चीन की आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) कंपनी डीपसीक ने दो एआई प्रोग्राम और चैटबॉट पेश किए हैं। कंपनी के इस कदम ने तकनीक के बाजार में उथलपुथल मचा दी है। डीपसीक ने अपने कुछ मॉडलों की ईजाद के साथ ही बड़े मुकाम हासिल किए हैं। कंपनी ने इन्हें तैयार करने के लिए करीब 56 लाख डॉलर खर्च किए हैं। चैटजीपीटी, लामा, ग्रोक, क्लाउड और दूसरे बड़े लैंग्वेज मॉडल तैयार करने में खर्च हुए करोडों डॉलर की तुलना में यह रकम कुछ भी नहीं है। मगर नए एआई का प्रदर्शन इन सभी उत्पादों को टक्कर दे रहा है। दिलचस्प है कि इसे बेहद सस्ते चिप के साथ तैयार किया गया है, जिसकी कीमत चैटजीपीटी बनाने में इस्तेमाल हुए ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) से बहुत कम है। दावा किया जा रहा है कंपनी ने इसके प्रशिक्षण में केवल 2,000 जीपीयू का इस्तेमाल किया था, जो चैटजीपीटी में इस्तेमाल हुए जीपीयू की तुलना में बहुत कम हैं।
कंपनी का यह प्रोग्राम आसानी से उपलब्ध ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस वाला ओपन सोर्स कोड है। इसे कोई भी जांच या बदल सकता है और कोई भी प्रोग्रामर इसकी मदद से ऐप्लिकेशन तैयार कर सकता है। इसे ऑफ द शेल्फ यानी पहले से तैयार कंप्यूटरों पर इंस्टॉल करना और चलाना भी संभव है। बड़े हाइपर स्केलिंग डेटा सेंटर में तो इसे बेहद आसानी से चलाया जा सकता है। ओपनएआई, गूगल, मेटा और दूसरी एआई तैयार करने वाली कंपनियां डीपसीक के कुछ विचार जरूर अपना सकती हैं ताकि अगली पीढ़ी के जेनरेटिव एआई मॉडल बेहतर हो सकें। कोड से पता चलता है कि डीपसीक ने ज्यादा कारगर मेमरी मैनेजमेंट सिस्टम तैयार कर लिया है। इससे डीपसीक के लिए कम ताकतवर हार्डवेयर पर प्रशिक्षण और काम के बाद भी अपने प्रतिद्वंद्वियों की टक्कर का प्रदर्शन करना संभव हो जाता है।
संसाधनों की कमी के बीच कम लागत वाला रास्ता निकालने का यह बेजोड़ उदाहरण है। अमेरिका ने चीन को उच्च क्षमता वाले जीपीयू का निर्यात बंद कर दिया, जिससे मजबूरी ने डीपसीक ने यह ईजाद कर डाली। ऐसे में डीपसीक की यह उपलब्धि अमेरिकी संरक्षणवाद और उन्नत कंप्यूटिंग संसाधन साझा करने से उसके इनकार पर सवाल खड़ा कर देती है। इसकी वजह से नवाचार का ऐसा सफर शुरू हुआ, जो कम संसाधनों के साथ भी दमदार प्रदर्शन की राह तैयार कर सकता है। ओपन सोर्स अपनाकर और एआई आसानी से उपलब्ध कराकर कंपनी ने अल्गोरिद्म के प्रसार का रास्ता भी साफ कर दिया है। दुनिया भर में प्रोग्राम तैयार करने वाले लोग उन ऐप्लिकेशन की खोज में जुट गए हैं, जो इन मॉडलों का इस्तेमाल करेंगे। लागत कम होने के कारण इससे एआई के लिए होने वाले शोध एवं विकास में भी निवेश बढ़ेगा।
फिलहाल एआई में अमेरिका की तूती बोलती है लेकिन दूसरों को संसाधन नहीं देने की रणनीति पर उसे अब दोबारा विचार करना पड़ेगा। ओपन सोर्स कोड के जरिये नई तकनीक आने से सिलिकन वैली से ज्यादा ताकतवर जेनरेटिव एआई मॉडल बार आएंगे मगर उन्हें दूसरी जगह बन रहे मॉडलों से कड़ी टक्कर भी मिलेगी।
आर्थिक लिहाज से डीपसीक ने पूरे बाजार में तहलका मचा दिया है। एआई तकनीक में खासा दखल रखने वाली कंपनी एनवीडिया का शेयर पिछले कुछ दिनों में ऐसा लुढ़का है कि उसका बाजार मूल्यांकन 20 फीसदी कम हो गया। अन्य सूचीबद्ध कंपनियों कंपनियों और स्टार्टअप इकाइयों के मूल्यांकन में भी आई कमी आई है। भारतीय इंजीनियर इस तरह की चीजों के लिए अधिक तैयार रहते हैं बस उन्हें केवल प्रोत्साहन की जरूरत है। भारत में एआई से जुड़ी योजनाओं को बढ़ावा दिया गया तो देश में तकनीक की गति बढ़ेगी। देश में डेटा केंद्रों का विकास भी तेजी से हुआ है और मजबूत डिजिटल ढांचे की मदद से यहां का बाजार डीपसीक द्वारा तैयार तकनीकों के विकास के लिए पूरी तरह तैयार दिख रही है। ऐसे में भारत इन नए प्रयोगों के लिए माकूल स्थान बन सकता है।