प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
ITR Filing 2025: इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना सिर्फ एक कानूनी औपचारिकता नहीं, बल्कि हर जिम्मेदार टैक्सपेयर्स की सालाना परीक्षा जैसा है, जहां समय का सही पालन ही पास होने की चाबी है। लेकिन इस प्रक्रिया में जो दो शब्द अक्सर चर्चा में आते हैं वह हैं ‘ड्यू डेट’ और ‘लास्ट डेट’। सुनने में ये जुड़वां जैसे लगते हैं, लेकिन इनके मायने, असर और फायदे-नुकसान अलग-अलग हैं। ड्यू डेट, यानी वह आधिकारिक डेडलाइन, जिसके भीतर रिटर्न भरने पर न जुर्माना लगता है, न टैक्स बेनिफिट में कोई नुकसान होता है। टैक्सपेयर्स के लिए यह आमतौर पर 31 जुलाई होती है, लेकिन इस साल यह 15 सितंबर तक है।
वहीं दूसरी ओर, लास्ट डेट वह आखिरी मौका है, जो डेडलाइन मिस करने वालों के लिए बचा रहता है। यह आमतौर पर 31 दिसंबर तक होता है। यहां तक पहुंचते-पहुंचते देर से रिटर्न फाइल करने के लिए सेक्शन 234F के तहत जुर्माना चुकाना पड़ सकता है और टैक्स से जुड़े कुछ नुकसान भी हो सकते हैं।
इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 के सेक्शन 139(1) के तहत सरकार हर साल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए एक आधिकारिक तारीख तय करती है, जिसे ‘ड्यू डेट’ कहा जाता है। यह वह तारीख है, जिस तक टैक्सपेयर्स को बिना किसी जुर्माने के अपना रिटर्न फाइल करना होता है। आमतौर पर पर्सनल टैक्सपेयर्स के लिए, जिनके खातों का ऑडिट जरूरी नहीं होता, यह तारीख 31 जुलाई होती है। हालांकि, इस साल यह 15 सितंबर तक है। इस तारीख तक रिटर्न फाइल करने पर टैक्सपेयर्स को कोई एक्स्ट्रा चार्ज या इंटरेस्ट नहीं देना पड़ता। साथ ही, समय पर रिटर्न फाइल करने वाले टैक्सपेयर्स कुछ खास टैक्स बेनिफिट का भी फायदा उठा सकते हैं। ड्यू डेट का पालन न करने पर टैक्सपेयर्स को देर से रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया का सहारा लेना पड़ता है, जिसमें अतिरिक्त नियम और शर्तें लागू होती हैं।
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ड्यू डेट के बाद भी टैक्सपेयर्स अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए एक और समयसीमा तय की जाती है, जिसे ‘लास्ट डेट’ कहा जाता है। यह वह आखिरी तारीख है, जिस तक देर से रिटर्न (लेट रिटर्न) या संशोधित रिटर्न (रिवाइज्ड रिटर्न) फाइल किया जा सकता है। इनकम टैक्स नियमों के अनुसार, यह लास्ट डेट आमतौर पर संबंधित वित्तीय वर्ष के खत्म होने के बाद अगले साल की 31 दिसंबर होती है। इस तारीख तक रिटर्न फाइल करने पर टैक्सपेयर्स को धारा 234F के तहत जुर्माना देना पड़ सकता है, जो 1,000 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक हो सकता है, अगर आय 5 लाख रुपये से कम है। हालांकि, अगर टैक्सपेयर्स की कुल आय टैक्स की सीमा से कम है, तो जुर्माना नहीं लगता। इसके अलावा, देर से रिटर्न फाइल करने पर कुछ टैक्स बेनिफिट का फायदा नहीं मिल सकता है।
ड्यू डेट और लास्ट डेट के बीच का अंतर समझना इसलिए जरूरी है, क्योंकि दोनों का टैक्सपेयर्स पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। ड्यू डेट तक रिटर्न फाइल करना न केवल जुर्माने से बचाता है, बल्कि टैक्सपेयर्स को इनकम टैक्स नियमों का पूरी तरह पालन करने में मदद करता है। दूसरी ओर, लास्ट डेट देर से रिटर्न फाइल करने का आखिरी मौका देती है, लेकिन इसके साथ जुर्माना और कुछ टैक्स बेनिफिट का नुकसान जुड़ा होता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट समय-समय पर इन तारीखों को बढ़ा सकता है, खासकर असाधारण परिस्थितियों में, जैसे तकनीकी दिक्कतें या प्राकृतिक आपदा आदि में। फिर भी, एक्सपर्ट द्वारा टैक्सपेयर्स को सलाह दी जाती है कि वे ड्यू डेट का पालन करें ताकि अनावश्यक परेशानियों से बचा जा सके। यह समझ टैक्सपेयर्स को अपनी जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से निभाने में मदद करती है।