भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की इस हफ्ते होने वाली बैठक में एक बार फिर ब्याज दर कटौती की अटकलें लगाई जा रही हैं। एमपीसी की पिछली दो बैठकों में रीपो दर को 6.5 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी कर दिया गया था। अप्रैल में रिजर्व बैंक ने अपने नीतिगत रुख को भी आधिकारिक तौर पर ‘समायोजित’ करने की कोशिश की जिससे आसान मुद्रा चक्र की शुरुआत हुई।
अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 3.16 फीसदी रही जो 60 महीनों में सबसे कम है। धीमी ऋण वृद्धि और रुपये के स्थिर रहने के अलावा अन्य कारक भी नीतिगत दर में एक और कटौती की संभावनाओं के संकेत देते हैं। आम तौर पर नीतिगत बैठक से पहले के लेख में महंगाई, वृद्धि और नीति से जुड़ी बाकी सभी बातों पर चर्चा होती है, लेकिन इस बार हम कुछ और बातों पर चर्चा करेंगे।
फरवरी में अपने पहली मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा को मीडिया के सवालों का सामना करना पड़ा। मीडिया ने उनसे पूछा, ‘आपने महंगाई दर का लचीला लक्ष्य बताया है और मध्यम अवधि के लिए आपका मूल लक्ष्य 4 फीसदी है। क्या मुद्रास्फीति 2 से 6 फीसदी के दायरे में बनी रहना आपके लिए सहज होगा या मुद्रास्फीति 4 फीसदी के आसपास ही टिकी रहे?’
भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1990 बैच के अधिकारी मल्होत्रा ने पूरे आत्मविश्वास से कहा, ‘जब आप ऐसी परीक्षा देते हैं, जहां अधिकतम अंक 100 हैं और परीक्षा पास करने के लिए 40 अंक चाहिए तो आप क्या चाहेंगे? क्या आप केवल पास होना चाहेंगे या बेहतर प्रदर्शन करना चाहेंगे? कुछ लोग केवल पास होकर खुश हो सकते हैं मगर रिजर्व बैंक में हम हर जगह अव्वल बनना पसंद करते हैं।’
अप्रैल में उनसे पूछा गया कि क्या दरों में और कटौती होने वाली है तब मल्होत्रा ने कहा, ‘मैं संजय हूं लेकिन महाभारत का संजय नहीं जो आगे की दरों की भविष्यवाणी कर सकता है।’ यहां जो संदेश देना था, महाभारत के संजय का उदाहरण देकर दे दिया गया। मल्होत्रा साफगोई के साथ रिजर्व बैंक के मुख्यालय मंटि रोड में हास्यबोध भी वापस ला रहे हैं। जरा भारत और विदेशों के कुछ शीर्ष केंद्रीय बैंकरों की यादगार तथा चुटीली टिप्पणियों की बात करते हैं।
अमेरिका के फेडरल रिजर्व की पहली महिला प्रमुख (2014-19) जेनेट येलन ने एक बार कहा था, ‘मैं नहीं बताऊंगी कि हम कब दरें बढ़ाएंगे। मैंने कभी कहा ही नहीं है कि हम दरें कब बढ़ाएंगे। मैंने तो बस ‘शायद’ कहा था।’
2003 से 2008 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे वाईवी रेड्डी की कई टिप्पणियां बेहद चर्चित रही हैं। एक बार उन्होंने केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता पर टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘मैं आजाद हूं। रिजर्व बैंक को भी पूरी स्वायत्तता है और यह कहने की इजाजत मैंने अपने वित्त मंत्री से ले ली है।’ साथ ही उन्होंने कहा, ‘रिजर्व बैंक आजाद है मगर सरकार द्वारा खींची गई हदों के भीतर।’
