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संपादकीय: क्या हो नीतिगत रुख

दास ने मुद्रास्फीति और ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक की स्थिति दोहराई। उन्होंने यह भी कहा कि एमपीसी को और अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए नीतिगत रुख बदला गया।

Last Updated- November 07, 2024 | 9:16 PM IST
RBI Governor Shaktikanta Das

बीते वर्षों में अनेक केंद्रीय बैंकों ने अपना संचार बेहतर बनाने का प्रयास किया है ताकि वित्तीय बाजार नीतियों को गलत न समझे या उनकी गलत व्याख्या न करे। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी इसका अपवाद नहीं है।

मौद्रिक नीति के संदर्भ में गवर्नर के नीतिगत वक्तव्य तथा मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संकल्प के अलावा समिति के विचार-विमर्श और निर्णयों के बारे में गवर्नर के नेतृत्व में केंद्रीय बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने जानकारी दी और उन्हें स्पष्ट किया। इसके अलावा शीर्ष अधिकारी अपने भाषणों तथा अन्य सार्वजनिक उपस्थितियों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर केंद्रीय बैंक की स्थिति स्पष्ट करते रहते हैं।

देश के वित्तीय क्षेत्र के कैलेंडर में ऐसा ही एक अवसर है बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट। बुधवार को इस आयोजन के पहले दिन रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने विभिन्न मुद्दों पर बात की जिससे वित्तीय बाजारों को लेकर केंद्रीय बैंक की स्थिति और समझ को लेकर स्पष्टता आई।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव और संभावित अनिश्चितता के संदर्भ में दास ने आश्वस्त किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र अच्छी स्थिति में हैं और वे वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावों से निपट सकते हैं। इस संदर्भ में यह बात ध्यान देने लायक है कि भारत ने एक बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार तैयार किया है जो मुद्रा बाजार में अतिरिक्त अस्थिरता को रोकने में सक्षम है।

यकीनन रुपया हाल के दिनों में अपेक्षाकृत स्थिर रहा है। कुछ अर्थशास्त्री यह कहते आए हैं कि इसे और अधिक समायोजित करने की आवश्यकता है। दीर्घकालिक व्यापार और वृद्धि संबंधी नतीजे कई कारकों पर निर्भर करते हैं। भारत को मुद्रा के अधिमूल्यन से बचने का फायदा होगा। चालू वर्ष के वृद्धि परिदृश्य की बात करें तो जहां कुछ उच्च तीव्रता वाले संकेतक और कॉर्पोरेट टिप्पणियां मांग में कमी का संकेत दे रही हैं लेकिन रिजर्व बैंक आशावादी बना हुआ है। उसका अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 7.2 फीसदी की दर से बढ़ेगी।

दास ने मुद्रास्फीति और ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक की स्थिति दोहराई। उन्होंने यह भी कहा कि एमपीसी को और अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए नीतिगत रुख बदला गया।

कम से कम दो और ऐसे नीतिगत पहलू हैं जिन पर चर्चा की जानी चाहिए। पहला है केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा यानी सीबीडीसी। यह बात रेखांकित की गई कि सीबीडीसी प्रारंभिक चरण में है और रिजर्व बैंक इसे लेकर हड़बड़ी में नहीं है। केंद्रीय बैंक सीबीडीसी के परीक्षण में कई विकसित देशों से आगे है।

जैसा कि दास ने कहा कि कुछ बैंकों ने पट्टे पर खेती करने वाले किसानों को सीबीडीसी में ऋण दिया है। इसे इस तरह तैयार किया गया है कि पैसे को वांछित दिशा में ही इस्तेमाल किया जाए। सीबीडीसी की प्रोग्रामिंग करने का विकल्प इसे अत्यधिक उपयोगी बना सकता है, खासतौर पर प्रत्यक्ष हस्तांतरण के संदर्भ में। इससे लीकेज कम करने में मदद मिल सकती है। केंद्रीय बैंक ने इसे लेकर जल्दबाजी नहीं दिखाकर बेहतर किया है क्योंकि इसे बड़े पैमाने पर जारी करने के पहले सभी पहलुओं का अध्ययन जरूरी है।

एक अन्य पहलू जिस पर बात हुई वह है विनियमित संस्थाओं के विरुद्ध कदम उठाना। दास ने स्पष्ट किया कि हाल में कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के खिलाफ कदम उठाने के पहले विस्तृत द्विपक्षीय बातचीत की गई और चुनिंदा मामलों में ही कदम उठाए गए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नियामक को यकीन हो जाता है कि उचित कदम उठा लिए गए हैं तो प्रतिबंध समाप्त किए जा सकते हैं। कई मामलों में एनबीएफसी, खासकर सूक्ष्मवित्त कंपनियों का आचरण सही नहीं रहा है। इस क्षेत्र में तनाव के संकेत हैं। ऐसे में सही यही है कि नियामक समय रहते कदम उठाकर मसले को हल करे।

व्यापक स्तर पर रिजर्व बैंक ने बैंकों और एनबीएफसी द्वारा आम परिवारों को ऋण देने पर भी नियंत्रण लागू किया है। कुलमिलाकर देश का वित्तीय क्षेत्र मजबूत है लेकिन वृद्धि संबंधी नतीजे कुछ हद तक नीति निर्माताओं के उन कदमों पर निर्भर करेंगे जो दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में उभर रही अनिश्चितताओं को लेकर उठाएंगे।

First Published - November 7, 2024 | 9:10 PM IST

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