भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआईएल) को एक खास कार्य के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने सीसीआई को अमेरिकी डॉलर-भारतीय रुपये के अलावा रुपये के साथ अन्य मुद्राओं में ट्रेडिंग और निपटान को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा बनाने की संभावना तलाशने के लिए आमंत्रित किया। यह कदम रुपये के अंतरराष्ट्रीकरण के व्यापक उद्देश्य के अनुरूप है।
अब यह देखना लाजिमी है कि सीसीआईएल इस रास्ते पर कैसे आगे बढ़ती है। फिलहाल, हम बाजारों को आम लोगों तक पहुंचाने में सीसीआईएल के 25 साल के सफर पर नजर डालते हैं। मैं यहां केवल शेयर बाजारों की बात नहीं कर रहा हूं। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएसई) और बीएसई लिमिटेड का शेयर बाजार में जो महत्त्व है, उस लिहाज से सरकार के बॉन्ड, विदेशी मुद्रा और ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) डेरिवेटिव्स बाजारों के लिए सीसीआईएल का कहीं ज्यादा महत्त्व है।
सीसीआईएल ने फोन पर सौदे करने की पुरानी व्यवस्था, लेनदेन के लिए कागज की पर्ची तैयार करने, फोन या फैक्स पर लेनदेन की पुष्टि करने और फिर बहुत धीमी गति से उसे निपटाने वाली प्रणाली को अब माउस के एक क्लिक से बदल दिया है। यह भारतीय वित्तीय बाजारों को वैश्विक रुझानों के साथ और कभी-कभी उनसे आगे भी बनाए रखने के लिए लगातार नवाचार पर जोर दे रही है।
एक तरह से, सीसीआईएल 1997 के पूर्वी एशियाई वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया के तौर पर बनी थी। इस संकट के बाद भारत को निपटान प्रणाली की जरूरतें पूरी करने के लिए एक संस्था की आवश्यकता पड़ी। लेकिन सीसीआईएल की शुरुआत के तार को और भी पहले 1994 में आरबीआई द्वारा भारत के विदेशी मुद्रा बाजार का विकास करने और उसका दायरा बढ़ाने के लिए गठित सोढानी समिति से जोड़ा जा सकता है।
इस समिति की मुख्य सिफारिशें जून 1995 में सौंपी गईं जिनमें विदेशी मुद्रा परिचालन में बैंकों के लिए अधिक लचीलापन, कंपनियों को विदेशी मुद्रा खाते रखने की छूट और डेरिवेटिव्स उत्पादों जैसे नए जोखिम प्रबंधन उपकरणों को पेश करना शामिल था। इसके बाद, कम से कम दो और समितियों ने भुगतान और निपटान प्रणालियों की जांच की, जब तक कि आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर वाईवी रेड्डी ने इस सदी के शुरुआती हिस्से में उद्योग संघों के साथ मिलकर एक क्लियरिंग कॉरपोरेशन की स्थापना की प्रक्रिया का पता लगाना शुरू नहीं किया। सीसीआईएल अप्रैल 2001 में अस्तित्व में आई और भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम, बैंक ऑफ बड़ौदा, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आईडीबीआई), एचडीएफसी बैंक लिमिटेड और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड को इसके मुख्य प्रवर्तकों के रूप में शामिल किया गया था।
सीसीआईएल के पहले चेयरमैन एनएसई के संस्थापक आरएच पाटिल थे। उन्होंने, अन्य कई चीजों के अलावा, ओटीसी मंच बनाने की मुहिम का नेतृत्व किया और शुरुआती वर्षों के दौरान बाजार की जटिलताओं के बीच सीसीआईएल का मार्गदर्शन भी किया। फरवरी 2002 में अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने वित्तीय निपटान क्षेत्र में इस नए खिलाड़ी का जिक्र करते हुए कहा था, ‘सरकारी प्रतिभूतियों का प्राथमिक निर्गम अब एक इलेक्ट्रॉनिक नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम (एनडीएस) द्वारा सुविधाजनक बनाया जा रहा है और सरकारी प्रतिभूतियों में ट्रेडिंग की दक्षता नए क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा बढ़ाई जा रही है।
शुरुआत में, सीसीआईएल सरकारी प्रतिभूतियों और रीपो में होने वाले सौदे का निपटान करती थी। ये सौदे आरबीआई के पब्लिक डेट ऑफिस (पीडीओ)-एनडीएस मंच पर दर्ज होते थे। साथ ही यह रुपया-अमेरिकी डॉलर के विदेशी मुद्रा हाजिर और वायदा सौदों का भी निपटान करती थी।
