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नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (NCDRC) ने एक हालिया मामले (सोपिया व अन्य बनाम स्टेट बैंक ऑफ ट्रावनकोर व अन्य) में फैसला सुनाते हुए कहा कि होम लोन से जुड़े बीमा कवर में दावा खारिज करना उचित था क्योंकि बीमित व्यक्ति की मृत्यु वेटिंग पीरियड के दौरान हुई थी।
हालांकि, आयोग ने बीमा पॉलिसी जारी करने में हुई 97 दिनों की देरी को भी गंभीरता से लिया। बीमा प्रस्ताव पत्र और प्रीमियम जमा होने के बावजूद बीमा कंपनी ने समय पर पॉलिसी जारी नहीं की थी। इस कारण आयोग ने राज्य आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए बीमाकर्ता को यह निर्देश दिया कि वह अब तक डिसबर्स हो चुकी लोन राशि का भुगतान करे, लेकिन पूरा सम इंश्योर्ड (बीमा राशि) देने की जरूरत नहीं है।
इंश्योरेंस में शुरुआती वेटिंग पीरियड का मतलब क्या है? जानिए आसान भाषा में
कुछ लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसियों में एक शुरुआती इंतजार अवधि (Initial Waiting Period) होती है, जबकि कुछ में नहीं। टर्म इंश्योरेंस पॉलिसियों की बात करें तो इनमें आमतौर पर कोई वेटिंग पीरियड नहीं होता। पॉलिसी जारी होते ही कवर शुरू हो जाता है। यानी, अगर बीमा लेने वाले की प्राकृतिक या एक्सीडेंटल मौत हो जाती है, तो नामांकित व्यक्ति (Nominee) को डेथ बेनिफिट मिलता है।
पहले साल आत्महत्या पर नहीं मिलता क्लेम
हालांकि ज्यादातर टर्म पॉलिसियों में पहले साल आत्महत्या के मामले को कवर नहीं किया जाता। यानी, अगर बीमाधारक ने पहले साल में आत्महत्या की, तो क्लेम नहीं मिलेगा।
सरल जीवन बीमा और होम लोन प्रोटेक्शन प्लान्स में वेटिंग पीरियड
इंश्योरेंस रेगुलेटर की ओर से शुरू किया गया स्टैंडर्ड टर्म प्लान ‘सरल जीवन बीमा’ 45 दिनों का वेटिंग पीरियड रखता है। इस दौरान सिर्फ एक्सीडेंटल डेथ पर ही क्लेम मिलता है। कई होम लोन प्रोटेक्शन प्लान्स में भी यह 45 दिन की वेटिंग अवधि होती है, जिसमें सिर्फ एक्सीडेंटल डेथ को कवर किया जाता है। वहीं, अगर पॉलिसी में कोई राइडर (अतिरिक्त कवर) जोड़ा गया है, तो उसमें भी अलग वेटिंग पीरियड हो सकता है।
वेटिंग पीरियड क्यों होता है जरूरी?
पॉलिसी में शुरुआती वेटिंग पीरियड इसीलिए जोड़ा जाता है ताकि कोई व्यक्ति जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाकर अपने परिवार को फायदा न पहुंचा सके। पॉलिसीबाजार में टर्म इंश्योरेंस के हेड वरुण अग्रवाल बताते हैं कि कुछ लोग जानबूझकर पॉलिसी लेकर खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं, ताकि उनके परिवार को क्लेम मिल जाए। वहीं, ‘हम फौजी इनिशिएटिव्स’ के सीईओ और सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर कर्नल संजीव गोविला (रिटायर्ड) कहते हैं कि कई बार गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग भी पॉलिसी लेकर क्लेम का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं, जब उनकी हालत नाजुक हो।
बीमा कवर कब से शुरू होता है? जानिए सही जानकारी
अक्सर लोग मान लेते हैं कि बीमा कवर प्रीमियम भरते ही या प्रपोजल फॉर्म जमा करते ही शुरू हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है।
इंडियालॉ एलएलपी के एसोसिएट पार्टनर असव राजन बताते हैं, “केवल प्रीमियम भरने या फॉर्म जमा करने से जोखिम कवर शुरू नहीं होता। यह तब शुरू होता है जब पॉलिसी जारी हो जाए या जब ‘जोखिम शुरू होने की तिथि’ स्पष्ट रूप से बताई गई हो।”
फिनटेक विशेषज्ञ गोविला के अनुसार, कई पॉलिसियों में पॉलिसी जारी होने के बाद भी प्राकृतिक मृत्यु जैसे मामलों में पूरा कवर तभी मिलता है जब वेटिंग पीरियड (प्रतीक्षा अवधि) पूरी हो जाती है।
बीमा पॉलिसी जारी करने की समयसीमा
आईआरडीएआई (पॉलिसीधारकों के हितों की सुरक्षा) रेगुलेशन 2017 के मुताबिक, बीमा कंपनियों को जीवन बीमा प्रस्ताव 15 दिन के भीतर प्रोसेस करना होता है। इस समयसीमा से ज्यादा देरी तभी जायज मानी जाएगी जब उसका ठोस कारण हो और वह बीमाधारक को बताया जाए। यदि किसी दस्तावेज या जानकारी की कमी हो, तो बीमाकर्ता इस अवधि को रोक सकता है जब तक जरूरी दस्तावेज मिल न जाएं। यह जानकारी दिया गोविला ने।
अगर सभी जरूरी दस्तावेज और प्रीमियम जमा करने के बाद भी बीमा पॉलिसी जारी होने में देरी हो, तो सबसे पहले बीमा कंपनी के शिकायत अधिकारी से संपर्क करें। अगर जवाब संतोषजनक न हो, तो IRDAI के इंटीग्रेटेड ग्रिवांस मैनेजमेंट सिस्टम (IGMS) के जरिए शिकायत दर्ज करें। इसके बाद भी समाधान न मिले तो इंश्योरेंस ओम्बड्समैन या उपभोक्ता फोरम का रुख कर सकते हैं, ऐसा कहना है दीपिका कुमारी, पार्टनर, किंग स्टब एंड कसिवा का।
लोन डिस्बर्सल के साथ कवर का तालमेल जरूरी
अगर बीमा पॉलिसी किसी लोन से जुड़ी है, तो यह जरूरी है कि कवर लोन की रकम मिलने से पहले या उसी दिन से शुरू हो। इसके लिए बैंक और बीमा कंपनी के साथ समन्वय बनाना जरूरी है ताकि कवर में कोई गैप न रहे, यह सलाह देती हैं कुमारी।
बॉरोअर्स होम लोन प्रोटेक्शन प्लान की जगह टर्म प्लान भी ले सकते हैं, बशर्ते उसकी अवधि लोन की भुगतान अवधि के बराबर हो। ऐसा कहना है अमित कुमार नाग, पार्टनर, एक्वीलॉ का।
अगर पॉलिसी जारी होने में देरी हो, तो ग्राहक को तुरंत बीमा कंपनी से संपर्क कर जानकारी लेनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर शिकायत भी दर्ज करनी चाहिए। अमित नाग कहते हैं कि बीमा कंपनी की देरी पर नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (NCDRC) और स्टेट कमीशन ने बीमाकर्ता को जिम्मेदार ठहराया था।