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मोदी के तीसरे कार्यकाल में रक्षा सुधार, सामरिक क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर जोर

जनवरी 2020 में प्रधानमंत्री ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का गठन किया और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का गठन करके सीडीएस को इसका सचिव बनाया।

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Ajay Kumar   
Last Updated- July 22, 2024 | 9:20 PM IST

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में रक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव और सुधार किए गए। अब जबकि मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल आरंभ हो गया है, इन सुधारों को जारी रखना और इनका विस्तार करना जरूरी है ताकि देश की सैन्य क्षमताओं को मजबूत बनाया जा सके। जनवरी 2020 में प्रधानमंत्री ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का गठन किया और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) का गठन करके सीडीएस को इसका सचिव बनाया।

इस सुधार की बदौलत तीनों सेनाओं के संयुक्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई और वे मंत्रालय की निर्णय प्रक्रिया के साथ जुड़ सकीं। साढ़े चार साल बाद का प्रदर्शन बताता है कि प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में कितना सुधार हुआ है।

रक्षा उद्योग के माहौल में सफल सुधार मोदी के दूसरे कार्यकाल में अहम रहे। इन सुधारों में निजी उद्योगों और स्टार्टअप की बढ़ी हुई भागीदारी, पारदर्शिता में इजाफा, निजी क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण और प्रमाणन ढांचे को खोलना और सेना द्वारा स्वदेशी उपकरणों के इस्तेमाल की इच्छा में इजाफा शामिल था।

दो अहम बदलाव लाने वाले नीतिगत निर्णय थे 75 फीसदी पूंजी आवंटन घरेलू उद्योगों के लिए करना तथा सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची में शामिल वस्तुओं का आयात बंद करना। इनोवेशन इन डिफेंस एक्सिलेंस (आईडेक्स) में हजारों स्टार्टअप शामिल हुईं।

रक्षा निर्यात 2017-18 से 2023-24 के बीच 15 गुना बढ़ा और वह 1,400 करोड़ रुपये से बढ़कर 21,000 करोड़ रुपये हो गया। भारत को खुद को रक्षा और वैमानिकी के क्षेत्र में दुनिया के पांच बड़े देशों में शामिल करने का लक्ष्य लेकर चलना चाहिए और लाखों करोड़ डॉलर के इस उद्योग में अहम हिस्सेदारी हासिल करनी चाहिए।

पानी के भीतर से जुड़ी तकनीक और गहरे समुद्र से संबंधित तकनीक को सावधानीपूर्वक तैयार चुनौतियों के साथ निजी क्षेत्र के लिए खोला जाना चाहिए। 75 फीसदी बजट घरेलू उद्योग को आवंटित किए जाने के बाद भी खरीद की प्रक्रिया सरकारी क्षेत्र के पक्ष में है। ऐसे में यह आवश्यक है कि 25 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र से लेने पर मजबूती से टिके रहा जाए।

रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीएपी) को विकास प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिए और नवाचारी उत्पादों की खरीद करनी चाहिए। उसे एकल नवाचारी वेंडर्स से खरीद के दिशानिर्देश भी प्रस्तुत करने चाहिए। 2021 में तय खरीद दिशानिर्देशों का शायद ही कभी पालन किया गया। आंतरिक व्यवस्था को सुसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि इस समयसीमा का पालन किया जा सके। मित्र राष्ट्रों में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों से रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना हमारी विदेश नीति का स्पष्ट हिस्सा होना चाहिए। इसके साथ ही उद्योग जगत के नेतृत्व वाली तथा सरकार के समर्थन वाली रक्षा निर्यात प्रोत्साहन परिषद की स्थापना की जानी चाहिए। अंतरिक्ष भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।

