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ELSS: टैक्स में छूट और शानदार रिटर्न के लिए इस म्युचुअल फंड स्कीम में करें निवेश

ELSS: इस कैटेगरी के फंडों ने बीते एक साल में औसतन 28 फीसदी का एनुअल रिटर्न दिया है।

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अजीत कुमार   
Last Updated- December 16, 2024 | 3:19 PM IST

ELSS: दिसंबर का महीना आते ही टैक्स बचाने को लेकर भागदौड़ शुरू हो गई है। अगर आप भी मौजूदा वित्त वर्ष के लिए म्युचुअल फंड में निवेश कर 80C के तहत डिडक्शन का फायदा लेना चाहते हैं। साथ ही चाहते हैं कि अपने निवेश पर इक्विटी की तरह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स में छूट मिले तो आपको ईएलएसएस (Equity Linked Savings Scheme यानी ELSS) में निवेश में देर नहीं करना चाहिए। ELSS को टैक्स सेवर फंड (tax saver fund) भी कहा जाता है। नियमों के मुताबिक यदि आप इक्विटी/इक्विटी स्कीम में निवेश करते हैं तो आपको सालाना 1.25 लाख रुपये तक के कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है।

पारंपरिक टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले म्युचुअल फंड की इस स्कीम में बेहतर रिटर्न मिलने की भी संभावना है। पिछले कुछ समय में इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम का रिटर्न भी शानदार रहा है। इस कैटेगरी के फंडों ने बीते एक साल में औसतन 28 फीसदी का एनुअल रिटर्न दिया है। जबकि पिछले तीन साल और पांच साल में इस कैटेगरी के फंडों से निवेशकों ने औसतन 17 फीसदी और 21 फीसदी सालाना कमाए हैं। यहां तक कि बाजार में नए आए पैसिव ELSS फंडों ने भी पिछले एक साल में तकरीबन 23 फीसदी तक का एनुअल रिटर्न दिया है।

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वैसे लोग जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है उनके लिए ELSS इस एसेट क्लास में निवेश शुरू करने का बेहतर जरिया है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी (SahazMoney) के संस्थापक अभिषेक कुमार कहते हैं, ‘ELSS चुनें या डेट इंस्ट्रूमेंट्स, इसका फैसला आपके पोर्टफोलियो के एसेट एलोकेशन  को देखकर होना चाहिए। अगर आपने फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स में जरूरत से ज्यादा निवेश कर रखा है तो ELSS चुनिए। अगर इक्विटी में ज्यादा निवेश है तो ELSS छोड़कर डेट की तरफ जाइए। कुमार की सलाह है, ‘जो निवेशक जोखिम लेने को तैयार हैं और लंबे समय बाद के किसी लक्ष्य के लिए निवेश कर रहे हैं, वे ELSS देख सकते हैं।’

अब जानते हैं कि यह स्कीम है क्या और टैक्स सेविंग के मामले में क्यों बेहतर है ?

क्या है यह स्कीम?

ELSS (एक्टिव ELSS) एक डाइवर्सिफाइड (diversified)/मल्टीकैप इक्विटी MF स्कीम है जिसमें आपकी रकम को अलग अलग साइज की कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है। किसी भी अन्य MF की तरह आप 500 रुपये से इसमें निवेश प्रारंभ कर सकते हैं। जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। अन्य MF स्कीम की तरह इसे जब चाहें रिडीम यानी बंद नहीं कर सकते हैं। ELSS का अनिवार्य लॉक-इन पीरियड 3 वर्ष है। मतलब आप तीन वर्ष से पहले इस स्कीम से नहीं निकल सकते हैं। लेकिन निवेश के उन सारे विकल्पों जिन पर पुरानी टैक्स व्यवस्था में 80C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है की तुलना में ELSS का lock-in period सबसे कम है।

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उदाहरण के तौर पर पीपीएफ का lock-in period 15 वर्ष है जबकि NSC, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS), टैक्स सेविंग एफडी बैंक/पोस्ट ऑफिस FD, ULIP का 5 वर्ष है। जबकि NPS तो खासकर रिटायरमेंट के लिए है। Lock-in period के बाद भी आप ELSS में निवेश जारी रख सकते हैं।

क्या ELSS पर मिलता है डिडक्शन का फायदा?

