प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में दोहराया कि केवल संपत्ति की रजिस्ट्री कराने से आप उसका कानूनी मालिक नहीं बन जाते। यह फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम मेसर्स विश्वेश्वर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड मामले में दिया गया, जिसका सीधा असर भारत के लाखों घर खरीदारों और निवेशकों पर पड़ेगा। अगर आपने केवल रजिस्टर्ड सेल डीड के आधार पर संपत्ति खरीदी है, तो आपको बारीकियों को पढ़ने और उससे आगे बढ़ने की जरूरत है।
खैतान एंड कंपनी के पार्टनर हर्ष पारिख कहते हैं, “संपत्ति का मालिकाना हक कई पहलुओं से मिलकर बनता है, जिनमें रजिस्ट्री सिर्फ एक हिस्सा है।”
भारतीय कानून के तहत, 100 रुपये से अधिक की संपत्ति की रजिस्ट्री अनिवार्य है। लेकिन इतना ही काफी नहीं। पारिख बताते हैं, “खरीदार को यह साबित करना होगा कि उसने पूरी कीमत चुकाई है, संपत्ति का कब्जा लिया है और मूल डॉक्यूमेंट खरीदार के पास हैं।”
प्राइम डेवलपमेंट्स के चेयरमैन और डायरेक्टर राकेश मल्होत्रा कहते हैं, “रजिस्ट्री एक लेन-देन का शुरुआती सबूत देती है, लेकिन अगर विक्रेता को बेचने का कानूनी अधिकार नहीं था, तो यह वैध मालिकाना हक नहीं देती।”
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कई मामलों में कोर्ट रजिस्टर्ड बिक्री को भी रद्द कर सकता है। पारिख कहते हैं, “अगर खरीदार ने पूरी कीमत नहीं चुकाई। साथ ही धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत पहचान का मामला है, तो यह रद्द हो सकता है।”
मल्होत्रा जोड़ते हैं, “अगर विक्रेता नाबालिग है, मानसिक रूप से सही नहीं है, या संपत्ति का कानूनी मालिक नहीं है।”
आराइज ग्रुप के एमडी अमन शर्मा बताते हैं कि सरकारी मंजूरी, जैसे जमीन के उपयोग में बदलाव की कमी भी बिक्री को अमान्य कर सकती है।
संक्षेप में, रजिस्टर्ड कागज खरीदार को दोषपूर्ण या जाली लेन-देन से नहीं बचा सकता।
एक्सपर्ट संपत्ति खरीदने से पहले अच्छे से जांच-पड़ताल करने पर जोर देते हैं:
मल्होत्रा चेतावनी देते हैं, “सिर्फ रजिस्टर्ड डीड रखना काफी नहीं। आपको यह पक्का करना होगा कि विक्रेता वही बेच रहा है, जिसका वह मालिक है।”
यह फैसला एक पुराने सिद्धांत, ‘कैविएट एम्प्टोर’ यानी ‘खरीदार सावधान’ को रेखांकित करता है।
शर्मा कहते हैं, “कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मालिकाना हक कानूनी स्वामित्व से आता है, न कि सिर्फ कागजों से।” अगर रजिस्टर्ड डीड धोखाधड़ी या दोषपूर्ण मालिकाना हक पर आधारित है, तो खरीदार को बेदखली, पैसों का नुकसान, या कोर्ट केस में फंसना पड़ सकता है।
भारत में संपत्ति खरीदारों के लिए संदेश साफ है: रजिस्ट्री को वैधता न समझें। अपना होमवर्क करें, एक्सपर्ट्स की मदद लें और मालिकाना हक की हर परत की जांच करें।