गत 12 जून को अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की उड़ान संख्या 171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद आई एयरक्राफ्ट एक्सिडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (एएआईबी) की प्रारंभिक जांच के नतीजों ने जवाब देने के बजाय नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं। उस हादसे में 260 लोगों की मौत हो गई थी।
इंटरनैशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (आईसीएओ) की अनुशंसाओं के पालन के अंतर्गत 2012 में गठित एएआईबी की रिपोर्ट महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह टाटा समूह द्वारा एयर इंडिया के अधिग्रहण के तीन साल पूरे होने के कुछ समय बाद आई है। परंतु रिपोर्ट के निष्कर्ष में अटकल वाले तत्व शामिल हैं, जो न तो पीड़ितों के परिजनों को संतुष्ट कर पाएंगे और न ही विमानन उद्योग के सुरक्षा प्रोटोकॉल को स्पष्टता दे पाएंगे। रिपोर्ट में विमान चालकों की भूमिका को लेकर अस्पष्टता भी परेशान करने वाली है।
एयर इंडिया का अहमदाबाद से लंदन जा रहा विमान एआई 171 उड़ान भरने के 30 सेकंड के भीतर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। वह विमान एक भीड़ भरे इलाके में चिकित्सकों के छात्रावास पर गिर गया था। दुर्घटना के ठीक पहले एक विमान चालक ने ‘मे डे’ की आपातकालीन पुकार लगाई थी। एएआईबी की प्रारंभिक रिपोर्ट कहती है कि इंजनों की ईंधन आपूर्ति उड़ान भरने के तुरंत बाद बंद हो गई थी क्योंकि फ्यूल कंट्रोल स्विचों को ‘चालू’ से ‘बंद’ कर दिया गया था। कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर की रिकॉर्डिंग के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि एक पायलट ने दूसरे से पूछा कि उसने फ्यूल स्विच बंद क्यों किया? इस पर दूसरा पायलट कहता है कि उसने स्विच बंद नहीं किया। रिपोर्ट आवाजों की पहचान नहीं करती। रिपोर्ट में 2018 के अमेरिकी फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के एक बुलेटिन का भी हवाला दिया गया, जिसमें फ्यूल स्विच की लॉकिंग प्रणाली में दिक्कत की बात कही गई थी। चूंकि वह बुलेटिन मशविरे की प्रकृति का था और इस मुद्दे को असुरक्षित नहीं माना गया था और वह कानूनी रूप से प्रवर्तनीय निर्देशों की मांग नहीं करता था इसलिए एयर इंडिया ने अपने बेड़े के विमानों की जांच नहीं करवाई थी। रिपोर्ट का यह कथन भी अस्पष्टता बढ़ाता है कि बोइंग या जीई जीईएनएक्स 1 इंजन निर्माताओं के लिए किसी कार्रवाई की अनुशंसा नहीं की गई।
एएआईबी की 15 पन्नों की रिपोर्ट के साथ दिक्कत यह है कि इसने पायलटों की चूक की अटकलों को जन्म दिया है। इसे खराब ढंग से कहें तो यह पायलट द्वारा आत्मघाती ढंग से उठाए कदम का संकेत है। रिपोर्ट के नतीजों का पीड़ितों के परिजनों को किए जाने वाले भुगतान पर कोई असर नहीं होगा लेकिन विशेषज्ञों ने रिपोर्ट की तीखी आलोचना की है और कहा है कि फ्यूल बंद होना मानवीय चूक थी या तकनीकी खामी, इस विषय पर अधिक जानकारी की जरूरत है। यह भी लगता है कि रिपोर्ट में प्रस्तुत घटनाक्रम भ्रामक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्यूल कंट्रोल स्विच को उड़ान के कुछ ही सेकंड के बाद बंद कर दिया गया। रिपोर्ट यह भी कहती है कि रैम एयर टर्बाइन या बैकअप पॉवर सोर्स जो केवल तभी काम करता है जब दोनों इंजन फेल हो जाते हैं, वह उड़ान भरने के तुरंत बाद सक्रिय हो गया था। इससे संकेत मिलता है कि विमान के जमीन से ऊपर उठते ही दोनों इंजन बंद हो गए थे। कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर तथा अन्य तकनीकी आंकड़ों की पूरी जानकारी के बिना हादसे की वजह पता चलनी मुश्किल है।
नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने सही कहा है कि मीडिया और जनता को नतीजों पर नहीं पहुंचना चाहिए क्योंकि ये प्रारंभिक निष्कर्ष एक जटिल जांच की शुरुआत हैं जो कम से कम एक साल चलेगी। सवाल यह है कि इतनी अस्पष्ट रिपोर्ट जारी क्यों की गई। एएआईबी की जांच टीम के पास विशेषज्ञता की कमी नहीं है। इसका नेतृत्व महानिदेशक के पास है जो भारतीय वायु सेना के पूर्व एरोनॉटिकल इंजीनियर हैं। इसमें अमेरिकी नैशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड के सदस्य, एक एयर ट्रैफिक कंट्रोल अधिकारी और एक विमानन चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल हैं। भारत ने आईसीएओ के विशेषज्ञ को भी पर्यवेक्षक दर्जा देने का अनुरोध स्वीकार किया है ताकि जांच के नतीजे अधिक स्पष्ट रूप से सामने आ सकें।