इस स्कीम में आप निवेश करते हैं तो एक वित्त वर्ष में 80C के तहत डिडक्शन (deduction) का फायदा अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक के निवेश (अन्य विकल्पों में निवेश की राशि को मिलाकर) पर ही मिलेगा। लेकिन डिडक्शन का यह फायदा आप पुरानी टैक्स व्यवस्था (old tax regime) के तहत ही उठा सकते हैं। नई टैक्स व्यवस्था में ELSS पर इस तरह की कोई छूट नहीं है।

ELSS से कमाई पर क्या चुकाना पड़ता है टैक्स?

ELSS एक इक्विटी MF स्कीम है क्योंकि इस स्कीम में मिनिमम 80 फीसदी निवेश इक्विटी और इक्विटी-रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट में होता है। नियमों के अनुसार यदि इक्विटी/इक्विटी स्कीम (ग्रोथ प्लान) को आप 1 साल के बाद रिडीम करते हैं तो नई और पुरानी दोनों टैक्स व्यवस्थाओं में आपको 1.25 लाख रुपये तक के एनुअल कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। जबकि सालाना 1.25 लाख रुपये से ज्यादा के कैपिटल गेन पर 12.5 फीसदी लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG/एलटीसीजी) टैक्स का प्रावधान है।

अगर आप डिविडेंड (dividend) प्लान लेते हैं तो निवेश की अवधि के दौरान (lock-in period से पहले और बाद दोनों) जो रिटर्न डिविडेंड के रूप में मिलता है वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा।

क्या टैक्स हार्वेस्टिंग के मामले में यह स्कीम है बेहतर?

इस स्कीम का लॉक इन पीरियड 3 साल है और इस पीरियड के बाद ही आप इस स्कीम के यूनिट रिडीम कर सकते हैं। इसलिए टैक्स हार्वेस्टिंग का फायदा तीन साल तक इस स्कीम पर आप नहीं उठा सकते। जबकि किसी अन्य इक्विटी म्युचुअल फंड स्कीम में टैक्स हार्वेस्टिंग का फायदा आप किसी भी वित्त वर्ष के दौरान उठा सकते हैं।

इक्विटी म्युचुअल फंड स्कीम में यदि आपको एक वित्त वर्ष के दौरान 1.25 लाख रुपये तक का कैपिटल गेन होता है तो उस कैपिटल गेन पर आपको कोई भी टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है। इसलिए किसी निवेशक को यदि सालाना कैपिटल गेन 1.25 लाख रुपये से ऊपर का हो रहा है तो वह उस वित्त वर्ष के पूरा होने से ठीक पहले इस स्कीम की कुछ यूनिट बेच सकता है और इससे मिलने वाली राशि को अगले वित्त वर्ष उसी स्कीम की नई यूनिट खरीदने में इस्तेमाल कर सकता है।

सही एक्टिव फंड का कैसे करें चुनाव ?

ELSS में निवेशकों की रकम 3 साल के लिए फंस जाती है। फंड्सइंडिया डॉट कॉम (Fundsindia.com) के वाइस प्रेसिडेंट और रिसर्च हेड अरुण कुमार समझाते हैं, ‘अगर फंड मैनेजर बदल जाए या फंड कंपनी के अंदर ही कोई बदलाव हो जाए तो आपको फंड से अपनी रकम तुरंत निकालने की सुविधा इसमें नहीं मिलती है। इसलिए अच्छी साख वाले किसी ऐसे फंड में निवेश कीजिए, जो कम से कम 10 साल से चल रहा है।’

वह कम से कम 5,000 करोड़ रुपये की संपत्ति संभालने वाला फंड चुनने की सलाह देते हैं ताकि एसेट मैनेजमेंट कंपनी उस पर भरपूर ध्यान देती रहे।

