टाटा समूह ने विमानन कंपनी एयर इंडिया के साथ अपनी दूसरी पारी की शुरुआत युद्ध क्षेत्र से की है। नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले टाटा समूह को यूक्रेन से भारतीय नागरिकों को निकालने के अभियान, ‘ऑपरेशन गंगा’ में शामिल होने वाली पहली विमानन कंपनी के तौर पर वास्तविक युद्ध का सामना करना पड़ा है। लेकिन उसे हाल ही में 18,000 करोड़ रुपये के सौदे में हासिल करने वाले समूह को कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति में भी फजीहत जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा जो यूक्रेन की इस निकासी योजना की दिक्कतों से किसी भी तरह कम नहीं माना जा सकता है।
एयर इंडिया के सीईओ बनने की पेशकश को तुर्की के इल्कर आयची ने आखिरकार अस्वीकार कर दिया। हालांकि इस इनकार की वजह से विमानन कंपनी के कारोबार या संचालन में किसी बड़े नुकसान की आशंका नहीं दिखती है लेकिन उनकी वापसी से जुड़े घटनाक्रम ने बेशक कई सवालों को अनुत्तरित छोड़ दिया है। पहली बात तो यह कि क्या टर्किश एयरलाइंस के पूर्व अध्यक्ष ने वास्तव में मीडिया में प्रतिकूल टिप्पणी के कारण इस पद को छोडऩे का फैसला कर लिया?
हालांकि एक प्रमुख कारोबारी अधिकारी के लिए मीडिया के ‘अवांछनीय’ चश्मे से इतना प्रभावित होना दुर्लभ बात है लेकिन आयची ने इस ओर इशारा भी किया है। टर्किश एयरलाइंस की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाने वाले इस शख्स ने एयर इंडिया के सीईओ बनने की पेशकश को हां कहने के एक पखवाड़े के भीतर ही ना कह दिया जिसकी कुछ और भी वजहें हो सकती हैं जिनके बारे में हम अभी नहीं जानते हैं। अगर किसी अन्य देश के किसी व्यक्ति को सीईओ बनाया जाता है तो उसमें सुरक्षा मंजूरियों से जुड़ी एक नियमित प्रक्रिया का पालन करना होता है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या एयर इंडिया के सीईओ बनाए जाने पर आयची के लिए यह जांच थोड़ी और व्यापक स्तर पर करनी पड़ सकती थी क्योंकि उनका पहला कार्यकाल तुर्की के राष्ट्रपति रेचेेप तैयप एर्दोआन के साथ जुडा था? अगर हां, तो क्या इस बाबत टाटा समूह को सूचना दी गई थी जब इसके प्रतिनिधियों ने सरकार से इस मुद्दे पर जवाब मांगा होगा? अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या सरकार और इस उद्योग के बीच इस बात को लेकर अधिक पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए, खासतौर पर जब बात एक ऐसी विमानन कंपनी के शीर्ष स्तर की नियुक्ति की हो जो हाल तक राष्ट्रीय विमानन कंपनी थी? क्या सरकार और टाटा के बीच हुए करार के दौरान इस बात को लेकर चर्चा हुई थी कि एयर इंडिया में शीर्ष स्तर की नियुक्तियों में क्या करना है और क्या नहीं करना है?
यदि हांं, तो क्या आम प्रकाशित नियमों से परे शीर्ष स्तर की नियुक्तियों से जुड़ी अहम बातें और अलग-अलग मामले की बारीकियों को विचार-विमर्श के दौरान उठाया गया था? यदि नहीं, तो क्या इसे टाटा की अपनी कल्पना पर छोड़ दिया गया था? इसके अलावा इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) की राय, सरकार के नजरिये पर कोई प्रभाव डालती है जिसने आयची की नियुक्ति का विरोध किया था? जिज्ञासावश एक बात और जानना महत्त्वपूर्ण हो सकता है कि क्या स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर बयान दिए जाने से पहले, एयर इंडिया के शीर्ष पद के प्रस्ताव को ठुकराने के फैसले को लेकर टाटा संस के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन और आयची की कोई बातचीत हुई थी?
आखिर में चयन प्रक्रिया पर बात करते हैं। एयर इंडिया के लिए संभावित सीईओ को चुनने की प्रक्रिया में कंपनियोंं के लिए शीर्ष अधिकारी ढूंढने वाली एक वैश्विक स्तर की कंपनी की सेवाएं ली गई थी। ऐसे में यह सवाल बनता है कि आखिर टाटा समूह कितनी गंभीरता से इस पद के लिए उपयुक्त नेतृत्वकर्ता ढूंढ रहा था।
क्या टाटा की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों का एक पैनल इस बात पर विचार कर रहा था कि अधिकारी ढूंढने वाली वैश्विक कंपनी अगर कुछ नामों को छांटती है तब उसके बाद एयर इंडिया के सीईओ पद के लिए कौन सबसे उपयुक्त होना चाहिए? संवेदनशील भू-राजनीतिक आयामों को ध्यान में रखते हुए इस बात पर गौर करना जरूरी है कि क्या टाटा संस के निदेशक मंडल के परामर्शदाता, एयर इंडिया के सीईओ के लिए सबसे अच्छा विकल्प ढूंढने में सही साबित हुए जो ज्यादातर अघोषित भूमिकाओं में हैं लेकिन उनकी बात सुनी और समझी जाती है? पहले से ही दो विमानन कंपनियों वाले, टाटा समूह के विमानन विशेषज्ञों ने एयर इंडिया के प्रमुख के चयन प्रक्रिया में कितनी सक्रियता से हिस्सा लिया?
कंपनी जगत में इस तरह के प्रमुख मसलों पर परामर्श के स्तर के संदर्भ में देखें तो एगॉन जेंडर द्वारा एक वैश्विक सीईओ सर्वेक्षण में दिलचस्प बात निकलकर आई है कि कंपनियों के प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद की कमी रही है। एगॉन जेंडर, एयर इंडिया के प्रमुख अधिकारी की खोज करने वाली कंपनी भी है। ज्यूरिख की इस कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद सर्वेक्षण से पता चलता है कि जवाब देने वाले केवल 51 प्रतिशत (सीईओ) लोगों ने उपयुक्त प्रतिक्रिया के लिए अपने वरिष्ठ नेतृत्वकर्ता टीम पर भरोसा किया। इस सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि निदेशक मंडल की भूमिका, मुख्य रूप से सीईओ के उत्तराधिकार और शासन तक सीमित थीं। सर्वेक्षण के मुताबिक सीईओ को सलाह देने के प्रति निदेशक मंडल की जिम्मेदारी में अक्सर चूक हुई।
इस सर्वेक्षण के मुताबिक, जब उनसे पूछा गया कि ‘ईमानदार प्रतिक्रिया के लिए कौन अहम है तब केवल 38 प्रतिशत सीईओ ने अपने निदेशक मंडल के चेयरमैन का नाम दिया जबकि 28 प्रतिशत सीईओ ने कंपनी के निदेशक मंडल के किसी भी सदस्य का हवाला दिया।’ इन बातों पर विचार करना अहम हो सकता है कि क्योंकि टाटा, एयर इंडिया के सीईओ के लिए अपने खोज का दूसरा दौर शुरू करने के साथ-साथ विमानन कंपनी के लिए एक अंतरिम नेतृत्व योजना पर भी काम करने जा रही है।