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अगर आपकी वित्तीय स्थिति बदल गई है तो कर व्यवस्था भी बदलें

नई कर व्यवस्था उन लोगों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है जिनकी आय 7 लाख रुपये के दायरे में है।

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बिंदिशा सारंग   
Last Updated- July 28, 2024 | 10:31 PM IST

आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करते समय करदाता नई कर व्यवस्था और पुरानी कर व्यवस्था के बीच चयन कर सकते हैं। वेतनभोगी करदाताओं के लिए इसमें अधिक लचीलेपन की गुंजाइश है, मगर कारोबार अथवा पेशेवर कार्यों से प्राप्त आय वाले लोगों को नई और पुरानी कर व्यवस्था में बार-बार आने जाने का मौका नहीं मिलता है।

अंतरराष्ट्रीय कर वकील आदित्य रेड्डी ने कहा, ‘आईटीआर दाखिल करने की प्रक्रिया के दौरान नई कर व्यवस्था अपने आप चुन ली जाती है। अगर करदाता नई कर व्यवस्था से असंतुष्ट है तो वह दोनों कर व्यवस्थाओं में से अपनी पसंद की व्यवस्था चुनने के लिए फॉर्म 10आईई जमा कर सकता है।’

दो व्यवस्थाएं

साल 2020-21 से एक नई कर व्यवस्था शुरू की गई थी और बाद में इसे डिफॉल्ट व्यवस्था बना दिया गया। शाश्वत सिंघल ऐंड कंपनी के प्रोपराइटर चार्टर्ड अकाउंटेंट शाश्वत सिंघल ने कहा, ‘करदाताओं को आय की गणना करने, कर देनदारी का पता लगाने और अपने लिए फायदेमंद कर व्यवस्था चुनने का विकल्प दिया गया है।’

सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर (कराधान प्रमुख) एसआर पटनायक ने कहा, ‘पुरानी कर व्यवस्था में पर्याप्त छूट और कटौती का प्रावधान है जिसका लाभ उठाने से करदाता की कर देनदारी कम हो सकती है। मगर नई कर व्यवस्था में ऐसी छूट और कटौती का प्रावधान नहीं है।’ सिंघल ने कहा कि नई कर व्यवस्था के तहत एक निश्चित आय सीमा तक कर की दरें कम रखी गई हैं।

कौन-सी कर व्यवस्था है बेहतर

नई कर व्यवस्था उन लोगों के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है जिनकी आय 7 लाख रुपये के दायरे में है। विशेषज्ञों ने विभिन्न स्थितियों के लिए ब्रेक ईवन पॉइंट की गणना की है, ताकि करदाताओं को यह तय करने में मदद मिल सके कि कौन-सी कर व्यवस्था अधिक फायदेमंद है। ब्रेक ईवन पॉइंट वह स्तर है जहां पुरानी और नई कर व्यवस्था में कर देनदारी एक जैसी बनती है और उसमें कोई अंतर नहीं होता।

टैक्समैन के उपाध्यक्ष (अनुसंधान एवं परामर्श) नवीन वाधवा ने कहा, ‘अगर किसी व्यक्ति के पास पुरानी कर व्यवस्था के तहत कोई कटौती उपलब्ध नहीं है तो नई कर व्यवस्था हमेशा अधिक फायदेमंद होती है। अगर कोई करदाता महज धारा 80सी की कटौती का इस्तेमाल करता है तो उसके लिए भी नई कर व्यवस्था फायदेमंद होती है। अगर धारा 80सी और 80डी के तहत कटौती का लाभ उठाया जाता है तो ब्रेक ईवन पॉइंट 8,25,000 रुपये है। अगर आपकी आय 8,25,000 रुपये से अधिक है तो नई कर व्यवस्था चुनना फायदेमंद साबित होगा।’

आयकर अधिनियम की धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 24 (आवास ऋण पर ब्याज) के तहत कटौती का लाभ उठाने वाले करदाताओं को पुरानी कर व्यवस्था चुननी चाहिए। अकॉर्ड जूरिस के पार्टनर अलय रजवी ने कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति महत्त्वपूर्ण वित्तीय निवेश करता है तो उसे पुरानी व्यवस्था को ही अपनाना चाहिए। अगर कोई करदाता बिना किसी कर कटौती लाभ के सीधे तौर पर कर गणना को प्राथमिकता देता है तो उनके लिए नई व्यवस्था बेहतर रहेगी।’

ध्यान रखें

व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ), सहकारी समितियों को छोड़कर संघों (एओपी), निकायों (बीओआई) अथवा व्यवसाय या पेशे से प्राप्त आय वाले कृत्रिम न्यायिक व्यक्तियों के लिए दोनों कर व्यवस्थाओं के बीच चयन को अधिक लचीलापन नहीं बनाया गया है।

कुमार ने कहा, ‘जब वे नई कर व्यवस्था से बाहर निकल जाते हैं तो उन्हें नई व्यवस्था में लौटने के लिए एक ही अवसर दिया जाता है। नई कर व्यवस्था में वापस लौटने का विकल्प चुनने पर उन्हें बाद की अवधि में पुरानी कर व्यवस्था में वापस जाने का विकल्प छोड़ना पड़ता है। इसके विपरीत, गैर-व्यावसायिक आय वाले व्यक्ति हर साल नई और पुरानी कर व्यवस्था के बीच चयन कर सकते हैं। कर व्यवस्था में बदलाव उसी वित्त वर्ष में आयकर अधिनियम की धारा 139(1) के तहत रिटर्न दाखिल करने की निर्धारित समय-सीमा से पहले किया जाना चाहिए।’

विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार चाहती है कि सभी करदाता अंततः नई कर व्यवस्था को अपना लें। पटनायक ने कहा, ‘यह सरल है और इसके लिए नियोक्ताओं को किसी तरह के कागजात एकत्रित करने अथवा उसे बनाए रखने की जरूरत नहीं होती है।’ पुरानी कर व्यवस्था को अपनाने का निर्णय सावधानी से लेना चाहिए। खास तौर पर गैर-वेतनभोगी करदाताओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

First Published : July 28, 2024 | 10:31 PM IST