भारत की तकनीकी कंपनियों को उस समय अप्रत्याशित लाभ हुआ जब चीन की सरकार ने एक के बाद एक कई तकनीकी कंपनियों और उद्योगों के खिलाफ कदम उठाए। उदाहरण के लिए ‘एड-टेक’ कंपनियां वीडियो और सॉफ्टवेयर तथा अंग्रेजी सिखाने वाले प्रशिक्षकों के लाइव वीडियो के माध्यम से दुनिया भर के बच्चों को शिक्षित करते हैं। इस काम को भारत के बाहर करने का स्वाभाविक अवसर है क्योंकि बाहर 24 साल के ऐसे अनेक अंग्रेजी भाषी युवा मिल जाएंगे जो 12 वर्ष के बच्चों को पढ़ा सकें। चीन की सरकार ने इस क्षेत्र में चीनी कंपनियों को क्षति पहुंचाई जिससे भारतीय कंपनियों के लिए अवसर बेहतर हुए।
चीन की सरकार के ऐसे ही कदमों का एक उदाहरण है क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार पर प्रतिबंध। ऐसा करके चीन बोलिविया, इंडोनेशिया, तुर्की और मिस्र की श्रेणी में शामिल हो गया है। ये पांचों देश कुछ मामलों में एक जैसे हैं और इससे हमें यह अंतर्दृष्टि मिलती है कि दरअसल हो क्या रहा है।
इतिहास में झांकें तो राजाओं ने लेनदेन की सुविधा के लिए सिक्के ढलवाए और ताकि उनके क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ सके। तमाम नाकामियों के बाद आखिरकार शताब्दियों बाद इसे मुद्रा के रूप में विकसित किया गया जो या तो कागज के टुकड़े हैं या इलेक्ट्रॉनिक टोकन। इन्हें मुद्रास्फीति को लक्षित करने वाला केंद्रीय बैंक तैयार करता है। जीडीपी में वृद्धि के अलावा यह मुद्रा सरकार के लिए आय जुटाने का काम करती है। इस आय को नकदी मुद्रण से प्राप्त आय कहा जाता है और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्त मंत्रालय को दिया जाने वाला लाभांश इसी आय का एक हिस्सा होता है।
क्रिप्टोकरेंसी के मूल में यही विचार है कि बिना केंद्रीय बैंक के मुद्रा निर्माण और लेनदेन करना संभव है। एरिक रेमंड ने एक महत्त्वपूर्ण बात कही और अंतर्दृष्टि दी: ‘द कैथेड्रल ऐंड द बाजार’। जमीन के स्वामित्व का निर्धारण एक कैथेड्रल (मान लेते हैं खजाना) या बाजार (मान लेते हैं ब्लॉकचेन) के माध्यम से किया जा सकता है। पैसे का निर्माण कैथेड्रल (यहां सरकारी केंद्रीय बैंक) अथवा बाजार (यहां बिटकॉइन) के माध्यम से किया जा सकता है। आधुनिक विश्व में एक बड़ा विचार यह भी है कि बाजार संबंधी उपाय किस हद तक निर्मित किए जा सकते हैं। तकनीकी उन्नति से यह संकेत मिलता है कि बाजार निर्मित पैसा आने वाले वर्षों में कारगर साबित हो सकता है। इससे लोगों को चयन की स्वतंत्रता मिलेगी और वे अपने जीवन को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर सकेंगे। प्रतिस्पर्धा के चलते इसमें आश्चर्य नहीं है कि केंद्रीय बैंक और उनके क्लब नाखुश हैं।
यदि बेहतर ढंग से निर्मित केंद्रीय बैंकों के समक्ष रखकर देखा जाए तो क्रिप्टोकरेंसी केवल एक अवधारणा का उदाहरण है। लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में (हम देख सकते हैं कि कौन सी बात पांच देशों को क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ करती है) केंद्रीय बैंक बुरी तरह काम करते हैं और सरकार समर्थित मुद्रा के लिए वहां प्रतिस्पर्धा करना काफी मुश्किल है।
