भारतीय निर्माण उपकरण विनिर्माता संघ (आईसीईएमए) की कंपनियों के बीच उत्सर्जन मानदंडों पर किसी तरह के मतभेद नहीं है। यह बात जेसीबी इंडिया के मुख्य कार्य अधिकारी और प्रबंध निदेशक दीपक शेट्टी ने आज कही है। उन्होंने कहा कि यहां तक की उद्योग निकाय ने ही बगैर पहिये वाली मशीनों पर उत्सर्जन मानदंड लागू करने के लिए केंद्र सरकार का रुख किया था। फिलहाल, इन मशीनों पर कोई उत्सर्जन मानदंड लागू नहीं है।
यह यात्री वाहन उद्योग के बिल्कुल उलट है, जो फिलहाल कैफे-3 और कैफे-4 नियमन में छोटे वाहनों को भार आधारित छूट देने के प्रस्ताव पर एकमत नहीं है। यह नियम अप्रैल 2027 से लागू होने वाले हैं। कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता (कैफे) नियम कार्बन डाइऑक्साइड की सीमा तय करते हैं, जिससे प्रत्येक कार विनिर्माता को बेड़े के औसत के आधार पर पूरा करना होगा। संवाददाता सम्मेलन में शेट्टी ने कहा, ‘मैं भारतीय निर्माण उपकरण विनिर्माता संघ के अपने सभी सहयोगियों को बधाई देता हूं। हमारी सोच हमेशा प्रगतिशील रही है। उत्सर्जन मानदंडों पर हमारी राय कभी जुदा नहीं रही। हम नए मानदंडों को स्वीकार कर रहे हैं। हम आगे बढ़ रहे हैं।’
शेट्टी ने कहा, ‘आप देख सकते हैं कि आजकल कुछ अन्य क्षेत्रों में इस बात पर काफी बहस चल रही है कि हमारे पास ये मानदंड हैं या वो मानदंड। हमने खुद से सरकार को बताया है कि पहिये वाली मशीनों पर स्टेज 5 उत्सर्जन मानदंड तो हैं, लेकिन बिना पहिये वाली मशीनों या ‘ट्रैक्ड’ मशीनों पर अभी कोई उत्सर्जन मानदंड नहीं हैं।’
भारत स्टेज सीईवी (5) उत्सर्जन मानदंड को सीईवी स्टेज 5 भी कहा जाता है। ये 1 जनवरी से भारत में लागू हो गए हैं और केवल पहिये वाले विनिर्माण उपकरण वाहनों पर लागू होते हैं। ये मानदंड पार्टिकुलेट मैटर और पार्टिकल नंबर उत्सर्जन की सीमाओं को काफी सख्त करते हैं, जिससे निर्माताओं को डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर जैसी उन्नत तकनीक अपनाने की आवश्यकता होती है। मगर क्रॉलर एक्सकेवेटर, बड़े व्हील लोडर, ट्रैक्ड पेवर्स, मोबाइल क्रेन, डोजर और मोटर ग्रेडर जैसी बगैर पहिये वाली या ऑफ-हाइवे निर्माण मशीनें अभी इन नियमों के दायरे से बाहर हैं।