भारतीय शेयर बाजारों ने केंद्रीय बजट का स्वागत किया और प्रमुख सूचकांकों ने सामान्य से अधिक प्रतिफल दर्शाया। सर्वाधिक व्यापक सूचकांक सीएमआईई समग्र शेयर मूल्य सूचकांक (सीओएसपीआई) जहां 3,000 से अधिक सक्रिय शेयर कारोबार होते हैं, ने बजट के दिन 1.2 फीसदी और उसके अगले दिन भी ठीक इतनी ही वृद्धि दर्ज की।
बजट वाले सप्ताह में 2.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई जो भारतीय शेयरों के साप्ताहिक प्रदर्शन की तुलना में काफी बेहतर है। अप्रैल 2020 से औसत साप्ताहिक प्रतिफल 0.85 फीसदी तथा उसका माध्य 1.22 फीसदी रहा है। ऐसे में 2.6 फीसदी का प्रतिफल शेयरों पर साप्ताहिक प्रतिफल के मामले में शीर्ष 25 फीसदी में शामिल है। जाहिर है बाजार बजट से प्रसन्न दिखे।
आम परिवारों ने भी केंद्रीय बजट का स्वागत किया। शेयर बाजार बजट घोषणाओं को लेकर तत्काल प्रतिक्रिया देते हैं, वहीं हमारा मानना है कि आम परिवार इसे हजम करने में थोड़ा समय लेते हैं। आम परिवार वित्तीय बाजारों की तरह इशारों को तत्काल नहीं समझते। ऐसे में उन्हें इन्हें पूरी तरह समझने में वक्तलगता है।
ऐसे में कहा जा सकता है कि एक सप्ताह का समय बजट को लेकर आम परिवारों की प्रतिक्रिया समझने की दृष्टि से पर्याप्त समय है। इतना ही नहीं उपभोक्ताओं का रुझान भी इसके आकलन का बेहतर मानक है। सीएमआईई का उपभोक्ता रुझान सूचकांक (आईसीएस) ग्रामीण और शहरी भारत की करीब 99 प्रतिशत आबादी में से जुटाये गए 10,000 परिवारों के नमूनों पर आधारित है और वह परिवारों के रुझानों का साप्ताहिक अनुमान पेश करता है।
आईसीएस में 6 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 6.4 फीसदी की तेजी आई। केंद्रीय बजट 1 फरवरी को पेश किया गया था। यह 2016 में आईसीएस शृंखला शुरू होने के बाद रुझानों में सबसे तेज बदलाव है।
अप्रैल 2020 के बाद की अवधि में आईसीएस में औसत साप्ताहिक बदलाव 0.18 प्रतिशत ऋणात्मक था, इसका माध्य 0.16 फीसदी ऋणात्मक था और 75 प्रतिशत के साप्ताहिक बदलाव पर मूल्य 3.5 फीसदी था। वहीं साप्ताहिक बदलाव के 87 प्रतिशत पर मूल्य 6.4 फीसदी था। जाहिर है परिवार बजट से बाजार की तुलना में ज्यादा खुश हैं।
2022 का बजट अन्य बजटों से अलग था। सीएमआईई ने जनवरी 2016 से उपभोक्ता रुझानों को आंकना शुरू किया। इस प्रकार उसने सात बार केंद्रीय बजट को लेकर रुझानों का आकलन किया। सात में से चार अवसरों पर परिवारों ने बजट को लेकर निराशा जताई। इन अवसरों पर पहले सप्ताह में सूचकांक दो से 5.6 फीसदी के बीच गिरे। सन 2019 के अंतरिम बजट और 2020 के बजट में परिवारों ने प्रस्तुति के एक सप्ताह के भीतर 2.3 और 2.2 फीसदी इजाफे की प्रतिक्रिया दी थी। अंतरिम बजट लोकलुभावन था। बहरहाल 2022 में आईसीएस में इजाफा किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में अधिक था।
बजट अग्रगामी संकेत देता है। ऐसे में यह वर्तमान आर्थिक हालात के बजाय अपेक्षाओं पर असर डाल सकता है। इसके अलावा बजट में ऐसा कुछ नहीं था जो आम परिवारों को संतुष्ट करता हो। आम परिवार इस बात को समझते हैं। यही कारण है कि बजट के बाद आईसीएस में लगभग हर हरकत उपभोक्ता अनुमान सूचकांक (आईसीई)में देखी गई, न कि वर्तमान आर्थिक हालात (आईसीसी) के सूचकांक में। आईसीसी में 6 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 1.5 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि आईसीसी में 9.6 फीसदी का।
जाहिर है आम परिवार बजट के बाद बेहतर भविष्य देख रहे हैं। आईसीई में 9.6 फीसदी के इजाफे को इस तथ्य के साथ सराहा जा सकता है कि अपै्रल 2020 से आईसीई में औसत साप्ताहिक बदलाव 0.1 फीसदी ऋणात्मक और माध्य बदलाव एक फीसदी था। 9.6 फीसदी का इजाफा साप्ताहिक आईसीई के साप्ताहिक वितरण के 97 प्रतिशत पर दर्ज किया गया।
आम परिवारों द्वारा बजट का यह आभासी सार्वजनिक स्वागत काफी भेदभावपूर्ण है। बजट से हर व्यक्ति खुश नहीं है। शहरी भारत ने इसे नकारा है जबकि ग्रामीण भारत ने इसे सराहा है। शहरी भारत का आईसीएस 6 फरवरी, 2022 को समाप्त सप्ताह में 4.4 फीसदी गिरा जबकि ग्रामीण भारत का 12.2 फीसदी बढ़ा। ऐतिहासिक रुझान को ध्यान में रखें तो दोनों ही गतियां अप्रत्याशित हैं। दो क्षेत्रों के आईसीएस में इतना अंतर सामान्य नहीं है। यह बात भी असाधारण है कि दोनों एक ही सप्ताह में दो दिशाओं में इतना अलग चले।
यह संभव है कि उच्च बेरोजगारी तथा उच्च मुद्रास्फीति ने शहरी इलाकों को आस बंधाई हो कि उन्हें बजट से कुछ राहत मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बजट का संदेश ढांचागत विकास पर केंद्रित रहा। परंतु इससे वैसे रोजगार सृजित नहीं हो रहे जिनकी युवा भारत को आकांक्षा है। बुनियादी विकास से विनिर्माण में रोजगार तैयार हो सकते हैं लेकिन वह व्यापक तौर पर अनुबंध आधारित एवं अस्थायी प्रकृति के होते हैं। शिक्षित शहरियों को ऐसे रोजगार नहीं चाहिए। इसके अलावा वित्त मंत्री के बजट भाषण में भी रोजगार तैयार करने पर जोर नहीं दिया गया।
ग्रामीण भारत के उत्साह की वजह अस्पष्ट है। अगले वर्ष मनरेगा के लिए आवंटन चालू वर्ष से कम है। उर्वरक सब्सिडी में कमी की गई है। पीएम किसान योजना जिसके जरिये किसानों को नकद राशि दी जाती है, उसका आवंटन भी स्थिर है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में आवंटन कम हुआ है। खाद्य सब्सिडी में कटौती का अर्थ यह है कि सरकार किसानों से कम अनाज खरीदेगी। चाहे जो भी हो लेकिन ग्रामीण भारत का ताल्लुक केवल किसानों से नहीं है और वह बजट से खुश है। क्यों खुश है, यह हम नहीं जानते।