लोकतांत्रिक देश में राज्य की शक्ति का इस्तेमाल लोगों के हित में किया जाता है। अधिनायकवादी साम्राज्य में राज्य की शक्ति का इस्तेमाल इस प्रकार किया जाता है ताकि राज्य को लाभ हो। अधिकारी अक्सर गंभीर आवाज में बात करते हैं कि आतंकवादी क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन आतंकवादी तो सड़क और हवाई अड्डों और बिजली का भी इस्तेमाल करते हैं। उन पर तो प्रतिबंध नहीं है। जैसा कि ऑर्सन वेलेेस ने कहा भी है एक पुलिसवाले का काम केवल पुलिस शासित राज्य में ही आसान हो सकता है। क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में पैसे के स्रोत का पता लगाने के बजाय पुलिसकर्मी इस पर प्रतिबंध को पसंद करें। एक लोकतांत्रिक देश में नीतिगत निर्णय लोगों की सहजता को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं न कि पुलिसकर्मियों की।
विभिन्न मानकों की बात करें तो आज क्रिप्टोकरेंसी के विकल्प ऐसे नहीं हैं जो सरकार द्वारा तय मुद्रा का मुकाबला कर सकें। आने वाले समय में सरकार द्वारा तय मुद्रा और क्रिप्टोकरेंसी दोनों लोगों के लिए उपयोगी होंगे। यहां तकनीकी उन्नति का अप्रत्याशित लाभ अन्य क्षेत्रों में मिल सकता है। जैसा कि एड टेक में देखने को मिला, चीन के कदमों ने भारत के लाखों लोगों के लिए अवसर तैयार किया जो बिटकॉइन, ब्लॉकचेन या इथीरियम आदि को समझने में लगे हैं।
भारत में चीन मॉडल को पसंद किया जाता है, खासतौर पर इंजीनियरों के बीच जिन्हें इतिहास, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की उतनी समझ नहीं है। कई इंजीनियरों ने देखा कि चीन संरक्षणवाद को अपनाकर अपने लिए मूल्य तैयार कर रहा है। मसलन ट्विटर पर प्रतिबंध लगाकर उसने अपने प्रमुख राजनीतिक दल के एक करीबी को घरेलू ट्विटर बनाने का अवसर दिया। लेकिन वैश्विक प्रतिस्पर्धा और सफर के अभाव में राष्ट्रीय स्तर की ये श्रेष्ठ कंपनियां ग्राहकों को लेकर संवेदनहीन हो जाती हैं और तकनीकी रूप से कमजोर। सोशल मीडिया या भुगतान क्षेत्र की एक शीर्ष राष्ट्रीय कंपनी जो संरक्षणवाद और सरकार की शक्ति के बूते विकसित हुई हो वह नए जमाने की एयर इंडिया या प्रीमियर पद्मिनी ही साबित होगी।
कारोबारी जगत के लोग आमतौर पर मित्रवत सरकार से मदद लेने में सहज रहते हैं। परंतु जैसा कि एक पुरानी राजनीतिक कहावत है कि यदि सरकार आपको सबकुछ दे सकती है तो वह आपसे सबकुछ छीन भी सकती है। राजनेता और कारोबारी जानते हैं कि घरेलू कारोबार को सफल बनाने में निर्णायक महत्त्व किसका होता है और कौन हर रोज उन्हें नियंत्रित रखने या नष्ट कर देने का दावा करता है। हम रूस, सऊदी अरब और चीन में देख चुके हैं कि अमीरों का क्या हश्र होता है। ऐसा आंशिक रूप से सत्ता मजबूत करने के लिए और आंशिक तौर पर मुसीबत के वक्त संसाधन जुटाने के लिए किया जाता है।
एक बुनियादी अनुबंध में निजी और सरकारी क्षेत्र को 20 वर्ष तक एक साथ काम करना होता है इसलिए इसमें काफी राजनीतिक जोखिम होता है। हम आमतौर पर सोचते हैं कि स्टार्टअप जगत में ऐसी समस्याएं नहीं होतीं और स्टार्टअप के संस्थापक बस यही सोचते हैं कि पांच वर्ष में अमीर होना है, शुरुआती निवेशक केवल यही सोचते हैं कि अगले दो वर्ष में नए निवेशक को बिकवाली कर दी जाए। ऐसा लगता है कि कम अवधि होने के कारण सार्वजनिक नीति के खतरे नहीं होते। जिन देशों में संविधान और विधि का शासन कमजोर है वहां 20 वर्ष के परिदृश्य में राजनीतिक, नीतिगत और अन्य जोखिम होते हैं। इन जोखिमों के चलते अल्पावधि में कमजोर निर्णय लिए जाते हैं क्योंकि शीघ्र धन निकासी के लिए निवेश करने की संस्कृति का अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। चूंकि सौदों के लिए 20 वर्ष के परिदृश्य पर यकीन नहीं किया जा सकता इसलिए पूंजीवाद को कारगर बनाने के लिए विधि का शासन ही अपनाना होगा।
(लेखक पुणे इंटरनैशनल सेंटर में शोधकर्ता हैं)