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बाजार और उपभोक्ताओं को जोड़ने की चुनौतियां

भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार विश्व में सबसे बड़े खुले बाजार के अवसरों को परिलक्षित करता है। बता रहे हैं इंद्रजित गुप्ता

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इंद्रजित गुप्ता   
Last Updated- December 27, 2023 | 11:37 PM IST

वर्षांत पर यह स्तंभ कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों और भविष्य में उभरने वाले स्वरूपों पर विचार करने का उपयुक्त अवसर है। हमें इन विषयों और महत्त्वपूर्ण बिदुंओं की समीक्षा से इसका आकलन करने में आसानी होती है कि आने वाला वर्ष यानी 2024 कैसा रहने वाला है।

भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार विश्व में सबसे बड़े खुले बाजार के अवसरों को परिलक्षित करता है। हमें यह बात पिछले 10 वर्षों और इससे भी अधिक समय से ज्ञात है। परंतु, इसके बाद भी स्थानीय और वैश्विक स्तरों पर बाजार में सक्रिय इकाइयों के समक्ष प्रायः उलझन खड़ी करने वाले कारक दूर होने का नाम नहीं ले रहे हैं।

जूडियो पर नजरः परिधान और लाइफ स्टाइल ब्रांड जूडियो के साथ नोएल टाटा के ट्रेंट ने महानगरों से बाहर कदम रखने का साहस दिखाया है। इस वर्ष जूडियो ने अपने प्रदर्शन के दम पर विशेष मुकाम हासिल किया है। यह भारत के छोटे शहरों में सूझ-बूझ भरी कारोबारी रणनीति के साथ वहां अपना कारोबार चमकाने में सफल रहा है।

जूडियो ने पहले कभी इस रफ्तार के साथ कारोबार आगे नहीं बढ़ा पाया था। यह देश के छोटे शहरों में 28-35 वर्ष के दायरे में आने वाले युवा जोड़ों को आधुनिक मगर किफायती परिधानों का विकल्प देकर आकर्षित करने में सफल रहा है। देश के इन शहरों में संगठित खुदरा कारोबार ने कदम नहीं रखा है। जूडियो के लगभग सभी उत्पाद जैसे परिधान एवं अन्य चीजें 1,000 रुपये से कम दाम के होते हैं।

जूडियो ने स्टोर खोलने को लेकर भी एक खास रणनीति अपनाई है। इसने स्टोर के लिए उपयुक्त स्थान तलाशने, स्टोर का ढांचा, बराबर इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के कारोबार आदि के लिए रणनीति बहुत सूझ-बूझ के साथ तैयार की है। वित्त वर्ष 2023 के अंत तक जूडियो का राजस्व 4,000 करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है। जूडियो ब्रांड के 400 से अधिक स्टोर हैं।

अगले वर्ष रिलायंस और ट्रेंट के बीच एक बड़ी कारोबारी लड़ाई की जमीन तैयार हो चुकी है। रिलायंस चीन के एक बड़े फैशन ब्रांड शीन के साथ साझेदारी कर रही है। शीन का मूल्यांकन करीब 100 अरब डॉलर बताया जा रहा है, जो एचऐंडएम और जारा दोनों के संयुक्त मूल्यांकन से अधिक है।

बेंगलूरु में रिलायंस की एक टीम जूडियो के दम पर ट्रेंट की जबरदस्त सफलता पर नजर रखेगी। एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि देश के छोटे शहरों में जूडियो ने एक अनोखा मगर हैरान करने वाला कारोबारी ढांचा अपनाया है। उसने छोटे शहरों के उपभोक्ताओं को भी अच्छी तरह समझा है और इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जूडियो की कमान दो विदेशी संभाल रहे हैं।

डिज्नी का बड़ा रणनीतिक फैसलाः भारत को ज्यादातर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक बड़ा कारोबारी बाजार समझा जा रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर क्या कारण थे जिनकी वजह से डिज्नी को अपना पूरा स्ट्रीमिंग कारोबार (डिज्नी-हॉटस्टार) और टेलीविजन कारोबार बेचने को लेकर एक बड़ा निर्णय लेना पड़ा। इस तरह की चुनौती केवल डिज्नी के साथ ही लागू नहीं होती है।

नेटफ्लिक्स जैसी स्ट्रीमिंग सेवाएं देने वाली कंपनियों के लिए भी हालात अब मुश्किल होते जा रहे हैं। कोविड महामारी के दौरान नेटफ्लिक्स ने काफी बढिया प्रदर्शन किया था और नए उपभोक्ता जोड़ने में काफी सफलता पाई थी। नए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए नेटफ्लिक्स नए कार्यक्रम और फिल्में लेकर आई थी मगर अब उसके लिए कारोबारी चुनौतियां बढ़ने लगी हैं।

कंपनी का कारोबार अब उस स्तर पर पहुंच गया है जहां से अब और बढ़त की गुंजाइश सीमित लग रही है। इसका कारण यह है कि नेटफ्लिक्स सहित दूसरी स्ट्रीमिंग कंपनियां एक निश्चित दायरे से आगे नहीं निकल पा रही हैं। इन कंपनियों के लिए छोटे शहरों के लोगों की पसंद के अनुसार सामग्री तैयार करना कठिन चुनौती साबित हो रही है।

