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‘पीरियड लीव’ पर चर्चा आवश्यक

Published by
कनिका दत्ता
Last Updated- March 13, 2023 | 9:47 PM IST

मासिक धर्म के दौरान अवकाश (पीरियड लीव) के प्रावधान पर बहस तेज हो गई है। क्या कंपनियों को अपनी महिला कर्मचारियों को पीरियड लीव देनी चाहिए? भारत में इस प्रश्न का उत्तर कई विषयों-सामाजिक संरचना, पुरुष कर्मचारियों के रवैये और महिलाओं की निजता का आदर-पर निर्भर करता है।

पिछले कई दशकों से कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का एक असर यह भी हुआ है कि महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े विषय कंपनी प्रबंधन के स्तर पर चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। जब महिलाओं को लंबा मातृत्व अवकाश दिए जाने की बात उठी तो उस समय कंपनियों में और कर्मचारियों के बीच यह काफी कौतूहल का विषय बन गया था।

वर्ष 2017 में फांग (फेसबुक, एमेजॉन, नेटफ्लिक्स और गूगल) कंपनियों ने महिला कर्मचारियों को अपने अंडाणु भविष्य में संतानोत्पत्ति के लिए सहेज कर रखने (एग फ्रीजिंग) का प्रस्ताव दिया था। इन कंपनियों ने यह भी कहा कि इस पर आने वाले खर्च का वहन भी वे ही करेंगी।

इन कंपनियों का तर्क था कि महिलाओं को करियर को ध्यान में रखते हुए संतानोत्पत्ति के विषय में सोचने का विकल्प दिया जा रहा है। कंपनियों ने कहा कि जो महिलाएं एग फ्रीजिंग का विकल्प चुनती हैं उन्हें हजारों डॉलर दिए जाएंगे।

इस घोषणा पर चारों ओर से तीखी प्रतिक्रिया आईं। इस पर शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा। पुरानी परंपरा मानने वाले कुछ लोगों ने कहा कि यह प्रस्ताव परिवार की तुलना में करियर को अधिक प्राथमिकता देता है। इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले लोगों ने कहा कि यह पेशकश महिलाओं को महज एक विकल्प देती है और एग फ्रीजिंग उनके लिए कोई बाध्यता नहीं है।

इस बीच, कुछ लोगों ने यह भी कहा कि यह प्रस्ताव इसलिए आया है ताकि कंपनियां महिलाओं से जुड़े एक अत्यंत निजी विषय पर अपने हितों के अनुकूल प्रभाव डाल सके। यहां यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि जितनी भी प्रतिक्रियाएं आई थीं उन सभी समूहों में महिलाएं शामिल थीं।

पीरियड लीव नीति पर तीखी बहस जरूर होगी और उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा। यह चलन रूस, चीन, जापान, मैक्सिको, इंडोनेशिया और जापान में है। इनमें कुछ देशों में एग फ्रीजिंग का उद्देश्य प्रजनन क्षमता बनाए रखना है, न कि महिलाओं को ताकतवर बनाना।

कुछ विकसित देशों में कंपनियों ने महिलाओं को पीरियड लीव का लाभ देने की लिए पहल की है। भारत में केवल तकनीकी स्टार्टअप कंपनियों जैसे जोमैटो, बैजूस, स्विगी और कुछ दूसरी कंपनियों ने यह सुविधा दी है। मलयालम भाषा के एक मीडिया संस्थान ने भी पीरियड लीव देने की घोषणा की है।

वैसे पीरियड लीव प्रचलन में नहीं है इसलिए कंपनी प्रबंधनों को इससे जुड़े विषयों पर पूरी मेहनत से काम करना होगा। ज्यादातर महिलाओं को लगता है कि अगर पीरियड के दौरान एक-दो दिन की छुट्टी मिल जाए उन्हें काफी राहत मिलेगी।

पीरियड के दौरान महिलाओं को कई तरह की मानसिक एवं शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई महिलाओं का कहना है कि पीरियड के दौरान उन्हें यात्रा करने में काफी परेशानी होती है। पीरियड लीव देने की तरफ कदम उठाना सरल नहीं है। यह एक ऐसा विषय है जिसके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए जा सकते हैं।

