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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को पेश 2023-24 के बजट में आयकर में कई तरह की राहत दी है मगर सभी बदलाव और राहत के उपाय नई आयकर व्यवस्था में किए गए हैं। पुरानी व्यवस्था को बिल्कुल नहीं छुआ गया है। करदाताओं के मन में सवाल उठ रहा होगा कि उन्हें बदली हुई नई कर व्यवस्था चुननी चाहिए या पुरानी व्यवस्था में ही बने रहना चाहिए?
पुरानी आयकर व्यवस्था में करदाता कई तरह की कटौती, छूट और भत्तों का दावा कर सकता है और इस तरह उसकी कर देनदारी काफी कम हो जाती है। कर बचत के साधनों में एक निश्चित अवधि के लिए निवेश करना ही पड़ता है और करदाताओं का धन उतने समय के लिए फंस जाता है। यह व्यवस्था पेचीदा और उलझाऊ भी लग सकती है।
नई कर व्यवस्था 1 अप्रैल, 2020 को लागू की गई। व्यक्तिगत करदाता और हिंदू अविभाजित परिवार इसका लाभ उठा सकते हैं। इसे आयकर अधिनियम की धारा 115बीएसी के जरिये लागू किया गया था। कर दरें कम करना और कर व्यवस्था को आसान बनाना ही इसका मकसद था। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को कर अनुपालन के लिए प्रोत्साहित करना भी था।
आईपी पसरीचा ऐंड कंपनी में पार्टनर मनीत पाल सिंह कहते हैं, ‘नई कर व्यवस्था में निवेशकों को अपना धन अपनी मर्जी से निवेश करने की आजादी मिल जाती है क्योंकि कर बचत योजनाओं में निवेश करना जरूरी नहीं रह जाता।’
नई कर व्यवस्था का सीधा मंत्र था – ‘कर की दर घटेगी मगर कोई कटौती या छूट नहीं मिलेगी।’ इसमें पुरानी कर व्यवस्था के तहत मिल रही 70 तरह की कटौती या छूट नहीं दी जाती हैं।
नई कर प्रणाली को ज्यादा लोगों ने भाव नहीं दिया इसीलिए 2023 में पेश किए गए बजट में इसे नया रूप दिया गया। स्लैब दरें घटा दी गई हैं। पूरी तरह करमुक्त आय की सीमा भी 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये कर दी गई है। धारा 87ए के तहत छूट भी दी जा रही है, जिसके कारण 7 लाख रुपये तक करयोग्य आय वाले लोगों को कर नहीं देना
पड़ेगा।
50,000 रुपये की मानक कटौती भी शुरू कर दी गई है, जिससे 15.5 लाख रुपये तक आय वाले वेतनभोगी व्यक्ति का कर बोझ 52,500 रुपये कम हो जाएगा। 5 करोड़ रुपये से ऊपर की आय पर अधिभार की दर भी 42.74 फीसदी से घटाकर 39 फीसदी कर दी गई है।
यह कई बातों पर निर्भर करता है। बजट में घोषित बदलावों के बाद नई कर व्यवस्था पहले के मुकाबले आकर्षक तो जरूर बन जाएगी मगर हो सकता है कि हर किसी को यह अच्छी न लगे। जिनकी आय कम है और जो कटौतियों का फायदा नहीं उठाना चाहते, उन्हें नई कर व्यवस्था ज्यादा फायदेमंद लगेगी।
आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, ‘दूसरी ओर जो व्यक्ति होम लोन पर चुकाए गए ब्याज के एवज में कटौती का दावा करता है और धारा 80 सी (जीवन बीमा प्रीमियम, पांच साल की एफडी, होम लोन पर चुकाया मूलधन, कर्मचारी भविष्य निधि आदि) तथा 80डी (जीवन बीमा प्रीमियम) जैसी कटौतियों का लाभ भी लेता है, वह शायद पुरानी कर व्यवस्था में बने रहना ही पसंद करेगा।’ जिनके पास आयकर में कटौती का दावा करने के लिए कुछ भी नहीं है, उनके लिए नई व्यवस्था बेहतर होगी।
बुनियादी बात यह है कि आय के हरेक स्तर का अपना ब्रेक-ईवन पॉइंट होगा। ब्रेक-ईवन पॉइंट का अर्थ पुरानी कर व्यवस्था के तहत कर योग्य आय में वह कटौती है, जिसके बाद दोनों व्यवस्थाओं में एक बराबर कर लगता है (तालिका देखें)। जैसे ही करदाता कटौती के इस स्तर को लांघ जाता है, उसके लिए पुरानी कर व्यवस्था ज्यादा आकर्षक बन जाती है।
सभी विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों में से कोई एक व्यवस्था चुनने से पहले करदाता को दोनों की अच्छी तरह तुलना कर लेनी चाहिए। सुराणा कहते हैं, ‘करदाताओं को दोनों व्यवस्थाओं की तुलना अपने हिसाब से – निवेश की इच्छा, जोखिम की भूख, तरलता की जरूरत आदि को देखते हुए – करनी चाहिए।’
अंत में याद रखें कि अब नई कर व्यवस्था ही डिफॉल्ट व्यवस्था बन गई है यानी करदाताओं को इसी व्यवस्था में रखा जाएगा। सिंह बताते हैं, ‘यदि करदाता को पुरानी व्यवस्था चुननी है तो उसे सक्रियता दिखाते हुए यह विकल्प चुनना पड़ेगा।’
वेतनभोगी व्यक्ति हर साल यह विकल्प चुन सकता है। लूथड़ा ऐंड लूथड़ा लॉ ऑफिसेज इंडिया में पार्टनर डेजिग्नेट मयंक अग्रवाल कहते हैं, ‘मगर ध्यान रखिए कि कारोबार या व्यवसाय से आय कमाने वाला करदाता यदि नई कर व्यवस्था चुनता है तो उसे अपने जीवन में केवल एक बार पुरानी व्यवस्था में लौटने का मौका मिलेगा। उसके बाद वह नई व्यवस्था में वापसी के योग्य नहीं रह जाएगा।’