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संपादकीय: नीतिगत संतुलन जरूरी

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि नीतिगत दरों में कमी करने में मौद्रिक नीति समिति ने जो देरी की है वह भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- December 08, 2024 | 11:01 PM IST

हाल ही में जारी आधिकारिक अनुमान दर्शाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जताए गए अनुमान की तुलना में काफी धीमी गति से विकसित हो रही है। देश की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 5.4 फीसदी की दर से बढ़ी हालांकि रिजर्व बैंक ने अक्टूबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में समान अवधि में इसके 7 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान जताया था।

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि नीतिगत दरों में कमी करने में मौद्रिक नीति समिति ने जो देरी की है वह भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। शीर्ष सरकारी अधिकारियों ने भी हाल के सप्ताहों में नीतिगत ब्याज दरों को कम रखने के पीछे तर्क दिए हैं। इस परिदृश्य में मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत रीपो दर को अपरिवर्तित रखकर गत सप्ताह अच्छा काम किया। इस दौर में अगर अचानक कोई कदम उठाया जाता तो शायद उससे मदद नहीं मिलती। अपस्फीति की प्रक्रिया से निपटना महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

इसके बावजूद रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में 50 आधार अंकों की कमी की जो दो हिस्सों में प्रभावी होगी और जिसकी बदौलत बैंकिंग तंत्र में 1.16 लाख करोड़ रुपये की नकदी आएगी। हालांकि रिजर्व बैंक ने दरों में कटौती को नकदी के संभावित दबाव के चलते उचित ठहराया है लेकिन केंद्रीय बैंक के पास नकदी के अस्थायी संकट से निपटने के लिए अन्य उपाय मौजूद हैं।

सीआरआर में कटौती मौद्रिक नीति व्यवहार को सामान्य बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। हालांकि मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर में ही सहिष्णु दायरे के ऊपरी स्तर के पार चली गई थी लेकिन अब अनुमान जताया जा रहा है कि यह 2025-26 की दूसरी तिमाही में घटकर 4 फीसदी के वांछित लक्ष्य के आसपास आ जाएगी।

ताजा मौद्रिक नीति रिपोर्ट (अक्टूबर में जारी) ने दिखाया कि रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2025-26 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति की दर 4.1 फीसदी रहेगी। ऐसे में वर्ष 2025-26 में मुद्रास्फीति संबंधी नतीजे 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब रह सकते हैं और इससे नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनेगी।

बहरहाल इसकी मात्रा और इसका समय विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा। उदाहरण के लिए यह बात ध्यान देने लायक है कि मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों ने बीते कुछ वर्षों में केंद्रीय बैंक को सकारात्मक रूप से चौंकाया है। ऐसे में आदर्श स्थिति में मौद्रिक नीति समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मुद्रास्फीति की दर टिकाऊ आधार पर लक्ष्य के साथ सुसंगत रहे।

इसके अलावा रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों ने दिखाया कि गत वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में तटस्थ दर 1.4 से 1.9 फीसदी थी जबकि 2021-22 की तीसरी तिमाही में यह दर 0.8 से एक फीसदी रही थी। ऐसे में इजाफे को देखते हुए नीतिगत दरों में कटौती की संभावना सीमित होगी। इसकी दरों में कटौती के उचित समय के निर्धारण में भी उचित भूमिका होगी। मौद्रिक नीति समिति शायद ब्याज दरों में कटौती को आगे बढ़ाने में अनिच्छुक हो तथा अनिश्चितताओं से निपटने के लिए कुछ नीतिगत गुंजाइश बचाकर रखना चाहे।

वृद्धि के संदर्भ में जहां मौद्रिक नीति समिति ने चालू वित्त वर्ष के वृद्धि अनुमान को गत नीतिगत बैठक के 7.2 फीसदी से कम करके 6.6 फीसदी कर दिया है वहीं चालू तिमाही सहित आगामी चार तिमाहियों के लिए इसने सात फीसदी का औसत अनुमान लगाया है। स्पष्ट है कि समिति का अनुमान है कि माहौल सुधरेगा हालांकि अनुमान कुछ विश्लेषकों को आशावाद लग सकता है।

चाहे जो भी हो नीतिगत दरों में कटौती की सीमित गुंजाइश शायद आर्थिक वृद्धि को टिकाऊ ढंग से आगे बढ़ाने में मदद नहीं कर पाए। सरकार को अन्य कारकों पर नजर डालनी होगी ताकि आर्थिक वृद्धि टिकाऊ रखी जा सके। एक असंबद्ध कदम में रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा अनिवासी बैंक जमा पर ब्याज दर बढ़ा दी। हालांकि विदेशी पूंजी हाल के महीनों में बाहर गई है लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार के मौजूदा स्तरों को देखते हुए यह निर्णय दिलचस्प है। वास्तव में रुपया जो कि वास्तविक संदर्भों में अधिमूल्यित है उसका भी अवमूल्यन होने देना चाहिए।

First Published : December 8, 2024 | 11:01 PM IST