पीरियड लीव के खिलाफ एक तर्क यह दिया जा सकता है कि महिलाएं इस अवकाश का दुरुपयोग भी कर सकती हैं। पीरियड लीव का बेजा इस्तेमाल एक चर्चा का विषय जरूर हो सकता है। कई महिलाओं को पीरियड के दौरान किसी खास समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है, मगर कई ऐसी महिलाएं भी हैं जिन्हें इस अवधि में बहुत सारी शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से गुजरना पड़ता है। यह बात विशेषकर उन महिलाओं पर अधिक लागू होती है जो घर और कार्यालय दोनों जगह दायित्व संभालती हैं।

दूसरा विषय समानता एवं संरचना से जुड़ा हुआ है। मानव संसाधन विशेषज्ञ और वरिष्ठ प्रबंधन यह तर्क दे सकता है कि महिलाएं चाहें तो महीने में आकस्मिक अवकाश के रूप में दो-तीन दिन की छुट्टियां ले सकती हैं क्योंकि इस अवकाश के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होती है। फिलहाल महिलाएं पीरियड के दौरान आकस्मिक अवकाश का ही इस्तेमाल करती हैं।

हालांकि इनमें से किसी भी विकल्प का इस्तेमाल करने पर कार्यस्थलों पर महिलाओं को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि महिलाएं आकस्मिक अवकाश के रूप में अधिक छुट्टियां लेंगी और उनके पास इस खाते में आपात स्थिति के लिए अधिक अवकाश नहीं बचेंगे। इसका एक समाधान यह हो सकता है कि हर महीने पीरियड लीव के रूप में महिलाओं के आकस्मिक अवकाश के खाते में एक-दो अतिरिक्त अवकाश जोड़ दिए जाएं।

एक दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि महिलाओं को पीरियड के दौरान कुछ दिनों के लिए घर से काम करने की अनुमति दी जाए। कार्यालयों में काम करने वाली महिलाओं के लिए तो यह विकल्प ठीक हो सकता है मगर उन महिलाओं का क्या जो फैक्टरी, खुदरा या स्वास्थ्य या होटल क्षेत्र में काम करती हैं।

दूसरा विषय तीसरे मुद्दे की ओर ले जाता है। यह मुद्दा निजता से जुड़ा हुआ है। भारत में महिलाओं में पीरियड पर चर्चा खुल कर नहीं हो पाती है और स्वयं महिलाएं असहज महसूस करती हैं।

दूसरी बात यह है कि महिलाएं अपने कार्यालयों में पीरियड लीव के लिए आवेदन करने या किस वजह से घर से काम करने की अनुमति मांगने में झिझक सकती हैं। पीरियड लीव शुरू करने का एक फायदा या हो सकता है कि पुरुष सहकर्मी महिलाओं की समस्याओं पर अधिक खुले विचार से सहानुभूति के साथ चर्चा कर पाएंगे।

कुल मिलाकर पीरियड लीव पर चर्चा करने के सभी कारण मौजूद हैं। इससे अधिक से अधिक महिलाएं श्रमबल में शामिल हो सकती हैं। हालांकि पीरियड लीव का प्रावधान हो या नहीं इसका सारा दारोमदार कंपनियों पर होगा। असंगठित क्षेत्रों जैसे निर्माण एवं कारखानों में काम करने वाली महिलाएं संभवतः पीरियड लीव का लाभ नहीं ले पाएंगी।

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत में पुराने समय में महिलाओं को पीरियड के दौरान घरेलू काम करने से रोक दिया जाता था। तब ऐसी मान्यता थी कि पीरियड के दौरान महिलाएं अस्वच्छ होती हैं। यह महिलाओं के आत्म सम्मान पर हमला जरूर था लेकिन इसका एक फायदा यह होता था कि उन्हें पीरियड के दौरान कुछ दिन आराम करने का समय मिल जाता था। अब आधुनिक महिलाओं को भी पीरियड के दौरान एक-दो दिन का आराम मिल जाए तो उन्हें काफी राहत मिलेगी। मगर इस बार कारण ज्यादा प्रगतिशील है।

First Published : March 13, 2023 | 9:47 PM IST