निवेश करने से पहले देखिए कि पिछले 7 या 10 साल में फंड का रिटर्न कैसा रहा है। अरुण कुमार के मुताबिक यह देखना जरूरी है कि फंड ने कितने प्रतिशत मौकों पर बेंचमार्क से ज्यादा रिटर्न दिया है। आंकड़ा जितना ज्यादा हो उतना अच्छा रहेगा। यह भी देखिए कि बेंचमार्क के मुकाबले कितना ज्यादा रिटर्न दिया।

इसके बाद कैलेंडर वर्ष में रिटर्न पर नजर डालें और एक साल अच्छा रिटर्न देने के बाद अगले साल बहुत कम रिटर्न देने वाले फंड को हटा दें। फंड का डाउनसाइड और अपसाइड कैप्चर रेश्यो भी देखें। बाजार गिरने पर सूचकांक के मुकाबले फंड का प्रदर्शन डाउनसाइड कैप्चर रेश्यो कहलाता है और बाजार चढ़ने पर यह प्रदर्शन अपसाइड कैप्चर रेश्यो कहलाता है। डाउनसाइड कैप्चर रेश्यो कम से कम और अपसाइड कैप्चर रेश्यो अधिक से अधिक होना बेहतर रहेगा।

मगर ELSS को केवल अतीत का प्रदर्शन देखकर चुनना ही ठीक नहीं रहेगा क्योंकि हो सकता है कि हाल में अच्छा प्रदर्शन कर चुके फंडों के लिए बाजार अगले कुछ साल अच्छा नहीं रहे। अरुण कुमार इसके लिए इक्विटी पोर्टफोलियो में अलग-अलग इन्वेस्टमेंट साइकिल वाली योजनाएं शामिल करने की सलाह देते हैं।

यदि फंड को संभालने के लिए नया फंड मैनेजर आता है तो पिछली फंड कंपनी में उसका रिकॉर्ड भी देखिए। ऐसी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी चुनें, जिसके तौर-तरीके बार-बार नहीं बदलते हों।

कितना रिटर्न?

ELSS में वही जोखिम हैं जो इक्विटी MF में निवेश के हैं। इसमें फिक्स्ड रिटर्न जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन अगर आप लांग टर्म में यानी कम से कम 7 से 10 वर्ष के लिए निवेश करेंगे तो आपको फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (fixed income instruments) की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलेगा। इसलिए बेहतर होगा कि 3 वर्ष के अनिवार्य lock-in period के बाद भी ELSS में निवेश को बरकरार रखें। कुल मिलाकर कहें तो टैक्स में छूट पाने से कहीं ज्यादा यह लांग-टर्म इन्वेस्टमेंट का बेहतर विकल्प है।

अभिषेक कुमार बताते हैं, ‘ELSS पर मिलने वाला रिटर्न काफी ऊपर नीचे जा सकता है, इसलिए जोखिम से परहेज करने वाले निवेशकों के लिए ELSS शायद मुनासिब नहीं होगा।’

एकमुश्त या SIP?

एकमुश्त (lump sum) के बजाए सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी या SIP) —यानि एक निश्चित मासिक, तिमाही, छमाही, या सालाना अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश — के जरिए MF में निवेश करना हमेशा बेहतर माना जाता है। क्योंकि इसमें मार्केट को टाइम करने का जोखिम नहीं है। साथ ही मार्केट से संबंधित उतार-चढाव का एवरेजिंग (averaging) भी हो जाता है। लेकिन अगर आप SIP के माध्यम से निवेश करेंगे तो हर किस्त का lock-in period अलग अलग होगा।

अब पैसिव ELSS फंडों में भी कर सकते हैं निवेश

जब से एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (asset management companies यानी AMC) को सेबी (SEBI) की तरफ से पैसिव स्कीम (passive scheme) लॉन्च करने की अनुमति मिली है, निवेशकों के पास एक्टिव के साथ-साथ पैसिव ELSS स्कीम में भी निवेश का विकल्प खुल गया है। इसलिए वैसे निवेशक जो कम जोखिम लेना चाहते हैं, पैसिव ELSS के साथ जा सकते हैं। पैसिव ELSS स्कीम में फंड मैनेजर की सक्रिय भूमिका नहीं होती है, इसलिए टोटल एक्सपेंस रेश्यो (total expense ratio) भी एक्टिव स्कीम के मुकाबले इसमें कम है। निवेश की रणनीति में निरंतरता (continuity) और पारदर्शिता (transparency) की वजह से भी निवेशक इस नए विकल्प को पसंद कर सकते हैं।