हाल ही में स्पॉटिफाई को भी कारोबारी मुश्किलों का अनुभव हुआ है। शुरू में तो वह अपने उपभोक्ताओं की संख्या देखकर काफी उत्साहित थी और उसे लग रहा था कि उसका कारोबार तेजी से आगे बढ़ेगा।

मगर छोटे शहरों में निःशुल्क सामग्री का लुत्फ उठाने वाले लोगों को सबस्क्रिप्शन के लिए तैयार करना मुश्किल काम था। कुछ ही ऐसे उपभोक्ता थे, जो कुछ शुल्कों के भुगतान के साथ सबस्क्रिप्शन लेने के लिए तैयार हो रहे हैं। मगर दो वर्षों तक लगातार निवेश करने के बाद स्पॉटिफाई ने महसूस किया है कि छोटे शहरों में लोगों को सबस्क्रिप्शन आधारित सेवा के लिए तैयार करना आसान नहीं है।

सबस्क्रिप्शन का बाजार न केवल छोटे शहरों में सीमित है बल्कि सभी डिजिटल कारोबार मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए गुंजाइश भी कम है। शुरू में लोगों ने जरूर सबस्क्रिप्शन लेने में रुचि दिखाई थी मगर अब यह रफ्तार सुस्त पड़ गई है।

स्ट्रीमिंग या डिजिटल मीडिया कारोबार जिस तरह पहले कमाई कर रहे थे अब वैसी बात नहीं रह गई है। इन परिस्थितियों को देखकर एक प्रश्न यह उठता है कि स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म या डिजिटल कारोबारी इकाइयां अपने उपभोक्ताओं को ठीक ढंग से नहीं समझ पाए हैं।

ग्राहकों एवं उपभोक्ताओं और बाजार के अनुरूप उत्पाद तैयार करना और कारोबार आगे बढ़ाने की बात करना तो बेहद आसान है परंतु व्यवहार में उन्हें उतारना बहुत मुश्किल है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि निवेशक के रूप में वेंचर कैपिटल इकाइयां लंबे समय तक शायद ही नुकसान सहेंगी।

एयर इंडिया का मामलाः टाटा समूह को 27 जनवरी 2024 तक संकट ग्रस्त विमानन कंपनी एयर इंडिया का उत्थान करने के लिए दो साल की अवधि मिली हुई है। शुरू में तो ऐसी अपेक्षा की गई थी कि एयर इंडिया बहुत जल्द अपना पुराना रुतबा हासिल कर लेगी क्योंकि इससे नियमित रूप से यात्रा करने वाले लोग इसके साथ बने रहेंगे।

इस स्तंभ में पहले तर्क दिया गया था कि एयर इंडिया की परिचालन स्थिति को देखते हुए तत्काल कोई बड़ा परिवर्तन तो मुमकिन नहीं दिख रहा है। टाटा समूह ने एयर इंडिया के लिए बड़ी संख्या में नए विमान खरीदने की पहल की है। मगर केवल बेड़े का आकार बढ़ने से कुछ होता प्रतीत नहीं लग रहा है।

पहली बात, नए विमानों के आने में समय लगता है। दूसरी बात यह कि मौजूदा विमानों को दुरुस्त कर उन्हें दोबारा उड़ान के लिए तैयार करना भी कठिन काम है। इससे भी महत्त्वपूर्ण चुनौती एक प्रशिक्षित चालक दल तैयार करने की है, जो अक्सर एक पेचीदा काम माना जाता है। यही वजह है कि एयर इंडिया के उत्थान में इतना लंबा समय लग रहा है। अब नौ नए विमान की आपूर्ति शुरू हो गई है।

अमेरिका और यूरोप में कई जगहों तक की उड़ान सीधी उड़ान की योजना भी आगे बढ़ती दिख रही है मगर अपने ग्राहकों का दोबारा विश्वास जीतने में एयर इंडिया को थोड़ा वक्त और लग सकता है। अब तक जो संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार हाल के कारोबारी इतिहास में एयर इंडिया का मामला सबसे अधिक उतार-चढ़ाव वाला है।

टाटा समूह अपनी एक और विमानन कंपनी विस्तारा की मदद से यात्रियों को एयर इंडिया जैसी सेवाएं देने में काफी हद तक सफल रहा है। अगर टाटा समूह का अंतिम लक्ष्य एयर इंडिया के साथ बाकी दूसरे ब्रांडों जैसे विस्तारा, एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर एशिया का विलय करना है तो किस तरह वह इस कार्य को अंजाम देगी यह देखने वाली बात होगी।

कोविड महामारी के बाद विस्तारा एक मजबूत ब्रांड के रूप में उभरी है और ज्यादातर कारोबारी यात्री विस्तारा को तरजीह दे रहे हैं। विस्तारा का विलय करना या इसका अस्तित्व समाप्त करना आसान नहीं लग रहा है।

(लेखक फाउंडिंग फ्यूल के सह-संस्थापक एवं निदेशक हैं)

First Published : December 27, 2023 | 11:23 PM IST