रिजर्व बैंक के कर्मचारी 2005 में सर्वश्रेष्ठ वेतन संशोधन समझौता लागू करने के लिए रेड्डी को याद करते हैं (यह 2002 से अटका हुआ था)। ऐसे संशोधन हर पांच साल में होते हैं। उस समझौते में 22 फीसदी वृद्धि की गई थी। विभिन्न भत्ते जोड़ने पर लगभग 40 फीसदी बढ़ोतरी हुई थी। अगले दिन केंद्रीय कार्यालय में लगभग हर कर्मचारी रेड्डी से हाथ मिलाना चाह रहा था और उनका ईमेल इनबॉक्स ‘धन्यवाद’ संदेशों से भर गया था।
बेहद आह्लादित दिख रहे रेड्डी ने किसी से पूछा, ‘इतना उत्साह क्यों है? कहीं मैंने ऐसी जगह तो दस्तखत नहीं कर दिए, जो मुझे करने ही नहीं चाहिए थे?’ रेड्डी ने मजाकिया लहजे में यह भी कहा, ‘एक केंद्रीय बैंकर के रूप में मुझे चिंता करने के लिए वेतन दिया जाता है। नीतिगत घोषणाओं से पहले मेरी पत्नी कहती है कि वह जानती है कि मैं क्या करने वाला हूं लेकिन वह यह नहीं जानती है कि मैं क्या कहने वाला हूं!’ एक और दिलचस्प बात उन्होंने तब कही, जब उनसे पूछा गया कि वह महंगाई के प्रति सख्त हैं या नरम तब उनका जवाब था, ‘मैं एक उल्लू हूं, जिसे अंधेरे में देखना आता है।’
लगता है कि रिजर्व बैंक के गवर्नरों का पसंदीदा पक्षी भी उल्लू ही है। 2013 से 2016 तक गवर्नर रहे रघुराम राजन ने मुद्रास्फीति पर एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘हम न तो बाज हैं, न कबूतर। असल में हम उल्लू हैं।’
उनके बाद 2016 से 2018 तक गवर्नर रहे ऊर्जित पटेल ने भी उल्लू का उदाहरण देते हुए कहा, ‘हम उल्लू हैं। उल्लू को बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है। जब सब आराम करते हैं तब हम सतर्क रहते हैं।’
‘डोसा इकनॉमिक्स’ के लिए मशहूर रहे रघुराम राजन हाजिरजवाब भी हैं। अपने कार्यकाल के बारे में मीडिया की अटकलों पर उन्होंने कहा, ‘प्रेस को मेरे कार्यकाल विस्तार की बातों में जो मजा आ रहा है, उसे बिगाड़ना मेरे लिए क्रूरता होगी।’
हास्यबोध में 2008 से 2013 तक रिजर्व बैंक गवर्नर रहे डी सुब्बाराव भी कम नहीं थे। जुलाई 2012 में एक सम्मेलन में उन्होंने मुद्रास्फीति के लिए कहा था कि वह 20 साल पहले बाल कटवाने के लिए 25 रुपये देते थे और अब बाल उड़ जाने के बाद भी उन्हें 150 रुपये देने पड़ते हैं। उन्होंने कहा, ‘अब मेरे बाल नहीं के बराबर हैं मगर मैं बाल कटवाने के लिए 150 रुपये देता हूं।’नाई से जुड़ा एक और मजेदार किस्सा है। एक बार दिल्ली में उन्होंने कहा था कि उनके बाल काटते समय उनका नाई महंगाई के बारे में बात कर रहा था। जब सुब्बाराव ने नाई से पूछा कि उसे महंगाई में इतनी दिलचस्पी क्यों है तब उसने जवाब दिया कि जब वह महंगाई शब्द बोलता है तब सुब्बाराव के बाल खड़े हो जाते है जिससे उसका काम आसान हो जाता है।
रिजर्व बैंक की कमान 1997 से 2003 तक संभालने वाले विमल जालान भी बड़े निर्भीक रहे। उनका एक बयान बेहद मशहूर है, ‘मैं सुबह यह सोचकर उठता हूं कि आगे किस बात की चिंता करूं।’ चिंता के विषय में ऐसी ही मशहूर टिप्पणी 2006 से 2014 तक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन रहे बेन बर्नान्के ने भी की थी। उन्होंने कहा था, ‘केंद्रीय बैंक का काम ही चिंता करना है।’