तकरीबन 27,712 करोड़ रुपये की संपत्ति संभालने वाले पराग पारेख फ्लेक्सी कैप फंड ने अपनी शुरुआत से ही निवेशकों को 18.01 फीसदी का चक्रवृद्धि वार्षिक प्रतिफल दिया है। पिछले एक साल में इसका प्रदर्शन अपने बेंचमार्क निफ्टी 500 के मुकाबले फीका रहा है। ऐसे में निवेशकों को इसके साथ बने रहना चाहिए या निकल जाना चाहिए? साल का आखिर है और निवेशक अपने पोर्टफोलियो में साल भर के प्रदर्शन का जायजा लेते ही हैं। हो सकता है कि आपका साबका ऐसे कई फंडों से पड़े जिनका प्रदर्शन कुछ अच्छा नहीं रहा है।
अगर किसी फंड का प्रतिफल पिछले एक या दो साल में आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है तो चिंता की बात नहीं है। फंड्सइंडिया डॉट कॉम में अनुसंधान प्रमुख अरुण कुमार की राय है, ‘अगर फंड में तीन से पांच साल तक फीका काम किया है तब आपको उस पर लगातार नजर रखने की जरूरत पड़ेगी।’
किसी भी फंड का रोलिंग रिटर्न बताता है कि अगर आपने उसमें किसी और समय निवेश किया होता तो उसका प्रदर्शन कैसा रहता। पिछले दस साल के दौरान उसके पांच साल के प्रतिफल को दैनिक या मासिक आधार पर जांचिए। कुमार कहते हैं, ‘अगर फंड में 90 फीसदी मौकों पर बेंचमार्क के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है और बमुश्किल 10 फीसदी मौकों पर उसका प्रदर्शन कमतर रहा है तो वह बढ़िया फंड है।’ पिछले दस या 15 साल में उन कैलेंडर वर्षों में उसके प्रदर्शन का जायजा लीजिए जब बाजार में गिरावट आई थी। अगर फंड में उसके बेंचमार्क के मुकाबले कम गिरावट आई थी तो इसका मतलब है कि फंड मैनेजर गिरावट से जूझने और रोकने में माहिर है।
फंड मैनेजर एक खास शैली में काम करते हैं। जिन्हें ग्रोथ, ब्लेंड या वैल्यू कहते हैं। जब बाजार उनकी शैली के माफिक नहीं होता है तो उनका प्रदर्शन गड़बड़ा जाता है। मॉर्निंग स्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर में डायरेक्टर-मैनेजर रिसर्च कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं, ‘ग्रोथ फंडों में 2019 और 2020 में बढ़िया काम किया। लेकिन, जब चक्र घूमा तो सभी मान रहे थे कि इन फंडों का प्रदर्शन फीका पड़ जाएगा।’ वह कहते हैं कि बाजार का चक्र बदलने पर प्रदर्शन खराब हो तो समझ में आता है।
पराग पारीख फ्लेक्सी कैप का ही उदाहरण लीजिए यह फंड अपने पोर्टफोलियो का एक हिस्सा भारतीय शेयरों में और दूसरा हिस्सा विदेशी शेयरों में लगाता है। पीपीएफएएस म्यूच्युअल फंड में मुख्य निवेश अधिकारी राजीव ठक्कर समझाते हैं, ‘जब भारत का बाजार अंतरराष्ट्रीय बाजारों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करता है तो फंड का अपने बेंचमार्क निफ्टी 500 से रह जाना स्वभाविक है और जब यहां का बाजार कमजोर होता है तब फंड निफ्टी 500 से बेहतर काम कर देता है।’ भारतीय बाजार पिछले एक साल में करता आया है जबकि अमेरिकी बाजार कुछ फीका रहा है और नैस्डैक 100 28.3 फीसदी गिरा है।
प्रदर्शन बेशक फीका रहे मगर फंड मैनेजर को अपनी शैली बरकरार रखनी चाहिए। जो फंड मैनेजर वैल्यू की शैली पर चलता आया है उसे केवल इसीलिए ग्रोथ पर नहीं चले जाना चाहिए क्योंकि बाजार ग्रोथ की शैली के अनुकूल है। कुमार कहते हैं कि पोर्टफोलियो के टर्नओवर रेशियो पर भी नजर रखनी चाहिए। अगर उसमें एकाएक इजाफा होता है तो इसका सीधा मतलब है कि फंड मैनेजर घबरा गया है और पोर्टफोलियो पूरी तरह उलट-पुलट दे रहा है।
फंड मैनेजर की बात तोलना भी जरूरी है। पराग पारीख फ्लेक्सी कैप फंड इसीलिए फीका पड़ा है क्योंकि उसने अमेरिका के तकनीकी शेयरों में भी निवेश किया है, जो लुढ़क रहे हैं। ठक्कर बताते हैं, ‘जिन कंपनियों में हमने निवेश किया है वे असली नकद प्रवाह के साथ मुनाफा बना रही हैं। वे अपने कारोबारी मॉडल को साबित कर चुकी हैं और पिछले एक साल में गिरावट आने से पहले भी उनके शेयरों की कीमत बहुत ज्यादा नहीं थीं।’ वह बताते हैं कि इनमें ज्यादातर कंपनियों का एकाधिकार है, मुनाफा मार्जिन बहुत ऊंचा है और प्रतिफल भी बेहतरीन है। यह सभी कर्जमुक्त हैं और अच्छे फंडामेंटल्स की वजह से वह उनके साथ बने रहना चाहते हैं।
अगर फंड मैनेजर अपनी असली शैली पर डटा रहता है यानी अनाप-शनाप कीमत पर शेयर नहीं खरीदता है और कॉरपोरेट गवर्नेंस की समस्याओं से जूझ रही कंपनियों से दूर ही रहता है तो उसके फंड का साथ मत छोड़िए। बेलापुरकर समझाते हैं, ‘मान लीजिए कि आप ग्रोथ स्टाइल फंड को छोड़कर वैल्यू स्टाइल फंड में केवल इसीलिए चले जाते हैं क्योंकि वैल्यू फंड का प्रदर्शन अच्छा है तो ग्रोथ फंड के दिन फिरने पर आप मौका हाथ से गंवा देंगे।’ उनकी सलाह है कि इसके बजाय ऐसा पोर्टफोलियो तैयार कीजिए जिसमें सभी शैलियों के फंड हों।