इस विकास के बावजूद देश में फूलों की खेती की क्षमता अब भी काफी कम है। कई स्वदेशी फूल, जो अपनी खासियत की वजह से विदेशों में अच्छा बाजार बना सकते हैं, वे अनजाने और कम प्रचारित रहते हैं। इसकी एक मिसाल ऑर्किड हो सकता है। भारत भाग्यशाली है कि उसके पास पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा पश्चिमी और पूर्वी घाटों में विश्व के सबसे समृद्ध स्थल हैं। वे इन विशिष्ट फूलों की 1,000 से अधिक प्रजातियों को आश्रय प्रदान करते हैं। हालांकि ऑर्किड के निर्यात में कुछ उन्नति हुई है, खास तौर पर सिक्किम से, लेकिन ऑर्किड के अन्य प्रमुख स्थलों की निर्यात क्षमता का दोहन नहीं हुआ है।