अभी मार्केट में सिर्फ 3 पैसिव फंड ही लॉन्च हुए हैं – 360 ONE ELSS निफ्टी 50 टैक्स सेवर इंडेक्स फंड, Navi ELSS टैक्स सेवर निफ्टी 50 इंडेक्स फंड और Zerodha ELSS Tax Saver Nifty Large Midcap 250 Index Fund। बाकी जो भी फंड उपलब्ध हैं वे एक्टिव ELSS हैं।

सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और फिड्युशरीज (Fiduciaries) के संस्थापक अविनाश लूथरिया की राय में निफ्टी 50 पर चलने वाले ELSS में निवेश करना बेहतर होगा। वह ऐसे पैसिव ELSS से दूर रहने की सलाह देते हैं, जिनका मिडकैप में ज्यादा निवेश है जैसे निफ्टी लार्ज मिड कैप 250 इंडेक्स में निवेश वाले ELSS।

अभिषेक कुमार कहते हैं, ‘2008-09 में जब बाजार गिरे तब निफ्टी 50 टोटल रिटर्न इंडेक्स 59 फीसदी लुढ़क गया। मगर निफ्टी मिडकैप 150 टोटल रिटर्न इंडेक्स तो चारों खाने चित होकर 73 फीसदी ढह गया। ज्यादातर निवेशकों के लिए इतनी गिरावट डरावनी ही होगी।’ उनका यह भी कहना है कि निफ्टी 50 में निवेश करने वाले फंड अगर ट्रैकिंग में कोई चूक करते हैं तो उसे संभाल जा सकता है।

अरुण कुमार के मुताबिक अगर आपके पास समय नहीं है या सलाह देने वाला कोई नहीं है तो पैसिव फंड आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। उनकी सलाह यह भी है कि मिड कैप में निवेश वाला पैसिव फंड तभी चुना जाए जब कम से कम 7 साल के लिए निवेश किया जा रहा हो और जोखिम झेलने की कुव्वत भी हो।

Passive ELSS है क्या ?

मार्केट रेगुलेटर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की तरफ से जून 2022 में आए सर्कुलर के मुताबिक फंड हाउस 1 जुलाई 2022 से इंडेक्स-आधारित यानी पैसिव टैक्स-सेविंग ELSS फंड लॉन्च कर सकते हैं। इससे पहले, भारत में सभी इक्विटी-लिंक्ड सेविंग्स स्कीम एक्टिव रहे हैं जहां फंड मैनेजर फंड के पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं। पैसिव ELSS फंड के मामले में, पोर्टफोलियो केवल एक अंडरलाइंग इंडेक्स को रिफ्लेक्ट करता है। रिटर्न भी कमोबेश उसी इंडेक्स को ट्रैक करता है।

सेबी के सर्कुलर के अनुसार पैसिव ELSS फंड उन चुनिंदा सूचकांकों पर आधारित होंगे जो मार्केट कैप के मामले में टॉप-250 कंपनियों के शेयरों को ट्रैक करते हैं। लेकिन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के पास एक्टिव और पैसिव दोनों तरह के ईएलएसएस फंड नहीं हो सकते। उन्हें दो विकल्पों में से एक को चुनना होगा।

पिछले साल की शुरुआत यानी जनवरी 2023 में SEBI ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को पैसिव ELSS शुरू करने से पहले अपनी एक्टिव इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाएं बंद करने के निर्देश दिए। मतलब जिन AMC के पास एक्टिव ELSS हैं, वे इसमें नया निवेश बंद करने के बाद ही पैसिव ELSS शुरू कर सकते हैं।

First Published : December 13, 2024 | 5:08 PM IST