Editorial: पूंजीगत व्यय में इजाफा, इंफ्रास्ट्रक्चर को गति

PM Modi ने मंगलवार को वैश्विक समुद्री भारत शिखर बैठक में देश की समुद्री अर्थव्यवस्था का खाका पेश किया।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:21 PM IST

केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में पूंजीगत व्यय (Capital expenditure) में काफी इजाफा किया है। यह इजाफा आंशिक तौर पर महामारी के कारण मची उथलपुथल के बाद अर्थव्यवस्था की सहायता करने के लिए किया गया।

बढ़ा हुआ पूंजीगत व्यय देश के अधोसंरचना और लॉजिस्टिक क्षेत्र के बीच के अंतर को भी पाटना चाहता है क्योंकि इसके कारण कारोबार की लागत बढ़ी है और भारतीय कंपनियों की समग्र प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित हुई है।

इसी विचार पर आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने मंगलवार को वैश्विक समुद्री भारत शिखर बैठक में देश की समुद्री अर्थव्यवस्था का खाका पेश किया।

उन्होंने समुद्री क्षेत्र में 23,000 करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाओं की शुरुआत की। इस क्षेत्र के लिए नए नजरिये के तहत अगले 25 वर्षों में 75-80 लाख करोड़ रुपये के निवेश की परिकल्पना की गई है। 2047 तक देश में बंदरगाहों की क्षमता को चार गुना करने का लक्ष्य है। इसके साथ ही सभी बड़े बंदरगाहों को कार्बन रहित करने का भी लक्ष्य है।

इसके अलावा 25 क्रूज टर्मिनल स्थापित करने का लक्ष्य है ताकि देश को पोत पुनर्चक्रण के क्षेत्र में भी एक अहम केंद्र बनाया जा सके। इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना इस बात को भी रेखांकित करता है कि भारत प्रस्तावित भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर को लेकर कितना प्रतिबद्ध है।

यह दृष्टिकोण महत्त्वाकांक्षी है लेकिन आने वाले वर्षों में व्यापार बढ़ाने और क्षेत्र में देश के कद को मजबूत बनाने के लिए समुद्री क्षमता विकसित करना अत्यधिक आवश्यक है। इसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में काफी सुधार हुए हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा भी, प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता हाल के वर्षों में दोगुनी हो गई है जबकि बड़े पोतों के टर्नअराउंड (माल उतारने और नया माल लादने) में लगने वाला समय भी 24 घंटे से कम रह गया है जबकि 2014 में यह 42 घंटे था।

सागरमाला कार्यक्रम भी इस संदर्भ में कई पहलुओं का समाधान कर रहा है। बहरहाल भारत की अधोसंरचना महत्त्वाकांक्षाएं केवल समुद्री क्षमता विकसित करने तक सीमित नहीं हैं। सड़क और रेलवे में भी बहुत अधिक धन का निवेश किया जा रहा है। एनालिटिक्स फर्म क्रिसिल के मुताबिक अगले सात वर्षों में अधोसंरचना व्यय दोगुने से अधिक हो जाएगा, यानी यह राशि करीब 143 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। सड़क परियोजनाओं पर 37 लाख करोड़ रुपये और रेलवे पर 25 लाख करोड़ रुपये की राशि खर्च की जाएगी।

वित्त की बात करें तो माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ही इसमें से ज्यादातर हिस्सा व्यय करेगी। अनुमान के मुताबिक फिलहाल अधोसंरचना व्यय में आधा हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा जबकि शेष आधा हिस्सा राज्यों और निजी क्षेत्र की ओर से आएगा। गैर जीवाश्म ईंधन निवेश में भी अहम इजाफा होने की उम्मीद है। इससे कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।

आने वाले वर्षों में अधोसंरचना विकास की गति और व्यय का स्तर कई कारकों पर निर्भर करेगा। परियोजनाओं के पूरा होने की लंबी अवधि और कई क्षेत्रों में कम प्रतिफल को देखते हुए निजी क्षेत्र अक्सर निवेश का अनिच्छुक रहता है। ऐसे में सरकार को नेतृत्व जारी रखना होगा।

बहरहाल, तेज गति से राजकोषीय सुदृढ़ीकरण करने की आवश्यकता तथा बजट में मांग में इजाफा निरंतर उच्च आवंटन की राह में बाधा बनेंगे। बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने में क्षमता की कमी आड़े आएगी जिसका परिणाम अक्सर अतिरिक्त लागत और समय के रूप में सामने आता है। इससे भी निपटना होगा।

राजकोषीय बाधाओं को देखते हुए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना आवश्यक होगा। निजी क्षेत्र जहां निवेश का दायरा बढ़ाने के लिए हरित ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश कर रहा है वहीं नीतिगत स्थिरता भी आवश्यक होगी। वृहद आर्थिक स्थिति और कीमतों में स्थिरता भी लागत को सीमित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। चूंकि अधिकांश अधोसंरचना निवेश ऋण आधारित है तो ऐसे में कम और स्थिर ब्याज दर निजी क्षेत्र को आकर्षित करेगी।

First Published : October 18, 2023 | 9:49 PM IST