कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश की कुल आबादी और श्रम बल का करीब 70 फीसदी ग्रामीण इलाकों में रहता है। अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए उनकी क्रय शक्ति बढ़ाना जरूरी है। इस संदर्भ में जरूरी है कि हम कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति का आकलन करें तथा देखें कि अंतरिम बजट से क्या अपेक्षाएं हैं।
देश में कृषि की स्थिति ठीक रही है और बीते छह वर्ष में उसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 4.4 फीसदी रही है। इसमें कोविड की अवधि भी शामिल है। बहरहाल, वित्त वर्ष 24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पहले अग्रिम अनुमान बताते हैं कि कृषि की वृद्धि दर 1.8 फीसदी के साथ सात वर्ष के निचले स्तर पर रही। कृषि वृद्धि में यह धीमापन 2023 में मॉनसून की कमजोरी के कारण आया।
खरीफ की प्रमुख फसलों और पशुपालन, मछली पालन आदि की संबद्ध गतिविधियों में भी वित्त वर्ष 24 में गिरावट आ सकती है। रबी की बोआई भी इस वर्ष कम है। हालांकि दिसंबर 2023 में समग्र मुद्रास्फीति 5.7 फीसदी थी जबकि उपभोक्ता खाद्य सूचकांक मुद्रास्फीति 10 फीसदी का स्तर पार कर गया।
कुछ देशों में छिड़ी जंग के कारण खाद्य कीमतों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को लेकर वैश्विक अनिश्चितता जारी रह सकती है हालांकि खाद्य एवं कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक में कमी आई और यह 2022 के 143.7 से घटकर 124.0 रह गया।
भारतीय रिजर्व बैंक का हालिया अध्ययन किसानों, व्यापारियों और खुदरा कारोबारियों के अखिल भारतीय सर्वेक्षण के माध्यम से उपभोक्ता मूल्य में किसानों की हिस्सेदारी का अनुमान लगाकर कृषि आपूर्ति श्रृंखला की गतिशीलता का पता लगाता है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि विभिन्न फसलों के उत्पादन मूल्य में किसानों की औसत हिस्सेदारी 33 से 70 फीसदी के बीच थी। जल्द खराब होने वाले उत्पादों में हिस्सेदारी और भी कम थी। सर्वेक्षण के नतीजे संकेत देते हैं कि कृषि बाजारों, भंडारों, पूर्व-प्रसंस्करण सुविधाओं और शीत गृहों आदि का निर्माण आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को किफायती बनाने के लिहाज से अहम है।
भारत में कृषि निर्यात बढ़ाने की क्षमता मौजूद है। कृषि निर्यात में विविधता लाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। निर्यात प्रतिबंध की आवश्यकता हो सकती है और कई अवसरों पर टैरिफ भी बढ़ाया जा सकता है लेकिन याद रखना होगा कि ऐसे उपाय किसानों की आय प्रभावित कर सकता है।
भारतीय किसानों के सामने कई समस्याएं हैं। 2022-23 की आर्थिक समीक्षा में कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन, कच्चे माल की बढ़ती लागत, बंटी हुई जोत, कमजोर कृषि उपकरण, कम उत्पादकता और बेरोजगारी से निपटने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है।
फिलहाल कृषि क्षेत्र में सब्सिडी सरकारी निवेश से अधिक है। भारत कृषि क्षेत्र के सकल मूल्यवर्धन का केवल 0.4 फीसदी शोध एवं विकास में व्यय करता है जबकि अन्य देश अपने कृषि जीडीपी का एक से दो फीसदी कृषि में लगाते हैं।
जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की जरूरत है। एक अध्ययन बताता है कि जलवायु झटके मसलन सूखा, बाढ़, लू और शीत लहर आदि ने देश की कृषि उत्पादकता वृद्धि में 25 फीसदी तक की कमी लाई है। गरीब और खेती पर निर्भर राज्यों में यह मंदी और मुखर है।
ग्रामीण मांग के लिए रिजर्व बैंक का विश्लेषण मिलाजुला प्रदर्शन दिखाता है। वाहन बिक्री में कमी नजर आई लेकिन दिसंबर में सालाना आधार पर यह 14.1 फीसदी बढ़ा जबकि दोपहिया और तिपहिया वाहनों की बिक्री सालाना आधार पर दो अंकों में बढ़ी।
दूसरी ओर, ट्रैक्टर की बिक्री दिसंबर में दो वर्ष के निचले स्तर पर रही और 19.8 फीसदी कम हुई। अन्य आंकड़े दिखाते हैं कि दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में कमी आई और अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में ग्रामीण मांग में कमी बनी रही।
