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Editorial: अंतरिम बजट में अपनाया गया बीच का रास्ता और गुणात्मक सुधार

राजकोषीय प्रबंधन का सबसे अहम गुण यह है कि बिना सरकारी व्यय की गुणवत्ता से समझौता किए घाटे में कमी की जा रही है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- February 04, 2024 | 9:51 PM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट विश्लेषकों को सुखद आश्चर्य में डालते हुए अंतरिम बजट में राजकोषीय घाटे का अनुमान से कम स्तर प्रस्तुत किया। यह बात खासतौर पर सराहनीय है क्योंकि चालू वर्ष में नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के कमजोर रहने का अनुमान है।

सरकार का मानना है कि 2023-24 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.8 फीसदी के स्तर पर सीमित रखा जा सकता है। बजट अनुमान में इसके 5.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। इसके अलावा 2021-22 में राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 4.5 फीसदी के स्तर से कम करने की घोषणा की गई थी।

मध्यम अवधि के इस मार्ग पर कायम रहते हुए सीतारमण ने 2024-25 तक घाटे के जीडीपी के 5.1 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान जताया है। ऐसी आशंकाएं भी जताई गई थीं कि आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार कुछ लोकलुभावन घोषणाएं कर सकती हैं। सरकार ने ऐसा कुछ न करके सही कदम उठाया है। अगले वित्त वर्ष के अनुमान भी विश्वसनीय नजर आ रहे हैं। वर्ष 2024-25 में नॉमिनल वृद्धि के 10.5 फीसदी रहने का अनुमान भी चालू वर्ष से ऊंचे स्तर पर होने के बावजूद अति आशावादी नहीं नजर आता।

राजकोषीय प्रबंधन का सबसे अहम गुण यह है कि बिना सरकारी व्यय की गुणवत्ता से समझौता किए घाटे में कमी की जा रही है। वास्तव में पूंजीगत व्यय का आवंटन बढ़ रहा है। जैसा कि इस समाचार पत्र के विश्लेषकों ने पिछले सप्ताह दिखाया था, 2024-25 में केंद्र सरकार के कुल व्यय के हिस्से के रूप में पूंजीगत व्यय के 30 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। सरकार ने महामारी के बाद पूंजीगत व्यय में इजाफा किया है।

चूंकि निजी क्षेत्र भारी अनिश्चितता के कारण व्यय करने का अनिच्छुक था इसलिए सरकार ने महामारी के बाद सुधार प्रक्रिया की मदद करके सही किया। वर्ष 2019-20 से 2023-24 के बीच केंद्र सरकार का विशुद्ध पूंजीगत व्यय विशुद्ध संदर्भों में तीन गुना हो गया। कुछ चिंताएं थीं कि व्यवस्था शायद इतने बड़े पैमाने पर पूंजीगत व्यय की खपत न कर पाए क्योंकि क्षमता सीमित है लेकिन सरकार शायद ऐसी बाधाओं से निजात पा चुकी है। चालू वर्ष का संशोधित अनुमान बजट अनुमान से मामूली रूप से कम है।

अगले वित्त वर्ष के लिए जहां सरकार का कुल व्यय छह फीसदी से कुछ अधिक दर से बढ़ने का अनुमान है, वहीं पूंजीगत व्यय के 11 फीसदी की दर से बढ़कर 11.1 लाख करोड़ रुपये पहुंच जाने का अनुमान है। इससे संकेत मिलता है कि सरकार राजस्व व्यय को सीमित करने पर ध्यान दे रही है ताकि पूंजीगत व्यय के लिए गुंजाइश बनाई जा सके। यह मानना उचित है कि नई सरकार लोकसभा चुनाव के बाद पेश किए जाने वाले बजट में घाटे और पूंजीगत व्यय को नियंत्रित रखने का प्रयास करेगी। अधोसंरचना की व्यापक कमी को देखते हुए भारत जैसे विकासशील देश में उच्च पूंजीगत व्यय की जरूरत की अनदेखी नहीं की जा सकती है। यह भी देखा गया है कि पूंजीगत व्यय का गुणक प्रभाव राजस्व व्यय से बहुत अधिक है।

मौजूदा संदर्भ में विचार यह है कि जैसे-जैसे निजी क्षेत्र का भरोसा आर्थिक हालात में सुधार पर मजबूत होता जाएगा और वह क्षमता निर्माण में निवेश करने लगेगा, सरकार पीछे हटने लगेगी और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर ध्यान देगी। कॉर्पोरेट और बैंकों के बही खाते बीते कुछ वर्षों में सुधरे हैं।

हालांकि अभी यह देखना शेष है कि कॉर्पोरेट निवेश में सुधार के आरंभिक संकेत लंबी अवधि के दौरान बरकरार रहते हैं या नहीं। इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा अनुमान से कम उधारी भी व्यवस्था में नकदी की लागत कम करने में मदद करेगी। इसके साथ ही बेहतर प्रबंधित सरकारी वित्त भी वृहद आर्थिक स्थिरता बढ़ाएगा और निवेशकों का विश्वास मजबूत करेगा।

First Published : February 4, 2024 | 9:51 PM IST