देश आज 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस अवसर पर खुशियां मनाने के लिए उपलब्धियों की कमी नहीं है। भारत ने जो मुकाम हासिल किया है वह कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि मतभेदों और विविधताओं के बावजूद भारत दशकों से एकजुट रहा है और उत्तरोत्तर मजबूत हुआ है। उदाहरण के लिए इस साल मई में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत में राष्ट्रीय एकता की भावना उफान पर थी। भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमलों के जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरा राष्ट्र न केवल एक साथ शोक में डूब गया बल्कि जब जवाब देने की बारी आई तो सरकार और सशस्त्र सेना के साथ मजबूती से खड़ा रहा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान में आतंकवादी ढांचे नष्ट कर दिए गए और फिर पाकिस्तानी सेना के उकसावे का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने के मामले में एक नई रेखा खींच दी।
आर्थिक लिहाज से भी भारत वर्तमान में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। पिछले कुछ दशकों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था ने तेज गति से प्रगति की है जिससे देश में गरीबी काफी कम हुई है। एक राष्ट्र के रूप में भारत के पास जश्न मनाने के लिए कई उपलब्धियां मौजूद हैं मगर यह अपनी कमियों पर ध्यान देने एवं भविष्य की चुनौतियों से निपटने की रणनीति तैयार करने का भी अवसर है। सरकार ने भारत को स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक स्वागत योग्य लक्ष्य है मगर इस पर भी चर्चा आवश्यक है कि क्या भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था यह सपना साकार करने के लिए सही दिशा में बढ़ रही है। हम सभी इस बात से सहमत हैं कि भारत को त्वरित गति से आगे बढ़ने की जरूरत है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां पिछले कुछ दशकों की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई हैं।
अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी से अधिक शुल्क लगा दिए हैं जिनमें रूस से तेल खरीदने पर लगाया गया अतिरिक्त 25 फीसदी शुल्क भी शामिल है। यह स्थिति इसलिए गंभीर है क्योंकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। हालांकि, यह उम्मीद जरूर की जा रही है कि आने वाले सप्ताहों में स्थिति सुधरेगी किंतु इतने ऊंचे शुल्क के कारण निर्यात, देश में विकास और रोजगार सृजन पर गंभीर असर होगा। अमेरिका के साथ भारत के संबंध लगातार प्रगाढ़ हो रहे थे किंतु अचानक हालात बदल गए।
इसे देखते हुए यह समझना होगा कि आखिर क्या दिक्कतें आईं और भारत अपना वजूद दोबारा कैसे हासिल कर सकता है। यह समय इस विषय पर भी चर्चा करने के लिए माकूल है कि भारत को कैसी अर्थव्यवस्था तैयार करनी चाहिए ताकि युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ विकास लक्ष्य भी सहजता से हासिल हो जाए।
आने वाले वर्षों और दशकों में भारत जो कुछ भी हासिल करेगा वह काफी हद भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था की दिशा एवं दशा पर निर्भर करेगा। मजबूत संस्थानों पर आधारित एक मुक्त, नियम-आधारित व्यवस्था भारत के हित में बेहतर रहेगी। हालांकि, भारत की कार्य व्यवस्था में कुछ संस्थानों ने अपेक्षित प्रदर्शन नहीं किया है। उदाहरण के लिए संसद या राज्य विधान सभाओं में महत्त्वपूर्ण विधेयक बिना अधिक चर्चा एवं बहस के पारित हो जाते हैं।
भारतीय निर्वाचन आयोग की कार्य प्रणाली पर विपक्ष प्रश्न खड़ा कर रहा है। इसके पहले ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। निर्वाचन आयोग का गैर-पक्षपातपूर्ण व्यवहार भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की आधारशिला है जिस पर शेष सब कुछ निर्भर करता है। राजनीतिक कार्यकर्ताओं और मतदाताओं दोनों के मन-मस्तिष्क में संदेह और भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए।
आयोग को इसे दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। एक और संस्थान जिसे मजबूत करने की आवश्यकता वह है न्यायपालिका। न्यायालयों में मामलों पर सुनवाई में देरी से प्रायः शासन-व्यवस्था और आर्थिक विषयों से जुड़े निर्णयों की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इस तरह, भारत को फिलहाल बाहरी आर्थिक चुनौतियों से निपटना है मगर दीर्घ अवधि में इसकी प्रगति एवं विकास यात्रा उसके संस्थानों की ताकत पर निर्भर करेगी।