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Editorial: PLI से परे नीति, IT हार्डवेयर्स के आयात को प्रतिबंधित करने की दूसरी भी वजह

डेल, एचपी, फॉक्सकॉन और फ्लेक्सट्रॉनिक्स जैसी कंपनियों को भी मंजूरी दी गई। डिक्सन इस क्षेत्र में 250 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 21, 2023 | 8:05 AM IST

सरकारी हस्तक्षेप हमेशा वांछित नतीजे नहीं देता। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार ने अगस्त में घोषणा की थी कि वह आईटी हार्डवेयर क्षेत्र के सात उत्पादों को प्रतिबंधित सूची में डालेगी। इस योजना को 30 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया और सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट की लेकिन बाजार ने संभावित अनिश्चितता को भांप लिया। कम से कम अल्पाव​धि के लिए उसने इसे समझा और आयात को तेज कर दिया। इसके ​परिणामस्वरूप कंप्यूटरों, लैपटॉप और संबंधित उत्पादों का आयात सितंबर में 42 फीसदी बढ़कर 71.5 करोड़ डॉलर हो गया।

केंद्र सरकार लगातार यह कोशिश कर रही है कि चीन पर आया​त निर्भरता कम की जाए। आंशिक तौर पर ऐसा व्यापक भूराजनीतिक वजहों से किया जा रहा है। इस नीति को भी इसी संदर्भ के साथ देखा गया। आयात को प्रतिबंधित करने की दूसरी वजह है घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और आईटी हार्डवेयर सरकार की उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का हिस्सा है।

सरकार ने हाल ही में आईटी हार्डवेयर क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना में बदलाव किया है और प्रोत्साहन राशि को करीब दोगुना बढ़ाकर 17,000 करोड़ रुपये कर दिया। ऐसा आरंभ में इस योजना को विनिर्माताओं की ओर से समुचित प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद किया गया।

यह देखना शेष है कि बढ़ा हुआ प्रोत्साहन और आयात पर संभावित प्रतिबंध बड़े विनिर्माताओं को देश में इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रेरित करेंगे या नहीं। इसके साथ ही क्या यह चीन से होने वाले आयात को सीमित करने में मददगार होगा? इस संदर्भ में भारत की सबसे बड़ी घरेलू इलेक्ट्रॉनिक वि​निर्माण सेवा कंपनी डिक्सन टेक्नॉलाजीज ने छह वर्ष में 48,000 करोड़ रुपये के समेकित उत्पादन की प्रतिबद्धता जताई और उसे आईटी हार्डवेयर क्षेत्र के पीएलआई प्रोत्साहन के योग्य पाया गया।

डेल, एचपी, फॉक्सकॉन और फ्लेक्सट्रॉनिक्स जैसी कंपनियों को भी मंजूरी दी गई। डिक्सन इस क्षेत्र में 250 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। जानकारी के मुताबिक ताइवान की कंपनी आसुस के लिए लैपटॉप बनाने वाली कंपनी चीन की लेनोवो समेत अन्य कंपनियों के साथ लैपटॉप बनाने के लिए चर्चा कर रही है।

यदि कोई भारतीय कंपनी किसी बड़ी चीनी कंपनी के लिए निर्माण करती है, तो संभव है कि वह उसका अ​धिकांश हिस्सा चीन से आयात करेगी और यहां उसकी असेंबलिंग करेगी। दूसरी कंपनियां भी ऐसा ही करेंगी।

ऐसे में माना जा सकता है कि अगर असेंबली का कुछ काम भारत आ जाता है तो भी इस श्रेणी में आयात के स्तर में कोई खास कमी नहीं आएगी। भारत में ऐसे हार्डवेयर न बनने की वजहें हैं और यह स्पष्ट नहीं है कि पीएलआई योजना मूल्य श्रृंखला के अहम हिस्से को भारत स्थानांतरित करेगी या नहीं। पीएलआई योजना के अंतर्गत प्रोत्साहन हासिल करने के लिए एक तरीका मूल्यवर्धन की शर्त को शामिल करना है। ऐसा करने से कुछ हद तक वास्तविक विनिर्माण को भारत स्थानांतरित किया जा सकता है।

अंतिम असेंबली के काम को भारत स्थानांतरित करने से​ निस्संदेह कुछ रोजगार तैयार होंगे लेकिन इससे आयात में उल्लेखनीय कमी आने की संभावना नहीं है। वास्तव में जिन आईटी हार्डवेयर के आयात के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है वह 2022-23 में केवल 8.8 अरब डॉलर मूल्य का था जबकि उस वर्ष कुल आयात 900 अरब डॉलर मूल्य का था। चाहे जो भी हो, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना एक उपयोगी लक्ष्य है और इस पर आगे बढ़ा ही जाना चाहिए।

भारत को अपनी बढ़ती श्रम शक्ति के लिए रोजगार तैयार करने की आवश्यकता है। बहरहाल, इसके लिए निवेश आकर्षित करने का माहौल बनाना होगा। अभी हाल ही में ऐपल की सबसे बड़े विनिर्माताओं में से एक ने भारत से बाहर जाने का निर्णय लिया क्योंकि वह तीन वर्ष तक परिचालन विस्तार करने में नाकाम रही।

भारत को ऐसे हालात से बचना चाहिए। आधुनिक विनिर्माण जटिल मूल्य श्रृंखला और कई अन्य चीजों पर निर्भर करता है तभी कोई देश कामयाब हो पाता है। नीतिगत स्तर पर आयात प्रतिबंध तथा राजकोषीय प्रोत्साहन से अलग कुछ विचार करना होगा।

First Published : November 21, 2023 | 6:07 AM IST