पीडीओ-एनडीएस मंच, एक एकीकृत परियोजना है, जो सार्वजनिक ऋण कार्यालयों के कंप्यूटरीकरण को सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के उपकरणों के व्यापार के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक डीलिंग सिस्टम के साथ जोड़ता है। यह नीलामी में इलेक्ट्रॉनिक बोली लगाने और कारोबारी सत्र के दौरान ट्रेडिंग के लिए एक ऑनलाइन मंच है।
वैश्विक मानकों के हिसाब से भी, सीसीआईएल एक अनोखा प्रयोग है। यह एक सेंट्रल काउंटर पार्टी (सीसीपी) है जो मुद्रा, सरकारी बॉन्ड, और विदेशी मुद्रा लेनदेन में ओटीसी नकद और डेरिवेटिव्स बाजारों में गारंटी के साथ निपटान करता है। भुगतान प्रणाली में सीसीपी एक वित्तीय संस्था है जो एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है और यह किसी भी लेनदेन में प्रत्येक विक्रेता के लिए खरीदार और प्रत्येक खरीदार के लिए विक्रेता होती है।
वैश्विक वित्तीय संकट 2008 से काफी पहले, सीसीआईएल ने 2007 में आरबीआई के आदेश के तहत ओटीसी डेरिवेटिव्स लेनदेन की रिपोर्टिंग की सुविधा दी थी। इसने भारतीय वित्तीय बाजारों पर संकट के प्रभाव को काफी हद तक कम करने में मदद की।
यह 2005 से सीएलएस, या निरंतर जुड़े निपटान सेवाएं भी दे रही है। यह एक अनूठी व्यवस्था है जिसके तहत एक तीसरे पक्ष की व्यवस्था के माध्यम से सीमा पार निपटान किया जा रहा है। ‘डिलीवरी-बनाम-भुगतान’ नाम की यह प्रणाली़ संभावित भुगतान और नकदी के मुद्दों पर नियंत्रण रखती है। फिलहाल, सीसीआईएल 14 पात्र मुद्राओं के लिए यह सेवा देती है। यह एनडीएस-ऑर्डर मैचिंग (ओएम) प्लेटफॉर्म का प्रबंधन करती है, जो सरकारी बॉन्ड में लेनदेन के लिए सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला मंच है। इस पर बाजार प्रतिभागी या तो सीधे व्यापार कर सकते हैं या द्विपक्षीय, ऑफ-प्लेटफॉर्म लेनदेन की रिपोर्ट कर सकते हैं। सभी सरकारी बॉन्ड लेनदेन का लगभग 75 फीसदी सीधे इस मंच पर किया जाता है और बाकी को अपनी रिपोर्ट इसे देनी होती है।
सीधे शब्दों में कहें, सभी सरकारी बॉन्ड लेनदेन डेटा एक ही प्लेटफॉर्म पर होता है और इसे सीसीआईएल के माध्यम से निपटाया जाता है। एनडीएस-ओएम प्लेटफॉर्म अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भारतीय बॉन्ड बाजार तक पहुंच की सुविधा के लिए वैश्विक बॉन्ड प्लेटफॉर्म को भी जोड़ता है। वर्ष 2003 में स्थापित, क्लियरकॉर्प डीलिंग सिस्टम्स (इंडिया) लिमिटेड, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग मंच का प्रबंधन करती है जो सरकारी बॉन्ड, मुद्रा, विदेशी मुद्रा और ओटीसी डेरिवेटिव्स बाजारों में ट्रेडिंग की सुविधा देती है। यह खुदरा ग्राहकों जिसमें कोई व्यक्ति और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम शामिल हैं, उन्हें विदेशी मुद्रा खरीदने/बेचने के लिए एफएक्स-रिटेल प्लेटफॉर्म लॉन्च करने में सहायक रही है। यह प्लेटफॉर्म खुदरा ग्राहकों के लिए पारदर्शिता और बेहतर मूल्य निर्धारण करता है।
अब सवाल यह है कि इन वर्षों में सीसीआईएल कैसे बढ़ रही है? वित्त वर्ष 2002-03 में, इसने 0.4 लाख करोड़ डॉलर मूल्य के विदेशी मुद्रा लेनदेन देखे थे। वित्त वर्ष 2025 तक, विदेशी मुद्रा लेनदेन की मात्रा बढ़कर 12 लाख करोड़ डॉलर हो गई। इस अवधि के दौरान, रीपो लेनदेन 9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 779 लाख करोड़ रुपये हो गया और साधारण सरकारी बॉन्ड लेनदेन, 11 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 161 लाख करोड़ रुपये हो गया। अपनी तीन सहायक कंपनियों के साथ, सीसीआईएल ने देश के वित्तीय बाजारों के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है जो एकीकृत समाधान देता है और जो व्यापार जीवनचक्र के हर चरण का प्रबंधन करता है। इस तरह से कहें तो मुद्रा बाजार भुगतान प्रणाली में सीसीआईएल की भूमिका काफी अहम है।