बीते एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में मेहनताने में वृद्धि या तो कम रही है या फिर नकारात्मक। मनरेगा के तहत रोजगार की मांग अभी भी अधिक है, हालांकि पिछले साल की तुलना में इसमें कमी आई है।
कमजोर ग्रामीण मांग दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं और विवेकाधीन उत्पादों के लिए चिंता का विषय है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में सुधार भी नजर आ रहा है। करीब 51 फीसदी सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रम ग्रामीण इलाकों में हैं और उन्हें मजबूत करने की आवश्यकता है।
अंतरिम बजट से क्या अपेक्षाएं हैं? उम्मीद है कि कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जोर देने से ग्रामीण वृद्धि को गति मिलेगी। चुनावी साल में बजट आवंटन किसानों और गरीबों के अनुकूल रहेंगे। वित्त मंत्री ने हाल ही में कहा था कि युवा, महिला, किसान और गरीब सरकारी नीतियों के केंद्र में रहेंगे। ये चारों समूह ग्रामीण इलाकों में अच्छी खासी तादाद में हैं और यह अंतरिम बजट के रुख के बारे में संकेत हो सकता है।
सरकार वित्त वर्ष 24 में राजकोषीय घाटे के लिए 5.9 फीसदी के लक्ष्य पर कायम रह सकती है और उसे वित्त वर्ष 26 में 4.5 फीसदी करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। आगामी बजटों में भी पूंजीगत व्यय में इजाफा जारी रहेगा और इसका फायदा ग्रामीण इलाकों को भी मिलेगा।
पिछले बजट में कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना, कृषि स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए एग्रीकल्चर एक्सिलरेटेड फंड और मोटे अनाज (श्री अन्न) के लिए वैश्विक हब की स्थापना को लेकर घोषणाएं की गई थीं।
इनके लिए अतिरिक्त आवंटन की आवश्यकता होगी। ध्यान रहे कि जल जीवन मिशन, फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिए आवंटन बढ़ाया गया। यह रुझान जारी रहना चाहिए। पिछले बजट में कृषि ऋण की राशि बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये कर दी गई थी और पशुपालन, डेरी और मछलीपालन पर खास तवज्जो दी गई थी।
पिछले बजट में चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने की सुविधा देने की बात कही गई थी। यह प्रक्रिया अगले बजट में भी जारी रहनी चाहिए। इसके अलावा बजट में इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में कैसे काम किया जाए। इसी प्रकार पीएम कृषि सिंचाई योजना और पीएम फसल बीमा योजना को भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
उम्मीद है कि किसानों और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिए आवंटन में इजाफा ग्रामीण मांग को गति देगा। पीएम-गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच साल तक बढ़ाए जाने के बाद खाद्य सब्सिडी बिल में इजाफा हो सकता है जबकि उर्वरक सब्सिडी में शायद अधिक इजाफा न हो।
बजट में पीएम-किसान सम्मान निधि योजना, मनरेगा और पीएम-आवास योजना में फंड का आवंटन बढ़ सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग और निजी निवेश बढ़ाने के लिए वहां मेहनताने में इजाफा जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में बच्चों में कुपोषण आम है और इस पर ध्यान देना जरूरी है।
आखिर में कृषि क्षेत्र में दबाव कम करने और ग्रामीण मांग बढ़ाने की जरूरत है ताकि टिकाऊ वृद्धि सुनिश्चित हो सके और उत्पादक रोजगार तैयार हो सकें। इससे किसानों, युवाओं और महिलाओं को लाभ होगा। चुनावी साल में बजट को गरीब समर्थक नीतियों और राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के बीच संतुलन कायम करना होगा। उसे राजस्व बढ़ाने, कर रियायत कम करने और अनुत्पादक गतिविधियों में व्यय कम करने पर काम करना होगा ताकि उक्त लक्ष्य हासिल हो सके।
(लेखक आईसीएफएआई, हैदराबाद के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व निदेशक हैं)