कई अहम सुधारों का क्रियान्वयन हुआ है। इसमें रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान का 2019 में हुआ एंटी सैटेलाइट वीपन परीक्षण शामिल है। अंतरिक्ष से संबंधित अगली पीढ़ी के सुधारों में रक्षा क्षेत्र का अंतरिक्ष बजट 10 गुना बढ़ाने या सशस्त्र बलों की अंतरिक्ष आधारित निगरानी तथा जागरूकता क्षमता बढ़ाना शामिल है। रक्षा सुधारों का एक अछूता क्षेत्र शोध एवं विकास का है। 2021 के बजट भाषण में 25 फीसदी रक्षा शोध एवं विकास आवंटन निजी क्षेत्र के लिए करने की घोषणा के बावजूद अभी क्रियान्वयन होना बाकी है। 2023 में एक उच्चस्तरीय समिति की अनुशंसाओं को अपनाने की आवश्यकता है।

2023-24 के अंतरिम बजट में निजी क्षेत्र के साथ शोध एवं विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये की घोषणा की गई जो एक अच्छी शुरुआत है। डीएपी को बड़ी परियोजनाओं मसलन भारी हेलीकॉप्टर और स्वदेशी जेट इंजन के लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी में शोध एवं विकास को अपनाना चाहिए।

रक्षा के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया दूसरे कार्यकाल में गंभीरता से शुरू हुई और 300 से अधिक ऐप्लीकेशन का क्रियान्वयन किया गया। रक्षा साइबर एजेंसी और रक्षा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस काउंसिल (डीएआईसी) को रक्षा क्षेत्र में समर्पित एआई ढांचा तैयार करना चाहिए। 2022 के मध्य में जारी अग्निवीर योजना ने सशस्त्र बलों की भर्तियों में क्रांतिकारी बदलाव किया। अब फौज अधिक युवा, तकनीक संपन्न और युद्ध के लिए तैयार है। इस योजना के दीर्घकालिक अगले कुछ वर्षों में सामने आने लगेंगे।

सेना में जवानों और सहायक स्टाफ का अनुपात सुधारना जरूरी है। सैन्य फार्मों को बंद करने और गैर जरूरी सेवाओं की आउटसोर्सिंग को मजबूती देने की जरूरत है। सेना शिक्षा कोर को भंग कर दिया जाना चाहिए, तथा रीमाउंट एवं वेटनरी कोर के साथ-साथ सेना डाक सेवा कोर को भी अनुकूलित करना होगा। सैन्य बेस वर्कशॉप और हथियार डिपो का पुनर्गठन करके उत्पादकता बढ़ानी चाहिए और अनावश्यक इकाइयों को बंद किया जाना चाहिए। असैन्य रक्षा क्षेत्रों में भी सुधार जारी रखने चाहिए।

सैन्य कर्मियों की संख्या को भी समुचित बनाने की जरूरत है। कैंटोनमेंट बोर्ड समाप्त होने चाहिए। छावनी की जमीन का करीबी नगरपालिकाओं में विलय किया जाना चाहिए। रक्षा प्रतिष्ठानों के निकट निजी जमीन पर निर्माण पर लगी रोक समाप्त होनी चाहिए। जहां जरूरी हो वहां क्षतिपूर्ति प्रदान की जानी चाहिए। सीमावर्ती इलाकों को लेकर सरकार का रुख बदला है और विकास संबंधी पहलों को सुरक्षा चिंताओं के साथ जोड़ा गया है।

सीमा सड़क संगठन का अधोसंरचना विकास बीते पांच साल में तीन गुना हो चुका है। उसने अत्यधिक ऊंचे इलाकों में सड़क बनाई है और ठंड के दिनों में ऊंचे दर्रों का खुले रहना सुनिश्चित किया है। इन पहलों को मजबूत करने की आवश्यकता है। मौजूदा रक्षा सुधारों को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता देश की सामरिक क्षमताओं में सुधार और वैश्विक संदर्भ में प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाए रखने के लिए जरूरी है।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : July 22, 2024 | 9:20 PM IST