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लानत वसुंधरा पे, कोई इस तरह जिए…

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 4:30 PM IST

काग्रेंस के भावी वारिस राहुल गांधी ने ‘भारत खोजो’ यात्रा शुरू की है। पर एक शख्सियत ऐसी है, जिसे सही मायने में इस तरह की यात्रा की शुरुआत करनी चाहिए।


वह हैं महिला और बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी। रेणुका महिला और बाल विकास से संबंधित हर पहलू की जानकारी हासिल करने की ख्वाहिश तो दिखाती हैं, पर उनके जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने अब तक कुछ भी गौरतलब नहीं किया है।


उदाहरण के तौर पर देखें तो महिलाओं और बच्चों की भूख की समस्या के हल की दिशा में कोई ठोस पहल अब तक नहीं की गई है।यदि रेणुका को इस बात का इलहाम हो, और वह सही में ऐसी कोई यात्रा शुरू करना चाहें, तो उन्हें इसका आगाज उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के बोम गांव से करना चाहिए, जिसकी पहचान कुपोषित बच्चों और उनकी मांओं के लिए है।


भुइया जनजाति की देवंती भी इसी गांव में रहती हैं। वह सात महीने से गर्भवती हैं और चौथे बच्चे की मां बनने वाली हैं।


जनवरी की सर्दी में सुबह के वक्त देवंती और उनके छोटे बेटे ओम प्रकाश के बदन पर तन ढकने लायक कपड़े भी नहीं थे और उनके शरीर दूर से ही कुपोषित नजर आ रहे थे।


पर उन्होंने रेणुका चौधरी के मंत्रालय की ओर से चलाई जा रही आंगनबाड़ी की मदद नहीं ली, जहां तीन साल से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती और दूध पिलाने वाली मांओं की मदद की व्यवस्था होती है।


उस इलाके में काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता परी गुप्ता को पता ही नहीं है देवंती नाम की कोई महिला इलाके में रहती भी है।


परी के मुताबिक, यदि उन्हें देवंती के बारे में जानकारी होती, तो वह उनके घर जाकर खाने के पैकेट दे आती, जिससे देवंती और उनके परिवार के लिए हफ्ते भर के भोजन का इंतजाम हो जाता।देवंती के पति द्वारिका पत्थर तोड़ने का काम करते हैं, जिसके बदले उन्हें 60 रुपये की दिहाड़ी मिलती है।


द्वारिका के पास बीपीएल कार्ड नहीं है। उनके पास एपीएल कार्ड है, जिसकी बदौलत उन्हें महीने में तीन लीटर केरोसिन और कुछ चीनी मिल जाती है।


 यह परिवार 12 रुपये प्रति किलो चावल खरीदता है। जो चावल वे खरीदते हैं, उसे स्थानीय भाषा में ‘खंड’ कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल मुर्गीदाना के रूप में होता है।


देवंती कहती हैं – ‘यदि मैं आंगनबाड़ी जाती हूं, तो वहां के कार्यकर्ता मुझे भगा देंगे। वे कहते हैं कि जब तक तुम्हारा पंजीकरण नहीं हुआ है, तुम यहां नहीं आ सकती। एक समय में सिर्फ 15 लोग पंजीकृत हो सकते हैं।’


जब देवंती से कहा गया कि उन्हें अपने अधिकारों की मांग करनी चाहिए, तो वह उठ खड़ी हुईं। वह अपने घर से करीब एक किलोमीटर दूर आंगनबाड़ी केंद्र गईं, वहां उन्हें कोई भी कार्यकर्ता नहीं मिला। यानी आंगनबाड़ी केंद्र में कोई भी मौजूद नहीं था।


आंगनबाड़ियों द्वारा ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ नाम का कार्यक्रम चलाया जाता है। इस कार्यक्रम का मकसद तीन साल से कम उम्र के बच्चों, उनकी माताओं और दूध पिलाने वाली मांओं के उचित पोषण की जरूरतों को पूरा करना है।


बोम गांव के पड़ोस में धोरपा गांव है। धोरपा गांव में बने प्राथमिक विद्यालय में सिर्फ एक कमरा है, जिसे आंगनबाड़ी के रूप में तब्दील कर दिया गया है। वहां मौजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने ‘पंजीरी’ (आटे और चीनी को भुनकर बनाया गया खाद्य पदार्थ) की एक आधी भरी बोरी दिखाई।


स्कूली बच्चों को दोपहर के वक्त यही पंजीरी खाने को दी जाती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को 10-10 किलो की 3 ऐसी बोरियां मुहैया कराई जाती हैं।


स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन मुहैया कराया जाता है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कहती हैं कि यदि पंजीरी का वितरण सुबह के वक्त ही कर दिया जाए, तो बच्चे इसे खाने के बाद स्कूल छोड़कर चले जाएंगे।


लिहाजा बच्चों को देर से पंजीरी दी जाती है और भूखे बच्चों से जबरन इंतजार करवाया जाता है।इसी तरह, दूध्दी नामक गांव के सामाजिक कार्यकर्ता अभय कुमार का कहना है कि खाने के सामान की बोरियां गांव वालों को बेच दी जाती हैं। 150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचे जाने वाले इस खाद्य पदार्थ का इस्तेमाल लोग पशु आहार के रूप में करते हैं।


 अभय दूध्दी ग्राम विकास समिति चलाते हैं। यह समिति राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (एनआरईजीपी) के तहत रोजगार हासिल करने के लिए लोगों को संगठित करती है।रेणुका चौधरी के पास हर समस्या का समाधान है।


उनका कहना है कि महिला भ्रूण हत्या के प्रति महिलाओं को सजग होना चाहिए। पर क्या उन्हें यह नजर नहीं आता कि जो बच्चे इस जमीं पर आ चुके हैं, वे भूखमरी के शिकार हो रहे हैं? पिछले 4 साल में उन्होंने कितनी आंगनबाड़ियों का दौरा किया है?


 उन्होंने यह जानने के लिए अब तक कितने मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की है कि अपने-अपने राज्यों में इस स्कीम के कार्यान्वयन को लेकर वे (मुख्यमंत्री) कितने संजीदा हैं?


क्या इन मामलों में रेणुका अतिरिक्त रूप से सजग हैं? खासतौर पर तब, जब देश में 3 साल से कम उम्र के बच्चों का वजन अपेक्षित वजन से कम है। अच्छा यह होता कि वे बातें कम, काम ज्यादा करतीं।


 

First Published : March 10, 2008 | 11:32 PM IST